Move to Jagran APP

शेयर बाजार से पैसे बनाना है? ये कमाल का फॉर्मूला अपनाइए

पिछले कुछ समय में शेयर मार्केट में नए निवेशकों की तादाद काफी बाढ़ गई है। खासकर कोरोना महामारी के बाद से। इनमें से ज्यादातर नौजवान हैं जो स्टॉक मार्केट से रातोंरात अमीर बनने का सपना देखते हैं। यही वजह है कि वे जरूरत से ट्रेडिंग या इन्वेस्टमेंट करने लगते हैं जिसमें कई बार उनके पैसे भी डूब जाते हैं। वहीं शेयर मार्केट में पैसा लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट से बनता है।

By Jagran News Edited By: Suneel Kumar Updated: Sun, 13 Oct 2024 10:35 AM (IST)
Hero Image
पिछले 20 साल के दौरान 4,962 कारोबारी दिन थे, जिनमें से 2,278 नेगेटिव और बाकी पॉजिटिव थे।
धीरेंद्र कुमार, नई दिल्ली। संकेत और शोर इलेक्ट्रॉनिक-इंजीनियरिंग की शब्दावली का हिस्सा हैं जो अब आम इस्तेमाल में आने लगे है, जिसमें निवेश की रिसर्च भी शामिल है। हालांकि, ऑनलाइन चर्चा के मंचों और दूसरी तरह की ऑनलाइन कम्युनिटी में, विषय से हटकर की जाने वाली पोस्ट और स्पैम को नाइस यानी शोर माना जाता है, जो उचित चर्चा के सिग्नल यानी संकेत में रुकावट डालता है।

इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का इस्तेमाल करते समय, आप संगीत के पीछे एक धीरे-धीरे लगातार सुनाई देने वाला शोर सुन सकते हैं। निवेश की रिसर्च में, आप इस शोर को न्यूज, विचार, डेटा और एनालिसिस के तौर पर सुनते हैं। यह सुनने में तो प्रासंगिक लगते हैं लेकिन असल में भ्रामक होते हैं। आडियो उपकरणों में, सिग्नल-टू-नाइस अनुपात आमतौर पर एक प्रतिशत से बहुत कम होता है, जिसका मतलब है कि आप जो सुनते हैं वो लगभग प्योर, बिना मिलावट वाला सिग्नल है।

निवेश विश्लेषण में आप भाग्यशाली होंगे, अगर आपके पास 90 प्रतिशत से कम शोर हो। इसके कई कारण हैं, उनमें से कुछ प्रामाणिक हैं और कुछ कम प्रामाणिक। हालांकि, निवेश के विश्लेषण को जो अलग बनाता है, वो ये है कि अगर इसे उपयोगी होना है, तो हमें पूर्वानुमान और भविष्यवाणियां करने के लिए सिग्नल का इस्तेमाल करने की जरूरत है।

आखिरकार, अगर आप पिछले वित्तीय डेटा, निकाला गया अनुपात और प्रत्येक लिस्टेड कंपनी के स्टॉक का प्राइस चाहते हैं, तो आप उन्हें जीरो नाइस या शून्य शोर के साथ पा सकते हैं। ये शोर तब शुरू होता है, जब लोग इनका इस्तेमाल ये पता लगाने की कोशिश करने के लिए करते हैं कि भविष्य में उनका क्या मतलब होगा।

वास्तविक दुनिया के डेटा और सूचना में शोर की सार्वभौमिक विशेषताओं में से एक ये है कि जितना ज्यादा आप इसे करीब से देखते हैं, इसका असर उतना ही बुरा होता है। अगर आप मिनट-दर-मिनट स्टॉक की कीमतों को देखते हैं, तो ये लगभग पूरा का पूरा ही शोर है। उससे कोई रुझान निकालना असंभव है। हर रोज कीमतें देखना भी लगभग उतना ही खराब होता है। मासिक कीमतें थोड़ी बेहतर हैं। तिमाही कीमतें और भी बेहतर हैं। और वार्षिक कीमतें उससे भी बेहतर होती हैं। पूरी बात का निचोड़ इस तरह समझना आसान है।

लंबी अवधि में स्टॉक की कीमत या इंडेक्स की बढ़त के बारे में सोचें। मिसाल के तौर पर, सेंसेक्स पिछले बीस साल में 1,410 प्रतिशत बढ़ा है, जो 30 सितंबर 2004 को 5,584 से बढ़कर 30 सितंबर 2024 को 84,300 हो गया है। ये 14.5 प्रतिशत की सालाना दर है।

इन बीस सालों के दौरान, अगर आपने हर दिन सेंसेक्स में बदलाव को देखा होता, तो आपको इस बात का कोई अंदाजा नहीं होता कि लंबे समय में इसके बढ़ने की दर क्या थी। इस दौरान 4,962 कारोबारी दिन थे, जिनमें से 2,278 नेगेटिव और बाकी पॉजिटिव थे।

हर रोज के बदलावों के पैटर्न में, जब आप अगले दिन देखते हैं कि बाजार कहां जा रहा है, तो इसका मात्रात्मक अर्थ बहुत कम होता है। यहां पांच-साल की सीरीज है, जिसे सालाना रिटर्न के तौर पर व्यक्त किया गया है। 25.1, 9.2, 7.7, 16.9 प्रतिशत। केवल पांच साल की सीरीज में ही आपको कुछ समझ आता है कि सेंसेक्स असल में कहां जा रहा है। अगर आप पांच साल में केवल एक बार मार्केट को देखें, तो आपको ये चिंता नहीं होगी कि छोटी अवधि में उसमें क्या-क्या हुआ।

आपके लिए शोर लगभग होगा ही नहीं, केवल सिग्नल होगा। ये शोरगुल वाली जगह पर स्पीकर लगाकर म्यूजिक सुनने और नाइस-कैंसिलेशन वाले हेडफोन के जरिये संगीत सुनने के बीच का फर्क है। यही एक अच्छा इक्विटी निवेशक होने का मनोवैज्ञानिक आधार है, और यही वजह है कि हम कभी भी इस बात पर ध्यान नहीं देते कि छोटी अवधि में शेयरों में क्या हो रहा है।

(लेखक धनक डाट कॉम के संपादक हैं)