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देखते रह जाएंगे चीन और अमेरिका, अगले 25 साल में भारत बन सकता है मैन्युफैक्चरिंग का पावरहाउस

वर्तमान में भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और लक्ष्य 2047 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का है। किसी भी देश को यह लक्ष्य हासिल करने के लिए उसे अपने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को मजबूत करना ही होगा।

By Gaurav KumarEdited By: Gaurav KumarUpdated: Fri, 02 Jun 2023 08:00 PM (IST)
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India will become manufacturing powerhouse in next 25 years

नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क: ग्लोबल परिस्थितियों और हाल ही में भारत के पक्ष में आए कई आंकड़ों से यह साफ देखा जा सकता है कि आने वाले समय में भारत मैन्युफैक्चरिंग का हब बन जाएगा। फिलहाल, देश आजादी के 75 साल के उपलक्ष्य पर आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है।

25 साल के बाद यानी आजादी के 100 वर्ष पूरे होने पर भारत न सिर्फ शताब्दी वर्ष मना रहा होगा, बल्कि दुनिया का नेतृत्व भी कर रहा होगा। हाल ही में भारत, यूके को पछाड़ कर दुनिया की पाचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है और ऐसी उम्मीद की जा रही है कि वर्ष 2047 तक भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिए 15 ट्रिलियन डॉलर से अधिक की जीडीपी हासिल कर लेगा। 

उम्मीद की किरण है भारत

भारत की ग्लोबल तस्वीर का अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि ग्लोबल मंदी के बीच भारत एक इकलौता देश है जिसकी अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है। यह निश्चित तौर पर न सिर्फ भारत, बल्कि दुनिया भर के मैन्युफैक्चरिंग बिजनेस के लिए उम्मीद की किरण है।

ग्लोबल इकोनॉमी बनने के लिए मैन्युफैक्चरिंग जरूरी

अगर भारत साल 2047 तक 20 ट्रिलियन डॉलर के अनुमानित लक्ष्य तक पहुंचना चाहता है तो उसके लिए विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि होनी बहुत जरूरी है। भारत इस सफर को अपने सही फैसले और सही उपायों और कठोर निष्पादन के साथ भारत का विनिर्माण क्षेत्र 4.5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच सकता है, जिससे इसकी जीडीपी हिस्सेदारी 22 प्रतिशत हो सकती है।

विनिर्माण बढ़ाने के लिए इन क्षेत्रों में विकास करने की होगी जरूरत

फ्यूचर रेडी इन्फ्रास्ट्रकचर पर करना होगा फोकस

भारत को विनिर्माण में आगे बढ़ने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है अपने इन्फ्रास्ट्रकचर को भविष्य के लिए तैयार रखना और लॉजिस्टिक कॉस्ट को कम करना है। भारत का लक्ष्य उद्योग केंद्रित बिजनेस के लिए भारत को 1.2 बिलियन डॉलर के निवेश के साथ-साथ साल 2030 तक रसद लागत को सकल घरेलू उत्पाद के 8 प्रतिशत तक कम करने का है।

लॉजिस्टिक कॉस्ट को कम करने को लेकर केंद्र सरकार ने पिछले साल ही नेशनल लॉजिस्टिक पॉलिसी को लॉन्च किया है, ताकि फैक्ट्री से निकलने वाले सामान की ढुलाई पर लागत में कमी आए। इसके अलावा भारत के व्यापारी आसानी से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपना सामान कम कीमत पर बेच पाएं।

प्रतिस्पर्धा बढ़ाने पर देना होगा ध्यान

भारत के पास फार्मास्यूटिकल्स, रसायन, वस्त्र और परिधान और ऑटोमोटिव में भारत के पास काफी अनुभव है।

हालांकि, मेगा-स्केल सुविधाओं के संदर्भ में गैप साफ देखा जा सकता है। भारत को इन गैप को ध्यान में रखते हुए अनुभवी सेक्टर पर ध्यान देने की जरूरत है जिसमें उसे महारथ हासिल है ताकी इन सेक्टर में कोई और देश आगे ना बढ़े।

इन क्षेत्रों में पकड़ बनाने की होगी जरूरत

नवीकरणीय ऊर्जा, एयरोस्पेस, और हाई-टेक सेमीकंडक्टर्स में भारत के पास फिलहाल अभी उतना अनुभव नहीं है लेकिन इस दिशा में भी सरकार ने सोचना शुरू कर दिया है, नतीजतन भारत में ग्लोबल कंपनियां अब मैन्युफैक्चरिंग के लिए राजी भी हो रही है। एपल, सैमसंग जैसी बड़ी कंपनियां अब धीरे-धीरे अपने उत्पाद भारत से ही पुरी दुनिया में बेच रही है।

भारत को अगली पीढ़ी की जरूरत वाले सेक्टर जिसमें टेक का बहुत बड़ा योगदान होने वाला है उसपर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। भारत को ठोस नींव के निर्माण के लिए अनुसंधान एवं विकास, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण में निवेश, वैश्विक गठजोड़ और शिक्षा, उद्योग और सरकार के सहयोग के साथ-साथ निजी निवेश को प्रोत्साहित करने पर ध्यान देने की जरूरत है।

स्कील डेवलपमेंट पर देना होगा ध्यान

भारत को अगर विनिर्माण क्षेत्र में आगे बढ़ना है तो देश को इंडस्ट्री-रेडी वर्कफोर्स बनाने की सख्त जरूरत है।

इसके लिए संस्थानों को पाठ्यक्रम, कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है, ताकि आने वाला युग इंडस्ट्री-रेडी रहे और विनिर्माण में सहायता दे पाए।