PMMY के तहत लोन लेने वालों के बैकग्राउंड की होगी जांच, नीति आयोग ने गाइडलाइन बनाने का दिया सुझाव
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) के तहत लोन लेने वालों की पात्रता की जांच और आकलन करने के लिए नीति आयोग ने नए गाइडलाइन तैयार करनी की जरूरत बताई है। इसकी मदद से उस कस्टमर्स का बैकग्राउंड चेक हो जाएगा। आयोग ने एक रिपोर्ट में लोन स्वीकृति के लिए E-KYC वेरिफिकेशन को प्रोत्साहित करने का सुझाव दिया है। आइये इसके बारे में जानते हैं।
पीटीआई, नई दिल्ली। सरकारी शोध संस्थान नीति आयोग ने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY) के तहत लोन लेने वालों की पात्रता का आकलन करने और उनकी बैकग्राउंड के वेरिफिकेशन के लिए गाइडलाइन तैयार करने की बात कही है।
आयोग ने ‘PMMY के प्रभाव का आकलन’ शीर्षक वाली एक रिपोर्ट में लोन स्वीकृति के लिए E-KYC वेरिफिकेशन को प्रोत्साहित करने का सुझाव दिया है। इससे मूल्यांकन जांच की प्रभावशीलता बढ़ेगी।
बैकग्राउंड वेरिफिकेशन के लिए गाइडलाइन
- नीति आयोग ने अपनी वेबसाइट पर जारी की गई रिपोर्ट में कहा कि इस लोन के लिए गारंटी नहीं होती है, ऐसे में उचित जोखिम जांच तथा मूल्यांकन की इस योजना के नतीजों और सफलता में जरूरी भूमिका है।
- ऐसे में बैंकों को सुरक्षा देने के लिए लोन पात्रता और बैकग्राउंड वेरिफिकेशन के गाइडलाइन के सेट को लिस्ट किए जाने चाहिए।
- पीएमएमवाई के तहत अधिकांश कर्जदार छोटे उद्यमी हैं जिनके पास बहुत सीमित दस्तावेज हैं और इससे बैंकों के लिए सत्यापन जांच करना मुश्किल हो जाता है। क्योंकि इसके लिए अधिक कर्मचारियों की आवश्यकता होती है।
आयोग ने दिया ये सुझाव
- आयोग ने यह भी सुझाव दिया कि विभिन्न बैंकों के लिए उनके संचालन और प्रदर्शन के पैमाने के आधार पर उचित रिवार्ड सिस्टम की जरूरत है।
- लाभार्थी डेटा के रियल टाइम अपलोड को सक्षम करने वाला एक पोर्टल लाभार्थी डेटा कलेक्शन को सुव्यवस्थित करने में मदद करेगा
- पीएमएमवाई ने 2015 में अपनी स्थापना के बाद से 34.93 करोड़ खातों को 18.39 लाख करोड़ रुपये का लोन सपोर्ट दिया है।
- रिपोर्ट के अनुसार, महामारी से पहले की तुलना में, एमएसएमई को ऋण संवितरण सभी क्षेत्रों में दोगुना हो गया है, जो उद्योग द्वारा बढ़ती ऋण मांग के लिए समर्थन का संकेत देता है।
- वहीं एनपीए अकाउंट की संख्या और राशि वित्त वर्ष 2017 से क्रमशः 22.51 प्रतिशत और 36.61 प्रतिशत की सीएजीआर के साथ साल दर साल बढ़ रही है।
- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME) क्षेत्र उद्यमियों के लिए एक निर्णायक भूमिका निभाता है और भारत में सामाजिक-आर्थिक विकास का एक प्रमुख चालक है।
यह क्षेत्र देश के कुल विनिर्माण उत्पादन के सकल मूल्य में लगभग 33 प्रतिशत (वित्त वर्ष 2015 से वित्त वर्ष 2019) का योगदान देता है।
- यह निर्यात में 40 प्रतिशत से अधिक का योगदान देता है और भारत के सकल घरेलू उत्पाद में 28 प्रतिशत से अधिक का योगदान देता है, जबकि लगभग 11.10 करोड़ लोगों के लिए रोजगार पैदा करता है।