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घरेलू स्तर पर भी मैन्यूफैक्चरिंग के लिए गुणवत्ता मानक तय करना जरूरी

क्लोदिंग से लेकर फुटवियर तक ऐसे कई सामान हैं जो अंतरराष्ट्रीय मानक तक पहुंच ही नहीं पा रहा है। फुटवियर इंडस्ट्री की ओर से तो खुलेआम इसका विरोध किया जा रहा है। ऐसे में वह विश्व बाजार तक कैसे अपनी धमक बना पाएगा यह बड़ा सवाल है। वाणिज्य विभाग की तरफ से खानेपीने की वस्तुओं को तैयार करने या उसे बाहर भेजने के दौरान किन चीजों का ख्याल रखना है।

By Jagran News Edited By: Yogesh Singh Updated: Fri, 19 Jul 2024 10:00 PM (IST)
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पिछले साल के अप्रैल-जून की तुलना में 1.48 प्रतिशत की गिरावट आ गई।

राजीव कुमार, नई दिल्ली। इस साल मार्च-अप्रैल में भारतीय मसाले की गुणवत्ता पर सिंगापुर समेत यूरोप के कुछ देशों ने सवाल उठा दिए और उसका नतीजा यह हुआ कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में मसाले निर्यात में पिछले साल के अप्रैल-जून की तुलना में 1.48 प्रतिशत की गिरावट आ गई जबकि पिछले तीन सालों से मसाले के निर्यात में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। मसाले से पहले चावल, आम जैसे खाद्य पदार्थ के अलावा बेबी क्लोथिंग, परफ्यूम स्प्रे, सॉल्ट लैंप जैसे आइटम यूरोप व अन्य देशों में गुणवत्ता में कमी की वजह से रिजेक्ट हो चुके हैं।

लेकिन उससे भी बड़ी बात यह है कि कई सामान तो देश के अंदर के उपभोक्ता ही खारिज कर रहे हैं। क्लोदिंग से लेकर फुटवियर तक ऐसे कई सामान हैं जो अंतरराष्ट्रीय मानक तक पहुंच ही नहीं पा रहा है। जबकि फुटवियर इंडस्ट्री की ओर से तो खुलेआम इसका विरोध किया जा रहा है। ऐसे में वह विश्व बाजार तक कैसे अपनी धमक बना पाएगा यह बड़ा सवाल है। अब वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय भारतीय माल को गुणवत्ता में कमी की वजह से रिजेक्ट होने से बचाने के लिए एक पोर्टल लांच करने जा रहा है जहां सभी देशों के गुणवत्ता मानक की जानकारी होगी। पोर्टल से निर्यातक जान पाएंगे कि निर्यात करने के लिए उनकी कैसी गुणवत्ता होनी चाहिए।

यही वजह है कि वाणिज्य विभाग की तरफ से खाने-पीने की वस्तुओं को तैयार करने या उसे बाहर भेजने के दौरान किन-किन चीजों का ख्याल रखना है, इस बारे में विस्तृत गाइडलाइंस तैयार किए जा रहे हैं। भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के साथ वाणिज्य विभाग की बैठकें की जा रही हैं। ऐसी व्यवस्था भी की जा रही है कि विदेशी खरीदार भारत में फल की खेती तक को देख सकेंगे। हालांकि इस बात पर भी सवाल उठाया जा रहा है कि सिर्फ विदेश ही क्यों, घरेलू स्तर पर मसाले समेत अन्य खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता की गारंटी क्यों नहीं सुनिश्चित की जा रही है। नया पोर्टल विदेशों में हमारे व्यापार को बढ़ावा देने में सहायक होगा यह तो अच्छी बात है।

भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआइटी) की सलाह पर गुणवत्ता नियंत्रण नियम लागू करने का फरमान जारी किया है। खिलौना, हवाई चप्पल व अन्य फुटवियर कूलर, इलेक्ट्रिक वाटर हीटर, वाटर मीटर, प्लास्टिक की बोतल, जैसे कई आइटम पर गुणवत्ता नियम लागू हो गए हैं या फिर होने वाले हैं। लेकिन यह घरेलू स्तर पर कितना प्रभावी है इसकी परख बाकी है। दरअसल फुटवियर कंपनियों का मानना है कि गुणवत्ता नियम लागू करने से उसकी कीमत बढ़ जाती है और उसका कारण यह है कि यहां फुटवियर निर्माण से जुड़ा पूरा क्लस्टर तैयार नहीं है।

यही बात कई अन्य उद्योगों की ओर से भी कही जा रही है। खाद्य वस्तुओं को लेकर तो घरेलू स्तर पर कोई मापदंड ही नहीं है। इसका एक रोचक पहलू तब दिखा था जब तत्कालीन उपभोक्ता मामलों के मंत्री राम विलास पासवान ने अपने घर आए सेब की गुणवत्ता पर सवाल खड़ा किया था लेकिन उसका कोई हल निकल पाया या नहीं यह सार्वजनिक नहीं है। बताया जाता है कि आयात को कम करने और घरेलू निर्माण को बढ़ावा देने के लिए सरकार की ओर से जो गुणवत्ता नियम लागू किए गए हैं उसके तहत विदेशी कंपनियों को भारत में अपना माल भेजने के लिए बीआईएस के अधिकारी को अपने देश में ले जाकर फैक्टरी का निरीक्षण करवा कर बीआईएस सर्टिफिकेट हासिल करना होगा।

बीआइएस ने गुणवत्ता नियम लागू करने के लिए लाइटर, बेबी डायपर, बेबी माउथ सकर जैसे 1000 से अधिक छोटे-छोटे ऐसे आइटम को चिन्हित किया है जिनका बड़े पैमाने पर आयात होता है। अगर घरेलू निर्माण को गुणवत्ता मापदंड के साथ विश्व बाजार में टिकने वाला माल तैयार करना है तो मैन्यूफैक्च¨रग का पूरा इकोसिस्टम तैयार करना होगा।