बोले राजन- फंसे कर्जों की साफ-सफाई से नैतिकता को रखें दूर
विजय माल्या के हजारों करोड़ का कर्ज चुकाए बिना विदेश भागने के बाद से कॉरपोरेट के लोन डिफॉल्ट को लेकर विवाद बेहद गरम है। ऐसे माहौल में रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि एनपीए यानी फंसे कर्ज के मसले में नैतिकता बहुत ज्यादा घुस गई
न्यूयॉर्क, पीटीआइ : विजय माल्या के हजारों करोड़ का कर्ज चुकाए बिना विदेश भागने के बाद से कॉरपोरेट के लोन डिफॉल्ट को लेकर विवाद बेहद गरम है। ऐसे माहौल में रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि एनपीए यानी फंसे कर्ज के मसले में नैतिकता बहुत ज्यादा घुस गई है।
एनपीए की साफ-सफाई से नैतिकता को दूर ही रखें तो बेहतर है। तमाम स्ट्रेस्ड संपत्तियों को फिर से दुरुस्त हालत में लाने के लिए फंसे कर्ज से क्रिमिनल लायबिलिटी को अलग रखना जरूरी है। राजन यहां कोलंबिया लॉ स्कूल में बोल रहे थे।
आरबीआइ गवर्नर ने कहा, 'इस वक्त ऐसा चलन बन गया है। लोग कह रहे हैं कि ये अच्छे हैं, वे बुरे। मगर मेरा मानना है कि फंसे कर्ज की साफ-सफाई में नैतिकता को बीच में नहीं घुसेडऩा चाहिए।Ó राजन से पूछा गया था कि जब तमाम बड़े नाम और बड़ी कंपनियां कर्ज न चुकाने वालों में शामिल हैं तो क्या एनपीए उनके लिए चिंता का विषय है।
इस बारे में उन्होंने अपनी स्थिति और स्पष्ट करते हुए कहा कि एनपीए की सफाई का मुद्दा सिर्फ इस बात से संबंधित है कि कोई कर्ज फंसा हुआ है या फिर नहीं। कोई लोन इसलिए भी एनपीए हो सकता है कि लेने वाले की किस्मत खराब है या कई बार इसमें किसी और का दोष हो सकता है।
किसी ने आपका लाइसेंस रद कर दिया, समय पर काम शुरू करने की मंजूरी नहीं मिली या फिर आपके पार्टनर ने सही ढंग से काम नहीं किया। कंपनियों के संकट में पडऩे के कई कारण हो सकते हैं। अगर कंपनियां मुश्किल में पड़ती हैं, तो लोन एनपीए में तब्दील हो जाता है। हम चाहते हैं कि ये स्ट्रेस्ड संपत्तियों की स्थिति फिर से दुरस्त हो जाए।
यह बिल्कुल अलग मसला है कि इसके लिए कौन दोषी है और यह भी कि क्या कोई क्रिमिनल लायबिलिटी भी इससे जुड़ती है। अलबत्ता कुछ मामलों में ऐसी जवाबदेही हो सकती है। उन्होंने जोर देते हुए कहा कि संपत्ति कोई अपराधी नहीं है। संपत्ति मूल्य का सृजन कर सकती है और काम भी कर सकती है। सरकार ने भी साफ तौर पर कहा है कि वह बैंकों के लोन देने की प्रक्रिया में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी। अब अगले चरण में जरूरी है कि बैंकों में प्रशासनिक व्यवस्था को बेहतर बनाया जाए।
इसके बाद आखिरी चरण में स्ट्रेस्ड संपत्तियों की साफ-सफाई की जानी है ताकि बैंकों के पास और कर्ज देने की गुंजाइश बने। हम चाहते हैं कि हमारे बैंकों को उनका बकाया कर्ज वापस मिल जाए। इसके लिए एक बेहतर बैंक्रप्सी व अदालती प्रणाली की जरूरत है, जो समयबद्ध ढंग से काम करे। पहले ऐसा नहीं हुआ। उम्मीद है कि बैंक्रप्सी कोड बिल जल्द ही पारित हो जाएगा।
178 अरब डॉलर के कर्ज पर डिफॉल्ट का खतरा
भारत में बैंकों की ओर से कॉरपोरेट को दिए गए कर्ज में से 178 अरब डॉलर की राशि यानी 16.1 फीसद हिस्सा एनपीए में तब्दील हो सकता है। प्रमुख फ्रांसीसी वित्तीय सेवा फर्म बीएनपी पारिबा की एक रिपोर्ट में यह चेतावनी दी गई है। बैंकों ने कुल 1,109 अरब डॉलर का कर्ज दे रखा है। रिपोर्ट के मुताबिक इस मामले में भारत के बाद इंडोनेशिया और चीन का नंबर है। चीन के कुल कर्ज में से 6.6 फीसद राशि के डिफॉल्ट का खतरा है।
महंगाई और मानसून पर नजर
राजन के मुताबिक, रिजर्व बैंक महंगाई के आंकड़ों और मानसून की भविष्यवाणियों पर नजर रख रहा है। इन्हीं के आधार पर केंद्रीय बैंक अपनी नीतिगत ब्याज दर (रेपो रेट) में कमी का फैसला करेगा। ग्लोबल वित्तीय सेवा फर्म मॉर्गन स्टैनले ने कहा है कि मौसम के बेहतर रहने के अनुमान को देखते हुए खाद्य उत्पादों की कीमतें नरम रहेंगी।
इसलिए केंद्रीय बैंक के पास रेपो रेट (वह दर जिस पर आरबीआइ बैंकों को कम अवधि के कर्ज देता है) में चालू वित्त वर्ष के दौरान आधा फीसद की और कटौती की गुंजाइश है।