कच्चे तेल की कीमतों में चल रही है अस्थिरता, क्रूड उत्पादन में और कटौती न करने का आग्रह कर रहा भारत
भारत ने तेल उत्पादक देशों से आग्रह किया है कि वह आने वाले दिनों में क्रूड उत्पादन में और कटौती नहीं करें। आने वाले दशकों में दुनिया में कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार देश होगा। ऐसे में तेल उत्पादक देशों को एक बड़े खरीददार देशों के हितों का भी ख्याल रखना होगा। आइये इसके बारे में विस्तार से जानते है।
By Jagran NewsEdited By: Ankita PandeyUpdated: Fri, 10 Nov 2023 07:16 PM (IST)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली।अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में चल रही अस्थिरता के बीच भारत ने तेल उत्पादक देशों से आग्रह किया है कि वह आने वाले दिनों में क्रूड उत्पादन में और कटौती नहीं करें। ऐसा करने से पूरी दुनिया की विकास दर को लेकर अनिश्चतता पैदा होगी। यह बात पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने विएना में गुरुवार को ओपेक देशों के साथ भारत की विशेष बैठक में कही है।
कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार होगा भारत
भारत ने ओपेक देशों को यह भी बताया है कि वह आने वाले दशकों में दुनिया में कच्चे तेल का सबसे बड़ा खरीदार देश होगा और तेल उत्पादक देशों को एक बड़े खरीददार देशों के हितों का भी ख्याल रखना होगा। यह भारत और ओपेक के बीच छठी ऊर्जा वार्ता थी।अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें अभी 80 डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुंच गई हैं लेकिन सितंबर, 2023 में यह 98 डॉलर प्रति बैरल के करीब थी। माना जा रहा है कि सऊदी अरब, रूस जैसे बड़े तेल उत्पादक देश क्रूुड की कीमतों को बढ़ाना चाहती हैं। इसलिए उन्होंने अपनी तरफ से क्रूड उत्पादन को घटाने का फैसला किया है।
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विकास दर पर तेल की कीमतों का असर
भारत की आर्थिक विकास दर पर कच्चे तेल की कीमतों का बहुत ही असर होता है। भारत अपनी जरूरत का 87 फीसद क्रूड विदेशों से आयात करता है। इस वजह से क्रूड की कीमत में जब तेजी होती है तो ना सिर्फ देश के विदेशी मुद्रा भंडार पर इसका नकारात्मक असर पड़ता है बल्कि आम जनता को भी पेट्रोल-डीजल-रसोई गैस के लिए ज्यादा कीमत देना पड़ता है। ये सारे मुद्दे ओपेक के समक्ष भारत बार बार उठाता है।
पेट्रोलियम मंत्री पुरी ने सोशिल मीडिया साइट एक्स पर लिखा है कि ओपेक के साथ कच्चे तेल के भावी खपत पर जारी रिपोर्ट पर भी चर्चा हुई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत वर्ष 2022 से वर्ष 2045 तक दुनिया में सबसे तेज गति से बढ़ती हुई इकोनमी बना रहेगा।इसकी औसत विकास दर 6.2 फीसद रहेगी और दुनिया में जितनी तेल की खपत होगी उसका 28 फीसद सिर्फ भारत में होगा। इस बैठक में तेल की उपलब्धता, कीमत व स्थिरता को लेकर भी चर्चा हुई है। यह वैश्विक ऊर्जा बाजार की स्थिरता के लिए जरूरी है। चूंकि भारत वैश्विक विकास दर और ऊर्जा मांग को दिशा देने वाला प्रमुख देश होगा इसलिए उसके लिए भी यह जरूरी है।
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