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जेम्स सिटी जयपुर में ज्वैलरी की चमक फीकी, छह हजार करोड़ के नुकसान का अनुमान

हीरे-जवाहरात भी बाहर के देशों में भेजे जाते रहे हैं। लेकिन कोरोना महामारी ने यहां के आभूषणों की चमक फीकी कर दी है।

By Manish MishraEdited By: Updated: Mon, 08 Jun 2020 11:25 AM (IST)
जेम्स सिटी जयपुर में ज्वैलरी की चमक फीकी, छह हजार करोड़ के नुकसान का अनुमान
जयपुर, जागरण संवाददाता। जयपुर पूरी दुनिया में जेम्स सिटी के नाम से भी जाना जाता है। यहां हीरे-जवाहरात की बड़ी मंडी है। यहां बनने वाले सोने, चांदी के आकर्षक गहने दुनिया के कई देशों में निर्यात होते रहे हैं। यहां से हीरे-जवाहरात भी बाहर के देशों में भेजे जाते रहे हैं। लेकिन कोरोना महामारी ने यहां के आभूषणों की चमक फीकी कर दी है। तांबे, पीतल व सोने-चांदी पर पॉलिस कर बनाई जाने वाली ज्वैलरी का काम पिछले तीन माह से पूरी तरह से बंद पड़ा है। 

राज्य सरकार और इस व्यवसाय से जुड़े लोगों का मानना है कि पांच से छह हजार करोड़ रुपये का झटका जयपुर के ज्वैलरी निर्यात को लगा है। करीब तीन लाख मजदूर इस कारोबार से जुड़े हुए थे जो पिछले तीन माह से बेरोजगार बैठे हैं। अनलॉक-01 शुरू तो हुआ है, लेकिन जयपुर के जिस जौहरी बाजार में गहनों की मंडी है, वहां अभी भी कर्फ्यू है। ऐसे में काम नहीं हो पा रहा है। आभूषणों की पॉलिशिंग सहित अन्य कार्यों में 25 हजार से अधिक बंगाली कारीगर लगे हुए थे। ये कारीगर सरकार द्वारा चलाई गई ट्रेन व बसों से अपने घर चले गए। 

फैडरेशन ऑफ राजस्थान एक्सपो‌र्ट्स के अध्यक्ष राजीव अरोड़ा का कहना है कि जयपुर में कुंदन, मिनाकारी का अधिकांश काम स्थानीय कारीगर करते हैं। लेकिन फैशनेबल ज्वैलरी का काम 25 हजार से अधिक बंगाली कारीगर कई पीढि़यों से करते आ रहे हैं। लॉकडाउन के कारण ये अपने घर चले गए। उन्होंने कहा कि ज्वैलरी में भारत की प्रतिस्पर्द्धा चीन से रहती है। चीन में जब कोरोना फैला तो वहां का ज्वैलरी कारोबार भारत की तरफ आया। यूरोप व अमेरिका सहित कई देशों से ऑर्डर मिल रहे थे। लेकिन अब भारत में कोरोना तेजी से फैला और चीन की स्थिति में सुधार हुआ तो हमारे ऑर्डर रद होने लगे। 

जयपुर में ही करीब 60 फीसद ऑर्डर रद हो गए। सरकार ने लॉकडाउन खोलकर राहत तो दी है, लेकिन अब कारीगर नहीं हैं। ज्वैलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष संजय काला ने बताया कि मजदूर बेकार हो गए। जयपुर के सीतापुरा में ही 50 हजार मजदूर काम करते थे। उनके सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है। इस व्यवसाय को संभलने में अब दो से तीन साल का समय लगेगा।