भारत पर भी चीन की तरह ऊंचा कर्ज, पर जोखिम कम: आईएमएफ
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भारत को ऋण जोखिम को कम करने के लिए एक महत्वाकांक्षी मध्यम अवधि के घाटे में कमी योजना के साथ आने की सलाह दी है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि हालांकि भारत पर चीन की तरह भारी कर्ज है लेकिन इससे जुड़ा जोखिम उसके पड़ोसियों की तुलना में कम है। पढ़िए क्या है पूरी खबर।
जागरण न्यूज नेटवर्क, नई दिल्ली: अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने भारत को कर्ज जोखिम कम करने के लिए मध्यम अवधि में घाटे को कम करने वाली एक महत्वाकांक्षी राजकोषीय सशक्तीकरण योजना बनाने की सलाह दी है।
हालांकि उन्होंने यह भी कहा है कि भारत पर चीन की तरह भारी कर्ज होने के बावजूद उस पर ऋण से जुड़ा जोखिम अपने पड़ोसी देश की तुलना में कम है।
राज्यों के उपर है ज्यादा कर्ज
अधिकारी ने भारत में राज्यों के स्तर पर अधिक जोखिम होने का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों पर बहुत अधिक कर्ज है और उन्हें ब्याज के भारी बोझ का सामना करना पड़ता है।
आईएमएफ में राजकोषीय मामलों के उपनिदेशक रुड डी मोइज ने विशेष बातचीत में कहा, 'भारत पर मौजूदा ऋण बोझ सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 81.9 प्रतिशत है। चीन के मामले में यह अनुपात 83 प्रतिशत है। दोनों ही देश लगभग समान स्थिति में हैं।
कोविड से पहले क्या थी स्थिति?
महामारी से पहले वर्ष 2019 में भारत का ऋण जीडीपी का 75 प्रतिशत था। उन्होंने कहा कि
भारत में राजकोषीय घाटा 2023 के लिए 8.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है। इसका एक बड़ा हिस्सा ब्याज पर होने वाले व्यय का है। वे अपने ऋण पर बहुत अधिक ब्याज देते हैं जो जीडीपी का 5.4 प्रतिशत है। प्राथमिक घाटा 3.4 प्रतिशत होने से राजकोषीय घाटा 8.8 प्रतिशत हो जाता है।
चीन की तरह नहीं बढ़ेगा भारत का कर्ज
मोइज ने एक सवाल के जवाब में कहा कि भारत का कर्ज चीन की तरह बढ़ने की आशंका नहीं है। इसके वर्ष 2028 में 1.5 प्रतिशत की मामूली गिरावट के साथ 80.4 प्रतिशत रहने का अनुमान है।
उन्होंने इसके लिए भारत में वृद्धि की ऊंची दर को जिम्मेदार बताते हुए कहा कि उच्च वृद्धि का ताल्लुक जीडीपी के अनुपात में कर्ज से भी है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि कुछ कारकों से जोखिम कम होते हैं, जिनमें लंबी परिपक्वता अवधि वाले कर्ज भी शामिल हैं।