जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। चुनावी तैयारी में जुटी केंद्र सरकार को महंगाई के मोर्चे पर एक और राहत भरी खबर मिली है। खुदरा महंगाई के बाद अब थोक मूल्यों पर आधारित महंगाई की दर (डब्ल्यूपीआइ) में भी भारी गिरावट दर्ज की गई है। जनवरी में थोक महंगाई की दर पिछले आठ माह के न्यूनतम स्तर 5.05 फीसद पर आ गई है। पिछले हफ्ते खुदरा महंगाई की दर दो
By Edited By: Updated: Fri, 14 Feb 2014 08:01 PM (IST)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। चुनावी तैयारी में जुटी केंद्र सरकार को महंगाई के मोर्चे पर एक और राहत भरी खबर मिली है। खुदरा महंगाई के बाद अब थोक मूल्यों पर आधारित महंगाई की दर में भी भारी गिरावट दर्ज की गई है। जनवरी में थोक महंगाई की दर पिछले आठ माह के न्यूनतम स्तर 5.05 फीसद पर आ गई है। पिछले हफ्ते खुदरा महंगाई की दर दो वर्षो के न्यूनतम स्तर पर आई थी। महंगाई में काफी हद तक कमी आने से अब सबकी नजर रिजर्व बैंक पर टिकी है कि क्या वह ब्याज दरों को घटाकर उद्योग जगत व आम जनता को महंगे कर्ज से राहत देगा या नहीं।
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दस साल में नहीं बना महंगाई रोकने का तंत्र जिस तरह दो माह पहले थोक महंगाई की दर को 10 फीसद के करीब पहुंचाने में प्याज की भूमिका सबसे अहम रही थी, उसी तरह से इसे नीचे लाने में भी प्याज सहित हरी सब्जी की कीमतों में नरमी ही प्रमुख वजह रही है। जनवरी में हरी सब्जी की थोक कीमत में 21.36 फीसद, आलू की कीमत में 23.04 फीसद और प्याज की कीमत में 16.56 फीसद की कमी आई है। अगर पिछले चार माह की बात करें तो प्याज की थोक कीमतें 300 फीसद गिरी है। सितंबर 2013 में प्याज की कीमत में 336 फीसद का इजाफा हुआ था। उसके बाद हुए चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारी मात का सामाना करना पड़ा था। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सहित कांग्रेस के अन्य वरिष्ठ नेता स्वीकार कर चुके हैं कि पार्टी की हार में महंगाई की भूमिका अहम रही है। महंगाई के ढीले पड़ते तेवर देख उद्योग जगत ने इस बात की पैरवी की है कि अब रिजर्व बैंक को कर्ज की दरों में कटौती कर आर्थिक सुस्ती को दूर करने में मदद करनी चाहिए।
फिक्की अध्यक्ष सिद्धार्थ बिड़ला के मुताबिक, नए माहौल में हमें औद्योगिक क्षेत्र की दशा सुधारने को वरीयता देनी चाहिए। मौद्रिक नीति के जरिये कदम उठाने के साथ ही अन्य सुधारवादी उपायों को भी बढ़ाने में अब देरी नहीं करनी चाहिए। एसोचैम के अध्यक्ष राणा कपूर का कहना है कि कठोर मौद्रिक नीति को अब बदलने का समय आ गया है। कर्ज को सस्ता करने से पूरे माहौल को बदलने में मदद मिलेगी।
गौरतलब है कि आरबीआइ पिछले चार माह में तीन बार ब्याज दरों को बढ़ा चुका है। जनवरी 2013 में रेपो रेट को बढ़ाते हुए आरबीआइ गवर्नर रघुराम राजन ने कहा था कि अगर महंगाई की दर कम होती है तो ब्याज दरों में कटौती पर वह विचार कर सकते हैं।