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आखिर कम क्यों नहीं हो रही है महंगाई? आरबीआइ के रेपो रेट बढ़ाने का नहीं दिख रहा है असर, क्या है इसकी वजह

रेपो दरों में होने वाली लगातार बढ़ोतरी के बावजूद महंगाई कम होने का नाम नहीं ले रही है। सितंबर में खुदरा महंगाई दर बढ़कर 7.41 प्रतिशत हो गई है जबकि अगस्त में यह 7 प्रतिशत थी। सितंबर 2021 में यह 4.35 फीसद थी।

By Siddharth PriyadarshiEdited By: Updated: Fri, 14 Oct 2022 12:34 AM (IST)
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Why inflation is not cooling down after repeated repo rate hikes
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। महंगाई एक ऐसा शब्द है जिसे सुनते ही एक अजीब तरह की नकारात्मकता से मन भर जाता है। लेकिन आर्थिक व्यवस्था की यह एक कड़वी हकीकत है, जिससे सभी देशों और बाजारों को दो-चार होना ही पड़ता है। सितंबर महीने में भारत की खुदरा मुद्रास्फीति पिछले पांच महीने के उच्चतम स्तर पर आकर 7.41 फीसद हो गई।

आरबीआइ द्वारा रेपो रेट में की जाने वाली लगातार बढ़ोतरी के बाद भी मुद्रास्फीति की दर ऊंची बनी हुई है। इसको देखते हुए कहा जा सकता है कि शायद रेपो दरों में बार-बार की जाने वाली बढ़ोतरी का महंगाई पर कोई असर नहीं हो रहा है। लेकिन क्या यह पूरी तरह सच है?

30 सितंबर को आरबीआइ ने मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक में पॉलिसी रेपो दर को 50 आधार अंक बढ़ाकर 5.90 प्रतिशत करने का निर्णय लिया। मई में रेपो दर में 40 बेसिस पॉइंट्स की अचानक बढ़ोतरी के बाद जून और अगस्त महीने में आरबीआइ ने 50-50 आधार अंकों की वृद्धि की है। रेपो रेट बढ़कर अब अप्रैल-मई 2019 के स्तर के पास चला गया है। ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि आखिर आधार दरों में वृद्धि का कोई जमीनी असर क्यों नहीं दिखाई दे रहा है।

रेपो दरें मुद्रास्फीति को कैसे प्रभावित करती हैं

रेपो दर वह है जिस पर आरबीआइ वाणिज्यिक बैंकों को उधार देता है, जबकि रिवर्स रेपो वह दर है जिस पर केंद्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों से पैसा लेता है। आरबीआइ द्वारा हाल के दिनों में की गई बढ़ोतरी से पहले रेपो दरों में आखिरी बार दिसंबर 2020 में संशोधित किया गया था। तब रेपो 4 प्रतिशत और रिवर्स रेपो को 3.35 प्रतिशत पर रखा गया था, लेकिन उसके बाद से स्थितियां तेजी से बदलने लगीं।

पिछले एक साल में मुद्रास्फीति दर में भारी बदलाव आया है। आमतौर पर मुद्रास्फीति में तेजी के दौरान, आरबीआइ वाणिज्यिक बैंकों को धन उधार लेने से हतोत्साहित करने के लिए रेपो दर में वृद्धि करता है। इस प्रकार रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था में धन की आपूर्ति को कम करता है और इससे अंततः मुद्रास्फीति को नीचे लाने में मदद मिलती है।

क्या वाकई ऐसा हो रहा है

सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन द्वारा जारी आंकड़ों से पता चलता है कि मुद्रास्फीति की दर 2021 में 4.06 प्रतिशत और 6.26 प्रतिशत के बीच रही। मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2021 में मुद्रास्फीति की दर मई में सबसे अधिक थी, जबकि दूसरे लॉकडाउन के दौरान यह अक्टूबर में घटकर 4.48 प्रतिशत पर आ गई। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मॉर्गन स्टैनली से जुड़े अर्थशास्त्री भास्कर देवाशीष कहते हैं, "सबसे जरूरी बात जो याद रखी जानी चाहिए वो यह है कि अकेले मौद्रिक नीति के दम पर मुद्रास्फीति को कम नहीं किया जा सकता। आरबीआइ अपनी ओर से भरसक कोशिश कर रहा है लेकिन कई बार दरों में कमी या बढ़ोतरी के बाद भी महंगाई बढ़ती चली जाती है। इसके पीछे आपूर्ति का संकट और खाद्य कीमतों का बहुत बड़ा रोल होता है। कई बार तो स्थिति ईंधन की ऊंची कीमत के कारण भी बदतर होने लगती है।"

क्यों बढ़ रही हैं कीमतें

बतौर पॉलिसी एक्सपर्ट बैंक ऑफ महाराष्ट्र के साथ लंबे समय तक काम कर चुकीं अनंदिता देशमुख का मानना है कि महंगाई का पूरा खेल असल में डिमांड और सप्लाई पर टिका है। वह कहती हैं, "वैश्विक बाजार में कमोडिटी की कीमतें बढ़ने, करों में वृद्धि, कच्चे माल की लागत बढ़ने आदि जैसे कई कारकों से कीमतें बढ़ी हैं। वर्तमान मुद्रास्फीति मांग पक्ष के मुद्दों के बजाय आपूर्ति के कारण है। भले ही हम लाख दावे करें कि रेपो दर बढ़ गई है, इसलिए मुद्रास्फीति में कमी आएगी, लेकिन यह किसी कल्पना से कम नहीं है। सप्लाई चेन के वैश्विक संकट और हाल के दिनों में अनाज की कम उपज को देखते हुए अभी महंगाई के और बढ़ने की आशंका है। अब फसलों का उत्पादन और तेल या कमोडिटी की कीमतों का प्रबंधन तो आरबीआइ के नियंत्रण में नहीं है!"

जून-जुलाई के महीने में सूखा और अक्टूबर में बेमौसम बरसात ने स्थिति को कहीं अधिक नुकसान पहुंचाया है। आने वाले महीनों में कई राज्यों में अनाज और फल-सब्जियों के उत्पादन पर इसका असर दिखेगा, बल्कि यूं कहें कि कहीं-कहीं तो दिखना भी शुरू हो गया है।

क्या अभी और होगी रेपो दरों में वृद्धि

लगातार बढ़ती महंगाई को देखते हुए यह सवाल उठना बेहद स्वाभविक है कि क्या दरों में आगे बढ़ोतरी होगी? भास्कर देवाशीष बताते हैं कि रेपो दरों में वृद्धि की भी एक लिमिट है। धन संकट से जूझ रहे लोगों का रिएक्शन पैटर्न कई बार उलटा असर करता है। हो सकता है कि एक समय ऐसा आए कि लोग सामान खरीदने के लिए पैसे उधार लेना शुरू कर दें। इससे मुद्रास्फीति में और तेजी आएगी।

जहां कुछ लोग महंगाई को लेकर चिंतित हैं, वहीं जो लोग बैंक से कर्ज ले चुके हैं, वे नहीं चाहते कि रेपो दर बढ़े क्योंकि इससे उनकी ईएमआई बढ़ती है। कहीं न कहीं एक संतुलन बनाने की जरूरत है। इस समय खुदरा वस्तुओं की कीमतों का अधिकाश हिस्सा अप्रत्यक्ष करों का है। अगर रेपो रेट इतनी बढ़ा दी जाए कि लोगों के हाथ में धन ही न बचे तो फिर वे बढ़े हुए खर्चों को कैसे पूरा करेंगे। आखिर जेब में पैसा होगा तो जिंदगी की समस्याओं से निपटना भी काफी हद तक आसान हो जाएगा।

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