Indian Rupees:रुपये के बढ़ते वर्चस्व ने दिखाया भारत को महाशक्ति बनने का रास्ता, इतनी मजबूत हो गई इंडियन करेंसी
Indian Rupees Currency INR आजादी के बाद से आज तक भारत का झंडा विश्व पटल पर शान से लहराता है और भारत की मुद्रा रुपये ने धीरे-धीरे दुनिया में अपनी धाक जमा ली है। आज हम आपको रुपए के बढ़ते दबदबे के बारे में बताएंगे कि कैसे आजादी के 76 साल बाद रुपया धीरे-धीरे दुनिया पर अपनी छाप छोड़ रहा है।
By Gaurav KumarEdited By: Gaurav KumarUpdated: Tue, 15 Aug 2023 01:23 PM (IST)
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क: आज देश आजादी का 77वां साल मना रहा है। किसी भी देश की पहचान उसके झंडे और उसके करेंसी से होती है। आजादी के बाद से अब तक भारत का झंडा विश्व पटल पर बड़ी शान से लहरा रहा है और भारत की करेंसी “रुपया” भी धीरे-धीरे दुनिया में अपनी धाक जमा रही है।
आज हम आपको रुपये के बढ़ते वर्चस्व के बारे में बताने जा रहे कि कैसे आजादी के 76 साल में रुपया धीरे-धीरे विश्व में अपनी छाप छोड़ रहा है। कहते हैं कि यदि वर्तमान को समझना है तो अतीत में जाना पड़ता है। तो चलिए रुपये के अतीत में चलते हैं।
क्या है रुपये का इतिहास?
इतिहासकार की मानें तो “रुपये” का पहली बार इस्तेमाल शेरशाह सूरी ने किया था। तब इस जमाने में सोने और तांबे का सिक्का चलता था। शेरशाह सूरी का मकबरा वर्तमान में बिहार के सासाराम शहर में है।रुपये का इतिहास ईसा पूर्व छठी शताब्दी का है। पहले भारतीय सिक्के महाजनपदों (प्राचीन भारत के राज्य-गणराज्य) द्वारा ढाले गए थे, जिन्हें पुराण, कर्षपान या पनस भी कहा जाता है। इन महाजनपदों में गांधार, कुंतला, कुरा, पांचाल, शाक्य, सुरसेन और सौराष्ट्र शामिल थे।
पहले मौर्य सम्राट, चंद्रगुप्त मौर्य ने चांदी, सोने, तांबे या सीसे की मोहर वाले सिक्के चलाए। 12वीं शताब्दी में, दिल्ली के तुर्की सुल्तान ने भारतीय राजाओं के शाही डिजाइनों वाले सिक्कों को अपनी इस्लामी सुलेख से बदल दिया।
1526 ई. में मुगल साम्राज्य ने एक साम्राज्य-व्यापी मुद्रा प्रणाली को एकीकृत किया। इसी अवधि के दौरान रुपये का विकास हुआ जब शेरशाह ने हुमायू को हराया और 178 ग्राम चांदी का सिक्का जारी किया जिसे रुपया कहा जाता है। इन सिक्कों का उपयोग मुगल, मराठा और ब्रिटिश भारतीय युग के दौरान भी किया गया था।
ब्रिटिश काल में अगर रुपये की बात करें तो अंग्रेजों के आने से पहले देश में सिर्फ सिक्के ही होते थे। ब्रिटिश काल में पहली बार 18वीं शताब्दी में बैंक ऑफ हिंदुस्तान जनरल बैंक और बंगाल बैंक ऑफ बंगाल ने भारत में कागजी मुद्रा जारी की, जो ब्रिटिश भारत में पहली कागजी मुद्रा थी।1857 की क्रांति के बाद, ब्रिटिश ने रुपये को भारत की आधिकारिक करेंसी बना दिया और बैंक नोटों और सिक्कों पर किंग जॉर्ज VI का तस्वीर लगा दी। भारतीय रिजर्व बैंक ने 1938 में जॉर्ज VI के चित्र वाला पहला पाँच रुपये का नोट जारी किया। इसके बाद फरवरी में 10 रुपये के नोट, मार्च में 100 रुपये के नोट और जून 1938 में 1000 और 10,000 रुपये के नोट जारी किए गए।
1947 में स्वतंत्रता के बाद, रुपया नियमित रुपये के सिक्के के डिजाइन में वापस आ गया। नोट के लिए चुना गया प्रतीक सारनाथ में लायन कैपिटल था, जिसने जॉर्ज VI श्रृंखला के बैंकनोटों का स्थान ले लिया। स्वतंत्र भारत में पहला नोट 1 रुपये का प्रिंट हुआ थामहात्मा गांधी श्रृंखला के बैंक नोट 1996 में 10 और 500 रुपये के मूल्यवर्ग में जारी किए गए थे। इस श्रृंखला ने लायन कैपिटल श्रृंखला के सभी मौजूदा बैंकनोटों का स्थान ले लिया।