तीन वर्षों में फसलों को मिलने लगेगी सौ प्रतिशत स्वदेशी खाद, नहीं पड़ेगी आयात की जरूरत
नैनो यूरिया के सहारे इस कमी को दूर कर आत्मनिर्भर बनने की दिशा में बड़ी पहल हुई है। महज दो-तीन वर्षों के भीतर नैनो यूरिया का इतना उत्पादन होने लग जाएगा कि फिर आयात की जरूरत नहीं रह जाएगी। उर्वरक मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि अभी चालू तीन प्लांटों के सहारे प्रतिवर्ष लगभग 23 करोड़ बोतल तरल यूरिया की उत्पादन क्षमता प्राप्त कर ली गई है।
By Jagran NewsEdited By: Ashisha Singh RajputUpdated: Sun, 23 Jul 2023 08:57 PM (IST)
नई दिल्ली, अरविंद शर्मा। किसानों के लिए अच्छी खबर है कि उर्वरकों के मामले में विदेशी निर्भरता तेजी से कम होती जा रही है। देश में यूरिया के उत्पादन में पिछले नौ वर्षों के दौरान लगभग 60 लाख टन की वृद्धि हुई है। अपनी जरूरत की तुलना में अभी भी प्रतिवर्ष 65 से 80 लाख टन यूरिया कम पड़ जा रही है, जिसे दूसरे देशों से खरीदना पड़ रहा है।
क्या कहती है उर्वरक मंत्रालय की रिपोर्ट?
नैनो यूरिया के सहारे इस कमी को दूर कर आत्मनिर्भर बनने की दिशा में बड़ी पहल हुई है। महज दो-तीन वर्षों के भीतर नैनो यूरिया का इतना उत्पादन होने लग जाएगा कि फिर आयात की जरूरत नहीं रह जाएगी। उर्वरक मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि अभी चालू तीन प्लांटों के सहारे प्रतिवर्ष लगभग 23 करोड़ बोतल तरल यूरिया की उत्पादन क्षमता प्राप्त कर ली गई है।
नैनो उर्वरक मिट्टी के पोषक तत्वों को देती है सुरक्षा
वर्ष 2025-26 तक छह अन्य प्लांटों से भी उत्पादन प्रारंभ हो जाएगा। उसके बाद लगभग 195 लाख टन दानेदार यूरिया के बराबर 44 करोड़ बोतलों का उत्पादन होने लगेगा। इन्हीं में से तीन संयंत्रों में तरल डीएपी का भी उत्पादन होना है। उसके बाद भारत को खाद के आयात की जरूरत नहीं पड़ेगी। नैनो उर्वरक मिट्टी के पोषक तत्वों को सुरक्षा देती है। मिट्टी की दक्षता के साथ उपज की मात्रा भी बढ़ाती है। लागत भी कम आती है।तरल उर्वरकों का उत्पादन बढ़ाकर सरकारी कोष को दी जा सकती है राहत
सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश होने के चलते भारत को खाद्य सुरक्षा की चुनौतियों से भी निपटना पड़ रहा है। दूसरे देशों से मंगाई गई खाद की कीमत बहुत ज्यादा होती है। 45 किलो के यूरिया बैग का मूल्य 22 सौ रुपये पड़ता है, जो किसानों को मात्र 242 रुपये में उपलब्ध कराया जाता है। स्पष्ट है कि खेती के लिए ससमय और समुचित उर्वरकों की आपूर्ति के लिए हजारों करोड़ रुपये का अनुदान देना पड़ता है। तरल उर्वरकों का उत्पादन बढ़ाकर सरकारी कोष को राहत दी जा सकती है और इस पैसे से खेती के लिए अन्य संसाधन जुटाए जा सकते हैं।
अभी 70-80 लाख टन यूरिया का आयात
नौ वर्ष पहले तक देश में मात्र 225 लाख टन यूरिया का उत्पादन होता था। इसे बढ़ाकर पिछले वित्तीय वर्ष तक 284 लाख टन पहुंचा दिया गया। रबी एवं खरीफ फसलों के लिए प्रतिवर्ष करीब 350 से 360 लाख टन यूरिया की जरूरत पड़ती है। वर्ष 2019-20 में 335.26 लाख टन यूरिया की जरूरत थी। उत्पादन सिर्फ 244.55 लाख टन था। लगभग 90 लाख टन की कमी थी। कारण था कि देश के चार बड़े सिंदरी, गोरखपुर, बरौनी एवं रामागुंडम के उर्वरक प्लांट वर्षों से बंद थे।इन्हें फिर से चालू किया गया तो एक वर्ष के भीतर 25 प्रतिशत उत्पादन बढ़ गया। उत्पादन की इस मात्रा को आगे भी नियंत्रित रखने के लिए भारत ने जार्डन, कनाडा, रूस, मोरक्को, सऊदी अरब, ओमान, इजराइल, ट्यूनीशिया एवं दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों के साथ साझेदारी कर चार वर्षों के लिए विभिन्न उर्वरकों की दो सौ लाख टन का भंडारण कर लिया है।