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एल्युमिनियम, तांबा से बने उत्पादों से पर्यावरण को नुकसान? री-साइक्लिंग के लिए बनेंगे नए नियम

वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने एल्युमिनियम तांबा व पीतल जैसी अलौह धातुओं से तैयार होने वाले 18 उत्पादों की एक सूची भी जारी की है। जिनमें सबसे प्रमुख पेय पदार्थों आदि में इस्तेमाल होने वाली कैन खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग में इस्तेमाल आने वाली फॉएल एल्युमिनियम से तैयार होने वाले खिड़की व दरवाजे खिलौने ट्रांसफार्मर आदि शामिल है। इनकी मांग तेजी से बढ़ रही है।

By Jagran News Edited By: Suneel Kumar Updated: Thu, 26 Sep 2024 08:28 PM (IST)
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नए नियमों को एक अप्रैल 2025 से लागू करने की तैयारी है।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। ई-कचरे की तर्ज पर वन एवं पर्यावरण मंत्रालय अब एल्युमिनियम, तांबा व पीतल जैसी अलौह धातुओं से तैयार होने वाले उत्पादों की री-साइक्लिंग के भी नए नियम तैयार करेगा। जिसमें उन्हें पैदा करने वाले उत्पादक के ऊपर ही उसके निस्तारण की पूरी जिम्मेदारी होगी।

हालांकि इनमें उनकी कोई सीधी भागीदारी नहीं होगी बल्कि उन्हें हर साल अपनी उत्पादन क्षमता के आधार पर एक निश्चित मात्रा में पंजीकृत री-साइक्लरों से री-साइक्लिंग प्रमाण पत्र का प्रमाण पत्र खरीदना होगा। जिसके लिए उन्हें री-साइक्लर को पैसा देना होगा।

वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने फिलहाल खतरनाक और अन्य अपशिष्टों के प्रबंधन को लेकर नए नियम का मसौदा तैयार किया है। साथ ही इसे लेकर आम लोगों से राय भी मांगी है। इन नियमों को एक अप्रैल 2025 से लागू करने की तैयारी है।

नए नियमों के तहत इन अलौह धातुओं से तैयार होने वाले उत्पादों को इस्तेमाल में लिए जाने या एक तय समय-सीमा के बाद स्क्रैप में परिवर्तित हो जाने के बाद इसका री-साइक्लिंग किया जाएगा। जिनका इस्तेमाल इन धातुओं से तैयार होने नए उत्पादों के निर्माण में भी किया जाएगा।

फिलहाल मंत्रालय ने इन अलौह धातुओं से तैयार होने वाले 18 उत्पादों की एक सूची भी जारी की है। जिनमें सबसे प्रमुख पेय पदार्थों आदि में इस्तेमाल होने वाली कैन, खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग में इस्तेमाल आने वाली फॉएल, एल्युमिनियम से तैयार होने वाले खिड़की व दरवाजे, खिलौने, ट्रांसफार्मर आदि शामिल है।

वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक यह पहल तब की गई है, जब एल्युमिनियम सहित इन अलौह धातुओं की मांग बाजार में तेजी से बढ़ रही है। जिसके चलते पिछले कुछ सालों में इन खनिजों के खनन में तेजी भी आयी है।

इसके लिए नए-नए भंडारण की खोज तेज हुई है। इनमें से अधिकांश भंडारण वन क्षेत्रों में पड़ते है। ऐसे यदि नई-नई खदानों को अनुमति दी गई है, तो वन क्षेत्रों का बड़ा हिस्सा प्रभावित होगा। मंत्रालय ने अपने मसौदे में 2025- 26 और 2026-27 में इन धातुओं से बनने वाले उत्पादों के दस प्रतिशत हिस्से के री-साइक्लिंग का लक्ष्य रखा है। जबकि वर्ष 2031-32 तक 75 प्रतिशत उत्पादों की री-साइक्लिंग का लक्ष्य रखा है।

वहीं उत्पादनकर्ता की ओर से हर साल री-साइक्लिंग का प्रमाण पत्र नहीं देने पर नए उत्पादन की अनुमति नहीं मिलेगी। गौरतलब है कि अभी तक इन धातुओं से बनने वाले उत्पादों की री-साइक्लिंग में इससे पैदा होने वाले कचरे के संग्रहण की जिम्मेदारी उत्पादन कर्ता की थी।

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