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Exclusive: भारत ही बनेगा सेमीकंडक्टर क्षेत्र में अगला वैश्विक केंद्र, IT मंत्री अश्विनी वैष्णव से खास बातचीत

सेमीकंडक्टर उद्योग जिस तरह का है वह हमेशा वैश्विक रहेगा। एक सेमीकंडक्टर बनाने के लिए हमें 16000 विभन्न तरह की चीजें चाहिए। कई तरह की गैस चाहिए अलग किस्म का पानी चाहिए बेहद सूक्ष्मता से व अत्यंत सफाई से काम करने वाली प्रौद्योगिकी चाहिए। अभी तो देश में लगने वाले चारों संयंत्रों की रोजाना निगरानी करनी है ताकि इन्हें समय पर स्थापित किया जा सके।

By Jagran News Edited By: Praveen Prasad Singh Updated: Fri, 01 Mar 2024 08:13 PM (IST)
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'पिछले दस वर्षों में हम अपनी जरूरत का 90 फीसद मोबाइल फोन भारत में ही बनाने लगे हैं।'
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्‍ली। Semiconductor Unit in India पीएम नरेन्द्र मोदी (PM Narendra Modi) की अध्यक्षता में कैबिनेट की हुई बैठक में देश में एक साथ तीन सेमीकंडक्टर यूनिट (Semiconductor Unit) लगाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी गई है। 1.26 लाख करोड़ रुपये के निवेश से लगाई जाने वाली इन परियोजनाओं के बारे में आइटी व संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव (Ashwini Vaishnaw) ने दैनिक जागरण के विशेष संवाददाता जयप्रकाश रंजन से बात की। उन्होंने बताया कि वर्ष 1962 से ही भारत में सेमीकंडक्टर निर्माण की फैक्ट्री लागने की कोशिश हो रही है, लेकिन अब यह इसलिए संभव हुआ है कि देश में एक निर्णायक नेतृत्व है। वह यह भी बताते हैं कि भारत को सेमीकंडक्टर उद्योग में एक बड़ी शक्ति बनने से कोई नहीं रोक सकेगा लेकिन इसके लिए अभी लंबा रास्ता तय करना है।

पेश हैं इस बातचीत के अंश:

दुनिया के कई देश सेमीकंडक्टर उद्योग में स्थापित होने की होड़ में हैं, क्या भारत उनसे प्रतिस्पर्धा कर सकेगा?

सेमीकंडक्टर निर्माण में विशेषज्ञता ही भविष्य में किसी देश की आर्थिक प्रगति को बहुत हद तक तय करेगा। जहां तक भारत की बात है तो हम निश्चित तौर पर इस क्षेत्र में एक बड़ा वैश्विक केंद्र बनने जा रहे हैं। मेरे भरोसे के पीछे कई वजहें हैं। पहला इस उद्योग की पहली जरूरत है डिजाइन इंजीनियरों की। यहां दुनिया में जितने सेमीकंडक्टर उद्योग से जुड़े इंजीनियर हैं उनमें से एक तिहाई (संख्या करीब तीन लाख) भारत में ही है। हमने 104 विश्वविद्यालयों में सेमीकंडक्टर उद्योग के पाठ्यक्रम चलाने की शुरुआत कर दी है, इससे बेहतरीन इंजीनियरों की आपूर्ति और बढ़ेगी। दूसरा, इस उद्योग के लिए चाहिए फैब्रिकेशन सेंटर।

एक दिन पहले हमने तीन फैब केंद्र बनाने का फैसला किया है। माइक्रोन का पहले से है। तीसरा होता है एटीएमपी यानी चिप बनाना, उनकी टेस्‍ट‍िंग करना, मार्किंग करना और पैकेजिंग करके अंतिम उत्पाद बनाना। हमारे पास अब तीनों इकोसिस्टम हो गये हैं। मेरी बात दुनिया की कंपनियों से लगातार हो रही है और मैं यह बता सकता हूं कि अब सब यह मानने लगे हैं कि सेमीकंडक्टर निर्माण का अगला वैश्विक केंद्र भारत ही है।

क्या सिर्फ इन तीनों क्षेत्र में फैक्ट्री लगाने से ही सेमीकंडक्टर उद्योग में आत्मनिर्भर बन जाएंगे या ताईवान जैसी वैश्विक शक्ति बन सकते हैं?

देखिए सेमीकंडक्टर उद्योग जिस तरह का है वह हमेशा वैश्विक रहेगा। एक सेमीकंडक्टर बनाने के लिए हमें 16,000 विभन्न तरह की चीजें चाहिए। कई तरह की गैस चाहिए, अलग किस्म का पानी चाहिए, बेहद सूक्ष्मता से व अत्यंत सफाई से काम करने वाली प्रौद्योगिकी चाहिए। यह फैसला सिर्फ एक महीने या कुछ महीने का नहीं है बल्कि पीएम मोदी के नेतृत्व में हम कई वर्षों से सेमीकंडक्टर उद्योग की वैश्विक कंपनियों को आकर्षित करने की कोशिश में है। मैंने खुद भारतीय कंपनियों के साथ उनकी मुलाकात कराई है, गैस, रसायन उद्योग से मुलाकात कराने में व्यस्त था ताकि उनकी जरूरत के मुताबिक सामान उन्हें मिल सके। इन दोनों ने अपनी जरूरतों के मुताबिक सामंजस्य बिठाया।

पीएम मोदी का साफ निर्देश था कि हमें इस उद्योग के लिए दो-चार वर्षों के लिए नहीं बल्कि 20 वर्षों के रोडमैप पर काम करना होगा। हम ऐसा ही कर रहे हैं। इन चार कंपनियों के अलावा हमारे पास दूसरी कई कंपनियों के प्रस्ताव है। मेरा अनुभव बता रहा है कि 10 वर्ष पहले ये उद्योग यह पूछता का भारत क्यों जाएं। लेकिन अब यह पूछ रहे हैं कि हम भारत कब आएं? यह भी मत भूलिए कि अमेरिका व यूरोपीय संघ जैसे देश सेमीकंडक्टर उद्योग को भारी-भरकम सब्सिडी दे रहे हैं फिर भी ये भारत को तवज्जो दे रहे हैं।

इस फैसले के बाद अगला कदम क्या होगा?

अभी तो देश में लगने वाले चारों संयंत्रों की रोजाना निगरानी करनी है ताकि इन्हें समय पर स्थापित किया जा सके। हमने पिछले वर्ष मैक्रोन के संयंत्र का निर्माण कार्य 100 दिनों के भीतर शुरू करा दिया था और इन तीनों नये संयंत्रों में भी यहीं करना है। इन संयंत्रों के साथ लगने वाली दूसरी सहायक इकाइयों को चरणबद्ध तरीके से स्थापित करना है। इनमें से काफी कंपनियां हमारे साथ संपर्क में हैं।

चारों इकाइयों से जो चिप बनेंगे उनका लक्ष्य अलग-अलग उद्योग होंगे। जैसे असम में टाटा समूह की कंपनी टीएसएटी का संयंत्र दुनिया की सभी ऑटोमोबाइल कंपनियों को अपने चिप्स की आपूर्ति करेगा। अगले पांच वर्षों में कई सारे प्लांट भी भारत में आएंगे। हम ऐसी व्यवस्था के तहत काम कर रहे हैं कि सेमीकंडक्टर उद्योग के कच्चे माल से लेकर पूरी तरह से तैयार निर्मित सेमीकंडक्टर भारत में तैयार हों।

भारत के दूसरे उद्योगों पर इसका क्या असर होगा?

हमारा अनुमान है कि भारत में अभी 25 अरब डॉलर के चिप्स की जरूरत है जो बहुत जल्द यह 100 अरब डॉलर की होगी। आज की तारीख में घर के पर्दे व स्वीच बोर्ड से लेकर इलेक्टि्रक कारों और अंतरिक्ष विमानों में चिप्स का इस्तेमाल होने लगा है। इवी का प्रचलन बढ़ने व प्रौद्योगिक का इस्तेमाल बढ़ने से इसकी मांग और बढ़ेगी। हमने जिन चार यूनिटों को मंजूरी दी है उससे देश में हर वर्ष 3,000 करोड़ यूनिट चिप्स बनाया जाएगा। इसका एक बड़ा हिस्सा निर्यात होगा।

साथ ही यह भी देखा जाता है कि जहां चिप्स यूनिट्स लगती हैं वहां इलेक्ट्रोनिक्स उद्योग तेजी से विकसित होता है। यह भारत में होगा क्योंकि यहां की आर्थिक विकास दर भी तेज है और बहुत बड़ी आबादी होने के वजह से मांग भी रहेगी। खास तौर पर इलेक्टि्रक वाहन उद्योग को बहुत ही प्रोत्साहन मिलेगा क्योंकि इनमें बहुत ज्यादा चिप्स का इस्तेमाल होगा। पिछले दस वर्षों में हम अपनी जरूरत का 90 फीसद मोबाइल फोन भारत में ही बनाने लगे हैं वैसा ही हम इलेक्टि्रक वाहन उद्योग, इलेक्ट्रोनिक्स उद्योग में दोहरा सकते हैं।