सस्ते Crude Oil से भारत की चांदी; 60 हजार करोड़ की होगी बचत, रुपये को भी मिलेगी मजबूती
आर्थिक सर्वे 2024 में मौजूदा वित्त वर्ष में कच्चे तेल का औसत मूल्य 84 डॉलर प्रति बैरल रहने का अनुमान जताया गया था। हालांकि कच्चे तेल के मूल्य में लगातार नरमी बनी हुई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में यह 70 से 75 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर बना हुआ है। अगर कीमतें इस सीमा में स्थिर रहती हैं तो भारत कच्चे तेल के आयात पर भारी बचत कर सकेगा।
बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। भारत अपनी क्रूड ऑयल की जरूरत का बड़ा हिस्सा यानी तकरीबन 80 फीसदी आयात से पूरा करता है। अगर कच्चा तेल आयात करने वाले देशों की लिस्ट देखें, तो इसमें चीन और अमेरिका के बाद भारत तीसरे नंबर पर है। इससे साफ जाहिर है कि क्रूड इंपोर्ट का सरकारी खजाने पर भारी बोझ डालता है। लेकिन, अब यह बोझ में काफी कमी आने वाली है और इसका कारण है अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट।
भारत को कितना फायदा होगा
अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में नरमी बनी हुई है। इससे सरकार मौजूदा वित्त वर्ष 2024-25 में तेल आयात पर पिछले वित्त वर्ष के मुकाबले 60 हजार करोड़ रुपये की बचत कर सकती है। एक अनुमान के मुताबिक, कच्चे तेल में एक बैरल प्रति डॉलर की गिरावट से भारत के वार्षिक आयात बिल में 13 हजार करोड़ रुपये की बचत होती है।
आर्थिक सर्वे 2024 में मौजूदा वित्त वर्ष में कच्चे तेल का औसत मूल्य 84 डॉलर प्रति बैरल रहने का अनुमान जताया गया था। हालांकि, कच्चे तेल के मूल्य में लगातार नरमी बनी हुई है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में यह 70 से 75 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर बना हुआ है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर कीमतें इस सीमा में स्थिर रहती हैं तो भारत चालू वित्त वर्ष की शेष अवधि में कच्चे तेल के आयात पर भारी बचत कर सकेगा।
रुपये को भी मिलेगी मजबूती
केडिया एडवाइजरी के निदेशक अजय केडिया का कहना है कि 2025 में कच्चे तेल की कीमतों में नरमी की उम्मीद है और इनके 80 डॉलर प्रति बैरल से नीचे रहने का अनुमान है। यदि यह कीमत मार्च 2025 तक बरकरार रहती है तो इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी लाभ होगा।भारत के विदेशी मुद्रा भंडार का एक बड़ा हिस्सा कच्चे तेल की खरीद में इस्तेमाल किया जाता है। आयात बिल में कमी से भारतीय रुपया अन्य प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले मजबूत हो सकता है। इस समय डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 83.60 के स्तर पर स्थिर है, जबकि विकसित देशों की मुद्राओं में काफी गिरावट आई है। आयात बिल में कमी से सरकार के पास निवेश के लिए भी ज्यादा पैसा उपलब्ध होगा।
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