टोकेनाइजेशन पर RBI के झुकने के संकेत नहीं, 1 जनवरी, 2022 से लागू होगा नया नियम
टोकेनाइजेशन शब्द का इस्तेमाल डिजिटल प्लेटफार्म पर डाटा को सुरक्षित रखने के संदर्भ में किया जाता है। इसके तहत शब्दों व अंकों में लिखे डाटा को एक टोकेन वैल्यू में तब्दील कर दिया जाता है और डिजिटल है¨कग करने वाले जब इन तक पहुंचते हैं
By NiteshEdited By: Updated: Fri, 24 Dec 2021 08:18 AM (IST)
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। आरबीआइ की तरफ से तैयार नया टोकेनाइजेशन नियम 01 जनवरी, 2022 से लागू हो जाएगा। इस नये नियम का सीधा सा मतलब यह होगा कि नए साल की शुरुआत से देश में काम करने वाली हजारों ई-कामर्स कंपनियां या कोई भी आनलाइन वित्तीय लेन-देन करने वाली एजेंसी किसी भी ग्राहक के डेबिट कार्ड या क्रेडिट कार्ड या कोई अन्य डिजिटल भुगतान संबंधी कार्ड का डाटा स्टोर नहीं कर सकेगा। आरबीआइ ने यह नियम देश में डिजिटल भुगतान में होने वाली गड़बडि़यों को सुरक्षित करने व ग्राहकों को बेहतर डिजिटल भुगतान में ज्यादा सुरक्षा देने के लिए बनाया है लेकिन कारपोरेट जगत की तरफ से इसका भारी विरोध हो रहा है। इनका तर्क है कि उन्हें नये नियम के मुताबिक सॉफ्टवेयर लगाने के लिए काफी राशि खर्च करनी होगी और इसका छोटे व मझोले स्तर की कंपनियों पर विपरीत असर होगा।
कारपोरेट जगत की तरफ से हो रहे विरोध के बावजूद आरबीआइ की तरफ से गुरूवार देर शाम तक ऐसा कोई संकेत नहीं है कि वो टोकेनाइजेशन के नियम को लागू करने की समय सीमा को बढ़ा सकती है। दूसरी तरफ देश के तमाम बड़े बैंक व वित्तीय संस्थानों की तरफ से इस नये नियम को लागू करने की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। माना जा रहा है कि छोटे स्तर के बैंकों व वित्तीय संस्थानों को शुरुआत में इसे लागू करने में समस्या हो सकती है क्योंकि उनके स्तर पर भी संबंधित सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करना होगा। ई-कामर्स कंपनियों की तरफ से आरबीआइ से यह गुहार लगाई गई है कि फिलहाल कुछ महीनों तक के लिए नए नियम के साथ ही मौजूदा नियम को भी लागू रखना चाहिए ताकि उन्हें कुछ वक्त मिल जाए। इस बारे में भी आरबीआइ की तरफ से चुप्पी है।
क्या है टोकेनाइजेशन
टोकेनाइजेशन शब्द का इस्तेमाल डिजिटल प्लेटफार्म पर डाटा को सुरक्षित रखने के संदर्भ में किया जाता है। इसके तहत शब्दों व अंकों में लिखे डाटा को एक टोकेन वैल्यू में तब्दील कर दिया जाता है और डिजिटल है¨कग करने वाले जब इन तक पहुंचते हैं तो उन्हें असली डाटा नहीं मिलता है बल्कि टोकेन वैल्यू ही हाथ लगता है। पिछले कुछ वर्षों में देश में डिजिटल लेन देन की बढ़ती संख्या और डाटा की चोरी की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए केंद्रीय बैंक ने देश के सभी डिजिटल लेन-तेन में इसका इस्तेमाल करने का नियम जारी किया है। मौजूदा नियम के मुताबिक जब कोई ग्राहक ई-कामर्स पर खरीद करता है तो उसके क्रेडिट या डेबिट कार्ड का डाटा वहां सेव कर लिया जाता है और बाद में जब दोबारा खरीद करने ग्राहक उस साइट पर जाता है तो उससे सिर्फ ओटीपी या सीवीवी नंबर (कार्ड पर अंकित सुरक्षा नंबर) ही मांगा जाता है।
क्या है बदलाव
नये नियम के मुताबिक अब ई-कामर्स कंपनियां ग्राहकों के बैंक कार्ड के डाटा को सुरक्षित नहीं रख सकेंगे। ग्राहक जब पहली बार खरीदारी करने जाएगा तो उसके द्वारा दी गई कार्ड की जानकारी को पहले संबंधित बैंक के पास भेजा जाएगा और बैंक उस कार्ड के बदले ई-कामर्स कंपनी को एक टोकेन जारी करेगी। अब कंपनी के पास ग्राहक का असली डाटा नहीं बल्कि यह टोकन ही सेव किया जाएगा। इस तरह से भी ई-कामर्स पर जितने ग्राहकों का डाटा सेव किया गया है वो सारे डाटा 31 दिसंबर, 2021 को खत्म हो जाएंगे। हालांकि यह भी स्पष्ट किया गया है कि 01 जनवरी, 2022 के बाद भी सिर्फ एक बार ही ग्राहकों को नये सिरे से कार्ड डिटेल मांगे जाएंगे। साथ ही ग्राहकों से इसके लिए कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा।
उद्योग चैंबर सीआइआइ का कहना है कि भारत में कुल 98.5 करोड़ डेबिट या क्रेडिट कार्ड है और रोजाना 1.5 करोड़ ट्रांजैक्शन होते हैं। रोजाना 4,000 करोड़ रुपये का लेन-देन होता है। सीआइआइ का कहना है कि सारे संस्थान इस अहम तकनीकी बदलाव के लिए अभी तैयार नहीं है। साथ ही सरकार की एजेंसियां और डिजिटल भुगतान के लिए आवश्यक इंफ्रास्ट्रक्चर देने वाली एजेंसियां भी तैयार नहीं है। इस बारे में सीआइआइ की तरफ से आयोजित सेमिनार में कई विशेषज्ञों ने यह आशंका जताई है कि नये नियम के बाद ग्राहकों के साथ फ्राड बढ़ जाएंगे। क्योंकि उनके कार्ड को टोकन देने को लेकर लगातार फोन आएंगे। सही कंपनियों की आड़ में फ्राड करने वाले भी फोन कर सकते हैं।