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IRDAI आखिर समझ गया, हेल्थ इंश्योरेंस पाने के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं होनी चाहिए

अगर आपकी उम्र 65 साल से अधिक है और आप हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी (Health Insurance) लेना चाहते हैं तो अब आसानी से ले सकेंगे। दरअसल बीमा नियामक इरडा (IRDAI) ने हेल्थ इंश्योरेंस खरीदने से संबंधित नियमों में बड़ा बदलाव किया है और पॉलिसी खरीदने वाले शख्स के लिए 65 साल आयु सीमा हटा दी है। लेकिन एक्सपर्ट का मानना है कि इरडा को यह काम काफी पहले कर देना चाहिए।

By Jagran News Edited By: Suneel Kumar Updated: Sun, 23 Jun 2024 10:30 AM (IST)
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हेल्थ इंश्योरेंस की सबसे अधिक आवश्यकता बुजुर्ग अवस्था में पड़ती है।

धीरेंद्र कुमार। हाल में इंश्योरेंस रेगुलेटर इरडा (IRDAI) ने एक मास्टर सर्कुलर में कहा था कि अब हेल्थ इंश्योरेंस पाने के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं होगी। सर्कुलर में कहा गया है कि पॉलिसीधारकों और संभावित ग्राहकों को व्यापक विकल्प देने के लिए बीमाकर्ताओं को कई तरह के प्रोडक्ट, ऐड-आन और राइडर ऑफर करने की जरूरत है।

इस पेशकश में सभी उम्र, सभी तरह की मेडिकल कंडीशन, पहले से मौजूद बीमारियों और गंभीर स्थितियों को शामिल किया जाना चाहिए। उन्हें एलोपैथी, आयुष सहित चिकित्सा और उपचार के बाकी सभी तरीकों को शामिल करना चाहिए। इसके अलावा सर्कुलर में पॉलिसीधारकों के हित में तमाम बातें कही गई हैं।

मैं लंबे समय से इरडा को शक की नजर से देखता रहा हूं, इसलिए मेरी पहली प्रतिक्रिया थी, 'ये सभी साफ-स्पष्ट बातें हैं! इन्हें सालों पहले क्यों नहीं किया गया? इन्हें पहले दिन से ही इंश्योरेंस रेग्युलेशन का हिस्सा क्यों नहीं बनाया गया?'' ये एक ईमानदार सवाल है और यही सवाल बहुत से हेल्थ इंश्योरेंस पालिसी लेने वालों का भी है।

जरा सोचिए, युवाओं की तुलना में बुजुर्ग ज्यादा बीमार पड़ते हैं और उनकी बीमारियां भी ज्यादा बड़ी होती हैं। ये व्यावहारिक रूप से हर उस बीमारी के बारे में सच है जो इंसानों को होती है। कैंसर और हृदय रोग जैसी जानलेवा बीमारियां मुख्य रूप से उम्र से जुड़ी बीमारियां हैं। कुछ युवा इससे पीड़ित जरूर हैं, लेकिन वे सिर्फ इसलिए ध्यान खींचते हैं क्योंकि वे अलग से दिखाई देते हैं।

हालांकि, अब तक, भारत का हेल्थ इंश्योरेंस कवरेज मोटे तौर पर 65 साल की उम्र में खत्म हो जाता है। इसका मतलब है कि बीमाकर्ता आपकी अच्छी सेहत वाली उम्र में आपका पैसा लेना चाहते हैं और फिर जब आपको असल में बुढ़ापे में कवरेज की जरूरत होगी, तो कवरेज देने से मना कर देते हैं। वैसे, इन बातों पर हैरान होने का कोई मतलब नहीं। भारत में इंश्योरेंस रेग्युलेशन का हमेशा से यही हाल रहा है।

बहुत पहले मुझे टेक्नोलॉजी पर लिखने वाले प्रसिद्ध अमेरिकी स्तंभकार राबर्ट एक्स ¨क्रजली के एक लेख में कुछ दिलचस्प बातें मिलीं। वे लिखते हैं: एक समय था जब बीमा कंपनियों के एक्चुअरी इंश्योरेंस रेट तय करने के लिए बीमारी और मृत्यु दर के आंकड़ों का अध्ययन करते थे। क्योंकि ज्यादातर, एक्चुअरी पॉलिसीधारकों के व्यापक समूहों से आगे जा कर हरेक व्यक्ति तक नहीं पहुंच पाते थे।

तो उस सिस्टम में, बीमा कंपनी का मुनाफा सीधे-सादे तरीके से बड़े स्तर पर बढ़ता था। इसलिए हेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां ज्यादा से ज्यादा पॉलिसीधारक पाना चाहती थीं, जिससे ज्यादा मुनाफा मिले। फिर, 1990 के दशक में, कंप्यूटिंग उस हद तक सस्ती हो गई जहां व्यक्तिगत स्तर पर संभावित स्वास्थ्य के नतीजों को कैलकुलेट करना संभव हो गया।

इसने हेल्थ इंश्योरेंस बिजनेस को रेट तय करने वाले से, कवरेज से इनकार करने वाला बना दिया। हेल्थ इंश्योरेंस बिजनेस मॉडल ज्यादा से ज्यादा लोगों को कवर करने से बदलकर, केवल स्वस्थ लोगों को इंश्योरेंस बेचने वाला हो गया।

ये प्रैक्टिस अब दुनिया भर की इंश्योरेंस इंडस्ट्री में और उनकी सभी ब्रांच में सामान्य बात है। ये अच्छा है कि इरडा ने उम्र की सीमा हटा दी है और उन सभी दूसरी अच्छी चीजों का जिक्र किया है जिन्हें मैने ऊपर लिखा है। हालांकि, हलवा खाने के बाद ही उसका स्वाद पता चलता है।

आइए इंतजार करें और देखें कि बुजुर्गों को असल में किस रेट और किन शर्तों पर इंश्योरेंस दिया जाता है और वास्तव में वो किस तरह का कवरेज पाते हैं। मुझे लगता है कि इन बदलावों का जमीनी स्तर पर कितना असर होगा, ये देखने में अभी कुछ साल लगेंगे। लेकिन मैं आपको भरोसा दिलाता हूं, मैं अपनी सांस थामकर नहीं बैठा हूं।

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