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बजट का ‘सफर’

आम बजट की तैयारियों और उसके पीछे जुड़े लोगों की मेहनत का अंदाजा बहुत कम लोगों को है। हलवा समारोह से लेकर संसद में पेश होने तक के सफर के बीच में एक लंबी प्रक्रिया जुड़ी हुई होती है।

By Rajesh KumarEdited By: Updated: Fri, 19 Feb 2016 05:43 PM (IST)
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नई दिल्ली। आम बजट की तैयारियों और उसके पीछे जुड़े लोगों की मेहनत का अंदाजा बहुत कम लोगों को है। हलवा समारोह से लेकर संसद में पेश होने तक के सफर के बीच में एक लंबी प्रक्रिया जुड़ी हुई होती है। इस प्रकिया में बहुत लोग बड़ी ही ईमानदारी और मेहनत से काम करते हैं। बजट के इस सफर दास्तां कुछ यूं है।

हलवा समारोह-सबसे पहले हलवा समारोह से दस्तावेजों की छपाई की प्रक्रिया शुरू होती है। दरअसल ये बजट से जुड़ी वित्त मंत्रालय की सालों पुरानी परंपरा है, जिसमें हलवा समारोह से बजट के दस्तावेजों की छपाई की प्रक्रिया शुरू होती है। हलवा बनाने के लिए कढ़ाई में घी वित्त मंत्री से ही डलवाया जाता है। वित्त मंत्री अपने हाथ से कढ़ाई में हलवा बनाने की शुरुआत करते हैं। इसके बाद हलवाई पूरा हलवा तैयार करता है। रस्म निभाने के लिए वित्त मंत्री वहां मौजूद कर्मचारी व सहयोगियों को अपने हाथ से हलवा परोसते हैं।

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क्या होता है आम बजट:
केन्द्रीय वित्त मंत्री की तरफ से पेश की जाने वाली वार्षिक वित्त रिपोर्ट को ही ‘आम बजट’ कहते हैं। आम बजट’ में अनुमानित प्राप्तियां, अकाउंट्स स्टेटमेंट, 1 अप्रैल से शुरू होने वाले आगामी वित्त वर्ष के लिए अनुमानित खर्च का विस्तृत ब्योरा होता है। इसमें शामिल सरकारी योजनाओं पर खर्च की स्वीकृति संसद पर निर्भर करती है। बजट के माध्यम से वित्त मंत्री संसद से टैक्स, ड्यूटीज और ऋण के माध्यम से धन जुटाने की मंजूरी चाहता है।

सर्कुलर से होती है शुरूआत:
सामान्य स्थिति में निर्माण की प्रक्रिया हर वर्ष सितंबर से शुरू हो जाती है। सभी मंत्रालयों, विभागों और स्वायत्त निकायों को सर्कुलर भेजा जाता है, जिसके जवाब में विवरण के साथ उन्हें आगामी वित्तीय वर्ष के अपने-अपने खर्च, विशेष परियोजनाओं का ब्यौरा और फंड की आवश्यता की जानकारी देनी होती है। यह बजट की रूपरेखा के लिए एक आवश्यक कदम होता हैं।


टैक्स पर बहस :
वित्त मंत्रालय के अधिकारी नवंबर में रायसीना हिल्स पर नॉर्थ ब्लॉक में हितधारकों जैसे उद्योग संघों, वाणित्य मंडलों, किसान समूहों और ट्रेड यूनियनों के साथ परामर्श शुरू करते हैं। सभी मिलकर टैक्स छूट और राजकोषीय प्रोत्साहनों पर बहस करते हैं।

निगरानी में अधिकारी :
वित्त मंत्रालय के शीर्ष अधिकारी, विशेषज्ञ, प्रिंटिंग टेक्नीशियन और स्टेनोग्राफर्स नॉर्थ ब्लॉक में एक तरह से कैद में रहते हैं और आखिरी के सात दिनों में तो बाहरी दुनिया से एकदम कट जाते हैं। वे परिवार से भी बात नहीं कर सकते हैं। किसी आपातकालीन स्थिति में, इन अधिकारियों के परिवार उन्हें दिए गए नंबर पर संदेश छोड़ सकते हैं, लेकिन उनसे सीधे बात नहीं कर सकते।

गोपनीयता है सर्वोपरि:
संयुक्त सचिव की अध्यक्षता में इंटेलिजेंस ब्यूरो के अधिकारी बजट बनाने वाली टीम की गतिविधियों और फोन कॉल्स पर नजर रखते हैं। स्टेनोग्राफरों पर सबसे अधिक नजर रखी जाती है। साइबर चोरी की आशंका से बचने के लिए इन स्टेनो के कम्प्यूटर नेशनल इन्फॉर्मेटिक्स सेंटर (एनआईसी) सर्वर से अलग रहते हैं। एक पावरफुल मोबाइल जैमर नार्थ ब्लॉक में कॉल्स को ब्लॉक करने और जानकारियों के लीक होने से बचने के लिए इंस्टॉल किया जाता है।

प्रिंटिंग की प्रक्रिया :
वित्त मंत्री का भाषण एक सबसे सुरक्षित दस्तावेज है। यह बजट की घोषणा होने के दो दिन पहले मध्यरात्रि में प्रिंटर्स को सौंपा जाता है।
नॉर्थ ब्लॉक में होती है प्रिंटिंग :
शुरुआत में बजट पेपर्स राष्ट्रपति भवन पर प्रिंट होते थे, लेकिन 1950 में बजट लीक हो गया था। 1980 से बजट नॉर्थ ब्लॉक के बेसमेंट में प्रिंट हो रहा है।

बजट पेपर:
बजट पेपर वित्त मंत्रालय में स्थित प्रेस में तैयार होते हैं। बजट तैयार करने में जुटे अधिकारियों को नॉर्थ ब्लॉक में बिल्कुल अलग-थलग रखा जाता है। उन्हें तब तक छुट्टी नहीं दी जाती जब तक वित्त मंत्री सदन में बजट पेश नहीं कर देते।

दो भागों में बंटा होता है बजट:
आम बजट फरवरी के अंतिम कार्य दिवस के दिन पेश किया जाता है। सरकार को इसके लिए राष्ट्रपति की मंजूरी लेनी होती है। संसद के दोनों सदनों में बजट रखने से पहले इसे यूनियन कैबिनेट के सामने रखना होता है। वित्त मंत्री लोकसभा में बजट सुबह 11 बजे पेश करते हैं। बजट दो भागों में बंटा होता है। पहले भाग में सामान्य आर्थिक सर्वे और नीतियों का ब्यौरा होता है और दूसरे भाग में आगामी वित्त वर्ष के लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष करों के प्रस्ताव रखे जाते हैं।

संसद में बजट पर होती है बहस :
बजट पेश किए जाने के बाद बजट प्रपोजलों पर संसद में सामान्य और विस्तृत बहस होती है। सामान्यत: लोकसभा में यह बहस 2-4 दिन तक चलती है।


राष्ट्रपति की मंजूरी पर प्रक्रिया पूरी :
संबंधित स्थायी समितियां द्वारा संसद से अनुदान की मांग पेश करने के साथ सदन में बहस के अंतिम दिन स्पीकर की ओर से सभी बकाया अनुदान मांगों को वोट पर रखा जाता है। लोकसभा में बहस के बाद विनियोग विधेयक पर वोटिंग के साथ वित्त और धन विधेयक पर वोटिंग होती है। संसद की मंजूरी के बाद विधेयक को 75 दिन के भीतर मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है। राष्ट्रपति के विधेयक को मंजूरी के साथ ही बजट प्रक्रिया पूरी हो जाती है।