नाम- Punjab Mail, उम्र-111 साल, पता- भारतीय रेलवे... जानिए क्या है इस ट्रेन का स्वर्णिम इतिहास
रेलवे का इतिहास इतना खुबसूरत है कि जो कोई भी इसे पढ़ता है वो अपने आप को पूरा पढ़ने से रोक नहीं पाता। आज आप एक ऐसे ही भारतीय रेलवे की सबसे पुरानी ट्रेन के बारे में जानिए जिसने अपना 111 वर्ष पूरा कर लिया है।
नई दिल्ली,बिजनेस डेस्क: भारतीय रेलवे का इतिहास सुनना और पढ़ना सभी को अच्छा लगता है। एक ऐसा ही इतिहास आज हम आपको बताने जा रहे हैं। आज हम आपको उस ट्रेन के बारे में बताएंगे कि भारत की सबसे पुरानी ट्रेन कौन सी है और क्या वो अब तक चल रही है या फिर बंद हो गई।
अगर आप यह सोच रहे हैं कि हम अचानक से आपको ट्रेन के इतिहास के बारे में क्यों बता रहे तो आपको बता दें कि आज 1 जून के दिन भारतीय रेलवे के लिए बड़ा खास है। खास इसलिए क्योंकि इस ट्रेन को आज ही के दिन शुरू किया गया था। इस ट्रेन का नाम है “पंजाब मेल”
आज पूरे हुए 111 साल
भारतीय रेलवे की ट्रेन ‘पंजाब मेल’ रेलवे का सबसे पुराना ट्रेन है। इस ट्रेन को अंग्रेजों द्वारा 1 जून 1912 को शुरू किया था। पहली बार यह ट्रेन उस वक्त के बंबई शहर के बंदरगाह के पास स्थित बलार्ड पियर मोल नाम के स्टेशन से चली थी। बंटवारे से पहले यह ट्रेन पेशावर तक जाती थी और उसके बाद यह ट्रेन फिरोजपुर तक चलने लगी और आज 112वें वर्ष में प्रेवश कर रही है।
शुरुआत में क्या था नाम ?
शुरू में जब यह ट्रेन चली थी तो इसका नाम नहीं था। बलार्ड पियर मोल नाम के स्टेशन से शुरू होने के बाद यह ट्रेन इटारसी, आगरा, दल्ली और लाहौर होते हुए पेशावर कैंट तक जाती थी। इस वक्त इस ट्रेन का नाम पंजाब लिमिटेड (Punjab Limited) था।
दो साल में बदला शुरुआती स्टेशन और नाम
शुरू में दो सालों तक बलार्ड पियर मोल स्टेशन से चलने के बाद इस ट्रेन को कुछ ऑपरेशनल कारणों की वजह से दो साल के बाद 1914 में बॉम्बे वीटी, वीटी यानी विक्टोरिया टर्मिनस से शुरू किया जाने लगा जो वर्तमान में छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस के नाम से जाना जाता है। इसी साल इस ट्रेन का नाम भी पंजाब मेल पड़ा।
सबसे तेजी से चलने वाली थी ट्रेन
फिलहाल रेलवे में वंदे भारत को सबसे तेज स्पीड से चलने वाली ट्रेन कहा जाता है लेकिन पंजाब मेल जब चली थी तब उस जमाने में यह अपने जमाने की वंदे भारत थी। इस ट्रेन को अंग्रेज भी काफी पसंद करते थे। कहा जाता है कि अंग्रेज बोट से उतरने के बाद इसी ट्रेन में चढ़कर लाहौर जाते थे।
आप क्रोनोलॉजी समझ लीजिए
सबसे पहले हर ट्रेन की तरह इस ट्रेन में भी स्टीम इंजन था। सन् 1945 में इस ट्रेन में एसी कोच को जोड़ा गया। ट्रेन में बॉम्बे से झांसी के लिए डीजल इंजन लगाकर आगे दिल्ली के लिए रवाना किया जाता था।
1976 में इस ट्रेन को पूरे रूट के लिए डीजल इंजन दिया गया। वहीं 1970 के दशक के अंतिम साल में इसमें इलेक्ट्रिक इंजन जोड़ा गया।