Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

मूडीज ने चेताया, पानी की किल्लत से भारतीय साख पर आ सकता है संकट

मूडीज के मुताबिक भारत में तेजी से हो रहे आर्थिक विकास औद्योगिकीकरण और शहरीकरण से जल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है। वर्ष 2030 तक पानी की सालाना औसत प्रति व्यक्ति उपलब्धता 1367 क्यूबिक मीटर हो जाएगी जो फिलहाल 1486 क्यूबिक मीटर है। मूडीज के मुताबिक जलवायु परिवर्तन की वजह से सूखा लू और बाढ़ पहले की तुलना में अधिक होंगे।

By Jagran News Edited By: Ram Mohan Mishra Updated: Tue, 25 Jun 2024 09:11 PM (IST)
Hero Image
मूडीज ने कहा कि पानी की किल्लत से भारतीय साख पर संकट आ सकता है।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। आर्थिक रूप से दुनिया में सबसे तेज से गति से विकास कर रहे भारत में पानी की किल्लत बड़े संकट का ओर इशारा कर रहा है। वैश्विक रेटिंग एजेंसी मूडीज ने कहा है कि पानी की किल्लत भारत की साख को संकट में डाल सकती है। वहीं, पानी खपत से जुड़े थर्मल पावर प्लांट व स्टील जैसे औद्योगिक सेक्टर पर भी दबाव बढ़ेगा।

औद्योगिकीकरण और शहरीकरण से बढ़ा जल संकट 

मूडीज के मुताबिक भारत में तेजी से हो रहे आर्थिक विकास, औद्योगिकीकरण और शहरीकरण से जल स्तर तेजी से नीचे जा रहा है। पहले से बड़ी आबादी में लगातार हो रही बढ़ोतरी से भारत में पानी की खपत काफी अधिक है,जिससे प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता कम हो सकती है।

वर्ष 2030 तक पानी की सालाना औसत प्रति व्यक्ति उपलब्धता 1367 क्यूबिक मीटर हो जाएगी, जो फिलहाल 1486 क्यूबिक मीटर है। वर्ष 2030 तक भारत की आबादी वर्तमान के 1.43 अरब से बढ़कर 1.51 अरब हो जाएगी।

यह भी पढ़ें- क्या सस्ते कर्ज की उम्मीदों पर पानी फेर देगी खाद्य उत्पादों की महंगाई?

जलवायु परिवर्तन का होगा असर 

मूडीज के मुताबिक जलवायु परिवर्तन की वजह से सूखा, लू और बाढ़ पहले की तुलना में अधिक होंगे, जिससे स्थिति और खराब होगी, क्योंकि पानी की आपूर्ति के लिए भारत मुख्य रूप से मानसून पर निर्भर करता है। मानसून की बारिश में भी कमी आ रही है।

बंगलुरू व दिल्ली जैसे बड़े शहर इन दिनों पानी की भारी किल्लत से जूझ रहे हैं। मूडीज ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पानी की आपूर्ति में कमी से कृषि उत्पादन के साथ औद्योगिक संचालन प्रभावित हो सकता है, जिससे महंगाई में बढ़ोतरी होगी और पानी से प्रभावित होने वाले औद्योगिक कारोबार और उनसे जुड़े लोगों की आय में कमी आएगी।

इससे सामाजिक उथल-पुथल हो सकता है और कुल मिलाकर पानी की किल्लत से भारत का आर्थिक विकास प्रभावित हो जाएगा। मूडीज का कहना है कि थर्मल पावर व स्टील प्लांट से उत्पादन में पानी का भारी मात्रा में इस्तेमाल होता है। पानी की कमी से इन प्लांट का संचालन प्रभावित होने से उनके राजस्व में कमी आएगी और बाजार में उनकी साख खराब होगी।

करने चाहिए ये उपाय 

मूडीज के मुताबिक सरकार की तरफ से जल प्रबंधन के क्षेत्र के साथ रिन्युएबल एनर्जी के विस्तार में निवेश बढ़ाए जाने की जरूरत है। साथ ही अधिक पानी इस्तेमाल करने वाले औद्योगिक क्षेत्र में पानी की खपत को कम करने के उपाय किए जाने चाहिए।

जल के प्रबंधन से सरकार और औद्योगिक दोनों की साख प्रभावित होने से बचेगी। वहीं, पानी प्रबंधन में निवेश के लिए वित्तीय बाजार को आगे आना चाहिए। भारत में वित्तीय बाजार का आकार अभी छोटा है, लेकिन तेजी से बढ़ रहा है। वित्तीय बाजार राज्य सरकार व कंपनियों को पानी की समस्या दूर करने के लिए फंड जुटाने में मदद कर सकता है।

यह भी पढें- कोयला उत्पादन में कब आत्मनिर्भर बनेगा भारत, कहां आ रही हैं चुनौतियां