तिरुपति मंदिर में अब 'नंदिनी' के घी से बनेंगे लड्डू, 26 लाख किसानों की रोजी-रोटी बन चुके ब्रांड की कहानी
तिरुपति मंदिर के लड्डू में जानवर की चर्बी और दूसरी चीजों की मिलावट के चलते काफी बवाल मचा हुआ है। इसके चलते मंदिर में लड्डू के लिए घी सप्लाई करने वाली कंपनी को बदल दिया गया है। अब तिरुपति मंदिर के लड्डू नंदिनी ब्रांड के घी से बनेंगे। इस ब्रांड का दक्षिण में वही दबदबा है जो उत्तर में अमूल और मदर डेयरी का है।
बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। भगवान विष्णु को समर्पित तिरुपति मंदिर अपनी वास्तुकला और शिल्पकला चलते श्रद्धालुओं के बीच काफी मशहूर है। लेकिन, बीते कुछ दिनों से तिरुपति मंदिर के लड्डू में जानवर की चर्बी और दूसरी चीजों की मिलावट पर हंगामा मचा है। आंध्र प्रदेश की चंद्रबाबू नायडू सरकार ने खुद तिरुपति मंदिर के लड्डू में मिलावट की पुष्टि करने वाली लैब रिपोर्ट को सार्वजनिक किया।
सरकार ने भारी विवाद के बीच लड्डू के लिए घी सप्लाई करने वाली कंपनी को बदल दिया। अब तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) लड्डुओं के लिए ‘नंदिनी’ ब्रांड का घी इस्तेमाल करेगा। आइए जानते हैं कि नंदिनी ब्रांड में क्या खास है और इसकी शुरुआत कैसे हुई थी।
हर घर की पहचान नंदिनी
उत्तर भारत में डेयरी ब्रांड के तौर पर अमूल या फिर मदर डेयरी मशहूर हैं। दक्षिण में यही रुतबा 'नंदिनी' को हासिल है। यह कर्नाटक का सबसे बड़ा डेयरी ब्रांड है, लेकिन इसका दबदबा आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल और महाराष्ट्र में भी है। नंदिनी ब्रांड को कर्नाटक कोऑपरेटिव मिल्क प्रोड्यूसर्स फेडरेशन लिमिटेड (KMF) संभालता है। अगर नंदिनी नाम की बात करें, तो ये पौराणिक कथाओं से आया है। यह भगवान राम के वंश यानी रघुवंश के कुलगुरु महर्षि वशिष्ठ की गाय का नाम था।नंदिनी की शुरुआत कैसे हुई
कर्नाटक सरकार ने साल 1974 में कर्नाटक डेयरी डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (KDCC) का गठन किया। इसका मकसद वर्ल्ड बैंक के डेयरी प्रोजेक्ट्स को जमीन पर उतारना था। एक दशक बाद यानी साल 1984 में इसका नाम कर्नाटक मिल्क फेडरेशन कर दिया गया। यही वो वक्त था, जब कंपनी ने ‘नंदिनी’ दूध और दूसरे डेयरी प्रोडक्ट बाजार में उतारे। फिर यह ब्रांड कर्नाटक और आसपास के राज्यों में डेयरी प्रोडक्ट्स के लिए सबसे मशहूर नाम बन गया।हर रोज 28 करोड़ का भुगतान
कर्नाटक मिल्क फेडरेशन (Karnataka Milk Federation ) हर रोज 24,000 गांवों के 26 लाख किसानों से करीब 86 लाख किलो दूध खरीदती है। वह दूध उत्पादक किसानों को ज्यादातर डेली पेमेंट कर देती है। फेडरेशन का दावा है कि वह रोजाना करीब 28 करोड़ रुपये का भुगतान करती है। दरअसल, दूध बेचने ज्यादातर छोटे किसान होते हैं। उन्हें हर रोज पैसे मिल जाने से अपनी जरूरतों के साथ जानवरों के चारे का बंदोबस्त करने में भी सहूलियत होती है।