विकास दर धड़ाम, महंगाई बेलगाम, पढ़े-लिखे लोग बेरोजगार
संप्रग सरकार ने अर्थव्यवस्था को ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है जहां से इसे आगे ले जाना अगली सरकार के लिए चुनौती भरा काम होगा। अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के 10 साल के शासन में महंगाई बेकाबू रही और युवाओं के लिए नौकरियों का टोटा पड़ गया। शहरी इलाकों में खासकर पढ़े-लिखे युवाओं क
By Edited By: Updated: Thu, 06 Mar 2014 09:16 AM (IST)
हरिकिशन शर्मा, नई दिल्ली। संप्रग सरकार ने अर्थव्यवस्था को ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है जहां से इसे आगे ले जाना अगली सरकार के लिए चुनौती भरा काम होगा। अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के 10 साल के शासन में महंगाई बेकाबू रही और युवाओं के लिए नौकरियों का टोटा पड़ गया।
शहरी इलाकों में खासकर पढ़े-लिखे युवाओं के लिए बेरोजगारी काफी बढ़ गई। संप्रग-एक के दौरान जिस तेज विकास दर का बखान सरकार के प्रबंधक करते थे, दूसरा कार्यकाल पूरा होते-होते वह भी दस साल के न्यूनतम स्तर पर आ गई। पढ़ें : केंद्रीय कर्मियों पर चुनावी डोरे, डीए में इजाफा कांग्रेस पार्टी ने 2004 के लोकसभा चुनाव के दौरान अपने घोषणापत्र में आठ से 10 फीसद विकास दर का वादा किया था। वर्ष 2009 के घोषणापत्र में भी उसने नौ फीसद विकास दर को कायम रखने, युवाओं को नौकरियां देने और महंगाई नीचे रखने का वादा दोहराया।
पढ़ें : दस साल में भी नहीं बना महंगाई रोकने का तंत्र संप्रग-एक में 2005-08 के बीच विकास दर नौ फीसद से ऊपर रही लेकिन संप्रग-दो में एक के बाद एक घोटाले के सामने आने और नीतिगत अनिर्णय की स्थिति के कारण आखिरी दो वर्षो में विकास दर लुढ़क कर 4.5 फीसद के करीब आ गई।
महंगाई के मोर्च पर भी संप्रग सरकार पूरे दस साल जूझती रही। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया और प्रधानमंत्री के दूसरे सलाहकार जनता को हर साल यह ढाढस बंधाते रहे कि मार्च के अंत तक महंगाई नीचे आ जाएगी लेकिन हर बार यह छलावा साबित हुआ। पढ़ें : देश में बढ़ी दुनिया में घटी सोने की मांग संप्रग-दो में एक दौर ऐसा भी आया जब थोक महंगाई दर लगातार 23 महीने तक आठ फीसद से ऊपर रही। खुदरा महंगाई दर तो इससे भी काफी ऊपर रही। रोजगार के मामले में भी संप्रग सरकार का प्रदर्शन उम्मीद के मुताबिक नहीं रहा। कांग्रेस पार्टी ने युवाओं को प्रोडक्टिव जॉब देने की बात कही थी। मगर संप्रग-एक में विनिर्माण क्षेत्र में नौकरियां बढ़ने की बजाय 50 लाख कम हो गई। नेशनल सैंपल सर्वे की ताजा रिपोर्ट बताती है कि संप्रग-दो के दौरान शहरी क्षेत्रों खासकर पढ़े लिखे युवाओं के लिए बेरोजगारी बढ़ी है। रिजर्व बैंक के आंकड़े भी बताते हैं कि सार्वजनिक क्षेत्र में रोजगार के अवसरों में कमी आई है।