WTO की बैठक में घरेलू खाद्य सुरक्षा से कोई समझौता नहीं करेगा भारत, 26 फरवरी से शुरू होगा 13वां मिनिस्ट्रियल कॉन्फ्रेंस
विश्व व्यापार संगठन के 13वें मिनिस्ट्रियल कॉन्फ्रेंस में भारत घरेलू खाद्य सुरक्षा से कोई समझौता नहीं करने जा रहा है। भारत किसी भी देश के दबाव में आकर खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम में कोई कटौती नहीं करने वाला है। वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक कोई भी देश अपनी घरेलू खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए खाद्य निर्यात पर प्रतिबंध लगा सकता है और भारत भी यही कर रहा है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। विश्व व्यापार संगठन (WTO) के 13वें मिनिस्ट्रियल कॉन्फ्रेंस (MC) में भारत घरेलू खाद्य सुरक्षा से कोई समझौता नहीं करने जा रहा है। भारत किसी भी देश के दबाव में आकर खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम में कोई कटौती नहीं करने वाला है। 164 सदस्य देशों वाले डब्ल्यूटीओ का 13वां एमसी आगामी 26-29 फरवरी को अबू-धाबी में होने जा रहा है।
WTO की सर्वोच्च बैठक है मिनिस्ट्रियल कॉन्फ्रेंस
इस सम्मेलन में विकसित देश भारत द्वारा गेहूं व चावल जैसे अनाज के निर्यात पर रोक लगाने के फैसले पर सवाल खड़ा कर सकते हैं। आस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड जैसे देश भारत के इस फैसले का पहले से विरोध कर रहे हैं। इन देशों का कहना है कि भारत के इस फैसले से वैश्विक स्तर पर अनाज की कीमत बढ़ रही है। मिनिस्ट्रियल कॉन्फ्रेंस डब्ल्यूटीओ की सर्वोच्च बैठक है।
भारत के फैसले को नहीं दी जा सकती चुनौती
वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक, कोई भी देश अपनी घरेलू खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए खाद्य निर्यात पर प्रतिबंध लगा सकता है और भारत भी यही कर रहा है। इस फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती है।यह भी पढ़ें: साढ़े तीन साल में 217 आइटम पर लगेगा क्वालिटी कंट्रोल, चीन से आयात होंगे बंद
सूत्रों के मुताबिक, डब्ल्यूटीओ के 13वें एमसी में भारत अनाजों के पब्लिक स्टाक होल्डिंग (PSH) पर स्थायी समाधान चाहता है और इसके बाद ही कृषि संबंधी किसी भी मुद्दे पर भारत बातचीत करने के लिए राजी होगा। भारत में किसानों से गेहूं व धान की खरीदारी सरकारी दरों पर की जाती है। कोरोना काल से पहले इन अनाज को राशन की दुकान से सस्ती दरों पर गरीबों को बेचा जाता था, लेकिन कोरोना काल से लेकर वर्तमान तक अनाज 80 करोड़ से अधिक गरीबों को मुफ्त में दिया जा रहा है। विकसित देशों को अनाज की खरीदारी व उसे सस्ती दर या मुफ्त में देने पर आपत्ति है। उनका कहना है कि इससे वैश्विक स्तर पर अनाज की पूरी सप्लाई चेन प्रभावित हो रही है।