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कोरोना की चुनौतियों के बावजूद तेजी से घटी गरीबी, ऋण ज्यादा, लेकिन फिलहाल चिंता की बात नहीं : NCAER

इस साल की शुरुआत में नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने कहा था कि नवीनतम उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण से इस बात का संकेत मिलता है कि देश में गरीबी घटकर पांच प्रतिशत रह गई और ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में लोग समृद्ध हो रहे हैं। एनसीएईआर की महानिदेशक पूनम गुप्ता ने कहा कि भारत का सार्वजनिक ऋण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 82 प्रतिशत के बराबर है।

By Agency Edited By: Praveen Prasad Singh Updated: Wed, 03 Jul 2024 07:31 PM (IST)
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2004-05 और 2011-12 के बीच गरीबी में उल्लेखनीय कमी आने की बात रिपोर्ट में कही गई है।
पीटीआई, नई दिल्ली। महामारी से उत्पन्न चुनौतियों के बावजूद भारत में गरीबी (Poverty) 2011-12 के 21.2 प्रतिशत से घटकर 2022-24 में 8.5 प्रतिशत के स्तर पर आ गई। आर्थिक थिंक टैंक एनसीएईआर (NCAER) की सोनाली देसाई द्वारा लिखित एक शोध पत्र में गरीबी घटने का अनुमान लगाने के लिए भारत मानव विकास सर्वेक्षण (आइएचडीएस) के हाल ही में संपन्न हुए तीसरे खंड के आंकड़ों के साथ पहले खंड और दूसरे खंड के आंकड़ों का भी इस्तेमाल किया गया है।

आइएचडीएस के निष्कर्षों के अनुसार 2004-05 और 2011-12 के बीच गरीबी में उल्लेखनीय कमी आई और यह 38.6 प्रतिशत से घटकर 21.2 प्रतिशत पर आ गई। शोध पत्र में कहा गया है कि आर्थिक विकास और गरीबी में कमी एक गतिशील वातावरण का निर्माण करते हैं, जिसके लिए त्वरित सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों की आवश्यकता होती है।

नीति आयोग के सीईओ ने गरीबी के 5 फीसदी रहने की कही थी बात

इस साल की शुरुआत में नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रमण्यम ने कहा था कि नवीनतम उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण से इस बात का संकेत मिलता है कि देश में गरीबी घटकर पांच प्रतिशत रह गई और ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में लोग समृद्ध हो रहे हैं। नीति आयोग के सीईओ ने कहा था, ''अगर हम गरीबी रेखा लें और इसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआइ) के साथ आज की दर से बढ़ाएं तो हम देखेंगे कि 0-5 प्रतिशत का औसत उपभोग लगभग समान है। इसका मतलब यह है कि देश में गरीबी केवल 0-5 प्रतिशत समूह में है।''

2011-12 के लिए ये थी गरीबी रेखा की सीमा

सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) ने 24 फरवरी को वर्ष 2022-23 के लिए घरेलू उपभोग व्यय पर डेटा जारी किया, जिसमें दिखाया गया कि 2011-12 की तुलना में 2022-23 में प्रति व्यक्ति मासिक घरेलू व्यय दोगुना से भी अधिक हो गया है। तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट द्वारा अनुशंसित गरीबी रेखा ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए क्रमश: 447 रुपये और 579 रुपये निर्धारित की गई थी, लेकिन 2004-2005 में यह राज्यों के बीच अलग-अलग थी। इन गरीबी सीमाओं को बाद में योजना आयोग द्वारा 2011-12 के लिए 860 रुपये और 1,000 रुपये में समायोजित किया गया था।

भारत का सार्वजनिक ऋण बहुत ज्यादा, लेकिन चिंता की बात नहीं

एनसीएईआर की महानिदेशक पूनम गुप्ता ने कहा कि भारत का सार्वजनिक ऋण सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का करीब 82 प्रतिशत के बराबर है, लेकिन उच्च वृद्धि दर तथा भारतीय मुद्रा में ऋण अधिक होने से देश को ऋण स्थिरता की समस्या का सामना नहीं करना पड़ रहा है। एनसीएईआर द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में गुप्ता ने कहा कि भारत का उच्च ऋण स्तर फिलहाल सतत है, क्योंकि वास्तविक या नाममात्र जीडीपी अधिक है और अधिकतर कर्ज रुपये में है। गुप्ता ने कहा कि कुल ऋण में से एक तिहाई राज्यों पर है। 'सामान्य स्थिति' में, अगले पांच वर्षों में उनके ऋण में और वृद्धि ही होगी।

उन्होंने कहा, 'पंजाब और हिमाचल प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में ऋण-जीडीपी अनुपात 50 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।' गुप्ता ने कहा कि सबसे अधिक कर्जदार राज्यों सहित अन्य राज्यों को भी स्थिरता की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता है, क्योंकि उनके पास केंद्र की अंतर्निहित गारंटी होती है और राज्य विदेशी मुद्रा या 'फ्लोटिंग' दर पर ऋण नहीं रख सकते हैं।

'राज्यों की राजकोषीय चुनौतियां' विषय पर आयोजित चर्चा में हिस्सा लेते हुए तक्षशिला संस्थान के पार्षद एम. गोविंद राव ने राज्यों पर बढ़ते कर्ज का एक कारण 'चुनाव में फायदे के लिए सब्सिडी बढ़ाने' को भी बताया। वित्त वर्ष 2022-23 तक पंजाब, हिमाचल प्रदेश तथा बिहार शीर्ष तीन सबसे अधिक ऋणी राज्य थे जबकि सबसे कम कर्ज ओडिशा, महाराष्ट्र और गुजरात राज्य पर था।