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दुनिया का सस्ता दवाखाना बनने की ओर भारत, हर साल निर्यात में पांच अरब डॉलर से अधिक की बढ़ोतरी

Pharma Export भारत सस्ती दवा (जेनेरिक दवा) बनाता है और फिलहाल विश्व की 20 फीसद जेनेरिक दवा का सप्लायर भारत है। दुनिया में लगने वाली 60 फीसद वैक्सीन का सप्लायर भी भारत है। गत वित्त वर्ष 2021-22 में भारत का फार्मा निर्यात 24.47 अरब डॉलर का रहा

By Manish MishraEdited By: Updated: Thu, 21 Apr 2022 06:49 AM (IST)
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India on the way to become the world's cheapest pharmacy (PC: pixabay)

राजीव कुमार, नई दिल्ली। भारत दुनिया का सस्ता दवाखाना बनने जा रहा है और इसका सीधा फायदा देश के फार्मा निर्यात को होगा। वर्ष 2030 तक फार्मा निर्यात में हर साल कम से कम पांच अरब डॉलर की बढ़ोतरी की उम्मीद की जा रही है। फार्मा एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के मुताबिक गत वित्त वर्ष 2021-22 में भारत का फार्मा निर्यात 24.47 अरब डॉलर का रहा जो वर्ष 2030 तक 70 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना है। दूसरी तरफ दवा के कच्चे माल के उत्पादन के लिए प्रोडक्शन लिंक्‍ड स्कीम (पीएलआई) की घोषणा के बाद 35 एपीआई (एक्टिव फार्मास्युटिकल्स इंग्रिडिएंट्स) का उत्पादन शुरू कर दिया गया है जिनका अब तक भारत आयात करता था। फिलहाल भारत का फार्मा बाजार 47 अरब डॉलर का है। इनमें 22 अरब डॉलर का कारोबार घरेलू स्तर पर होता है। दवा निर्यातकों ने बताया कि सबसे बड़ी बात है कि भारत सस्ती दवा (जेनेरिक दवा) बनाता है और फिलहाल विश्व की 20 फीसद जेनेरिक दवा का सप्लायर भारत है। दुनिया में लगने वाली 60 फीसद वैक्सीन का सप्लायर भी भारत है।

दुनिया के 206 में भारत करता है दवाओं की सप्‍लाई

फार्मा निर्यातकों के मुताबिक भारत पहले से ही वैश्विक दवाखाना है क्योंकि दुनिया के 206 देशों में किसी न किसी रूप में भारतीय दवा की सप्लाई होती है। लेकिन अब उन देशों में भी भारत की सस्ती दवाएं सप्लाई होंगी जिन्हें भारत की सस्ती दवा पर बहुत भरोसा नहीं था। भारत हेपेटाइटिस बी से लेकर एचआईवी व कैंसर जैसी घातक बीमारियों के लिए दुनिया की दवा के मुकाबले काफी सस्ती दवा बनाता है।हाल ही में यूएई और आस्ट्रेलिया से भारत ने जो व्यापार समझौता किया है, उससे भी भारतीय फार्मा निर्यात को बड़ा लाभ मिलने जा रहा है। आस्ट्रेलिया में भारत अभी सिर्फ 34 करोड़ डॉलर का फार्मा निर्यात करता था जो अब एक अरब डॉलर के स्तर तक जा सकता है क्योंकि भारतीय दवा आस्ट्रेलिया में बिकने वाली दवा के मुकाबले काफी सस्ती है और यह बात आस्ट्रेलिया सरकार को समझ में आ गई है। यूएई के बाजार से भारतीय दवा अफ्रीका के देशों में जाएंगी। दक्षिण अमेरिका के देश भी भारत की सस्ती दवाओं के लिए अपने दरवाजे खोल रहे हैं।

रूस भी कर रहा है भारतीय दवाओं की मांग

फार्मा एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के चेयरमैन दिनेश दुआ ने बताया कि अब तक भारत से दवा खरीदने में परहेज रखने वाला देश रूस भी अब भारतीय दवा की मांग कर रहा है। क्योंकि रूस को अब अमेरिका व यूरोप से दवा नहीं मिलने वाला है। यूरोपीय संघ, ब्रिटेन व कनाडा के साथ व्यापार समझौता होने से इन देशों के बाजार में भारतीय जेनेरिक दवा की पैठ और बढ़ेगी।

पीएलआई स्कीम की घोषणा के बाद 35 एपीआई का उत्पादन शुरू

रसायन व खाद मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक एपीआई उत्पादन में बढ़ोतरी को लेकर पीएलआई स्कीम की घोषणा के बाद 35 उन एपीआई का उत्पादन शुरू हो चुका है जिनका अब तक हम आयात करते थे। पीएलआई स्कीम के तहत 53 एपीआई को उत्पादन के लिए चिन्हित किया गया है और इसके लिए 32 नए प्लांट लगाए गए हैं। दुआ ने बताया कि भारत हर साल 2.8 अरब डॉलर का एपीआई व अन्य कच्चे माल का आयात चीन से करता है, लेकिन दूसरी तरफ भारत 4.8 अरब डॉलर के एपीआई व दवा के अन्य कच्चे माल का निर्यात भी करता है। आयात होने वाले एपीआई का उत्पादन शुरू होने से निश्चित रूप से भारत पूरी तरह से फार्मा सेक्टर में आत्मनिर्भर हो जाएगा।