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चीन से FDI को बढ़ावा देने पर पुनर्विचार नहीं, तनाव के बीच तेजी से बढ़ रहा द्विपक्षीय व्यापार

भारत सरकार चीन से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को बढ़ावा देने पर किसी तरह का पुनर्विचार नहीं कर रही है। दोनों देशों के बीच तनाव के बावजूद भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार तेजी से बढ़ा है। विवादों के बीच 2023-24 में 118.4 अरब डालर के द्विपक्षीय व्यापार के साथ चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बनकर उभरा है।

By Agency Edited By: Ram Mohan Mishra Updated: Tue, 30 Jul 2024 07:02 PM (IST)
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चीन से FDI को बढ़ावा देने पर पुनर्विचार नहीं कर रही है सरकार।
पीटीआई, नई दिल्ली। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने मंगलवार को कहा कि सरकार चीन से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को बढ़ावा देने पर किसी तरह का पुनर्विचार नहीं कर रही है। उन्होंने कहा कि हाल ही में इस संबंध में आर्थिक सर्वेक्षण में जो कुछ भी कहा गया है, वह सिर्फ नए विचारों का प्रतिनिधित्व करती है।

इन देशों के लिए एफडीआई अनिवार्य

गोयल ने कहा कि सर्वेक्षण में कही गईं बातें सरकार के लिए बिल्कुल भी बाध्यकारी नहीं हैं। सरकार ने 2020 में भारत के साथ सीमा साझा करने वाले देशों से एफडीआई के लिए उसकी मंजूरी अनिवार्य कर दी थी। भारत के साथ जमीनी सीमा साझा करने वाले देश चीन, बांग्लादेश, पाकिस्तान, भूटान, नेपाल, म्यांमा और अफगानिस्तान हैं।

चीन के साथ तनावपूर्ण संबंधों के बीच संसद में 22 जुलाई को पेश बजट-पूर्व आर्थिक समीक्षा 2023-24 में स्थानीय मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देने और निर्यात बाजार का दोहन करने के लिए पड़ोसी देश चीन से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) बढ़ाने की वकालत की गई थी।

गोयल ने इसी पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए यह बयान दिया है। सर्वेक्षण में कहा गया था कि अमेरिका और यूरोप अपनी तात्कालिक आपूर्ति चीन से हटा रहे हैं, इसलिए पड़ोसी देश से आयात करने के बजाय चीनी कंपनियों द्वारा भारत में निवेश करना और फिर इन बाजारों में उत्पादों का निर्यात करना अधिक प्रभावी है।

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चीन प्लस वन रणनीति से लाभ उठाने के सिर्फ दो विकल्प

सर्वे में कहा गया था कि भारत के पास चीन प्लस वन रणनीति से लाभ उठाने के लिए दो विकल्प हैं। वह या तो चीन की सप्लाई चेन के साथ एकीकृत हो जाए या फिर चीन से विदेशी निवेश को बढ़ावा दे। इन विकल्पों में से चीन से एफडीआइ बढ़ाकर अमेरिका को भारत के निर्यात को बढ़ावा देने अधिक सुलभ प्रतीत होता है।

कुछ इसी तरह का काम पूर्वी एशियाई देशों की अर्थव्यवस्थाओं ने पूर्व में किया है। चीन प्लस वन ²ष्टिकोण से लाभ उठाने के लिए एफडीआइ को एक रणनीति के रूप में चुनना व्यापार पर निर्भर रहने से अधिक फायदेमंद है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि चीन भारत का शीर्ष आयात भागीदार है, और चीन के साथ व्यापार घाटा बढ़ रहा है।

24 साल में सिर्फ 2.5 अरब डालर चीन से आया

एफडीआइ अप्रैल 2000 से मार्च 2024 तक भारत में आए कुल एफडीआइ में चीन की हिस्सेदारी केवल 0.37 प्रतिशत (2.5 अरब डालर) रही और वह 22वें स्थान पर रहा। जून 2020 में गलवान घाटी में हुई भीषण झड़प के बाद दोनों देशों के बीच संबंध अब तक सामान्य नहीं हुए हैं। भारत यह कहता रहा है कि जब तक सीमा क्षेत्र में शांति नहीं होगी तब तक चीन के साथ उसके संबंध सामान्य नहीं हो सकते हैं।

दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ने के बाद भारत ने टिकटॉक, वीचैट और अलीबाबा के यूसी ब्राउजर जैसे 200 से अधिक चीनी मोबाइल एप पर प्रतिबंध लगा दिया था। देश ने इलेक्ट्रिक वाहन निर्माता कंपनी बीवाईडी के एक बड़े निवेश प्रस्ताव को भी अस्वीकार कर दिया था।

हालांकि, इस साल की शुरुआत में भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने जेएसडब्ल्यू ग्रुप द्वारा एमजी मोटर इंडिया प्राइवेट लिमिटेड में 38 प्रतिशत हिस्सेदारी के प्रस्तावित अधिग्रहण को मंजूरी दे दी थी।

तनाव के बीच तेजी से बढ़ा द्विपक्षीय व्यापार

दोनों देशों के बीच तनाव के बावजूद भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय व्यापार तेजी से बढ़ा है। 2023-24 में 118.4 अरब डालर के द्विपक्षीय व्यापार के साथ चीन भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बनकर उभरा है। पिछले वित्त वर्ष में भारत का चीन को निर्यात 8.7 प्रतिशत बढ़कर 16.67 अरब डालर हो गया। पड़ोसी देश से आयात 3.24 प्रतिशत बढ़कर 101.7 अरब डालर हो गया। पिछले वित्त वर्ष में व्यापार घाटा बढ़कर 85 अरब डालर हो गया, जो 2022-23 में 83.2 अरब डॉलर था।

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