कृषि क्षेत्र में वादों की भरमार, फिर उन्हें पूरा करने के लिए पर्याप्त बजट क्यों नहीं?
बजट के एक दिन पहले आर्थिक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई थी कि सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी लगातार गिर रही है। इससे उम्मीद बंधी थी कि आम बजट में सरकार कृषि क्षेत्र की इस हिस्सेदारी को बढ़ाने का प्लान बताएगी लेकिन यहां पर भी झटका लगा। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के पहले बजट के मुकाबले इस बार कृषि क्षेत्र के लिए आवंटन घटा दिया।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव से पहले फरवरी के अंतरिम बजट में किसान कल्याण के लिए कई वादे किए गए थे। मगर आम बजट में बहुत कुछ स्पष्ट नहीं है। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने सातवें बजट में कृषि क्षेत्र को तो प्राथमिकता दी है, लेकिन कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र के लिए आवंटित 1.52 लाख करोड़ रुपये को पर्याप्त नहीं कहा जा सकता है, क्योंकि नई घोषणाओं पर अमल के लिए बड़ी राशि की जरूरत पड़ेगी।
कृषि शोध बजट पर्याप्त नहीं
कृषि एवं पशुपालन से जुड़े कई बड़े मुद्दों पर चुप्पी भी अखरती है। बजट में बताया गया है कि उत्पादन एवं उत्पादकता में तेज विकास के लिए शोध को प्रोत्साहित किया जाएगा। कृषि अनुसंधान परिषद के माध्यम से यही काम तो दशकों से किया जा रहा है।जलवायु के अनुकूल खेती के लिए भी लंबे समय से काम हो रहा है। आम बजट में कृषि शिक्षा एवं शोध के लिए 9941.09 करोड़ रुपये का आवंटन दिखाया गया है, लेकिन इसे पर्याप्त नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इस काम के लिए लगभग इतनी ही राशि (9876 करोड़) पिछले बजट में भी थी।
प्राकृतिक खेती का बजट भी कम
इसी तरह उत्पादकता बढ़ाने के लिए 32 फसलों की 109 नई किस्मों को विकसित करने का वादा किया गया है। लेकिन, यह काम भी एक-दो वर्षों में तो होने से रहा। विकसित देशों की उत्पादन दर से तुलना करें तो हम बहुत ही पीछे हैं। प्राकृतिक खेती से दो करोड़ किसानों को जोड़ने की बात कही गई है, लेकिन आश्चर्य यह कि इसके लिए सिर्फ 365 करोड़ रुपये का ही बजट रखा गया है, जो पिछले वर्ष से 94 करोड़ रुपये कम है।
बिना जोत वाले किसानों को भी इस बार के बजट से किसान सम्मान निधि की तर्ज पर राहत की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी है। ऐसे किसानों की संख्या भी अब करोड़ों में है।