Global Warming : आपकी EMI कम नहीं हो रही, कहीं जलवायु परिवर्तन तो नहीं इसकी वजह?
आरबीआई की मौद्रिक नीति रिपोर्ट- अप्रैल 2024 में कहा गया है कि वैश्विक औसत तापमान बढ़ रहा है। साथ ही एक्स्ट्रीम वेदर इवेंट्स (EWE) में भी बढ़ोतरी हुई। इसका और ग्लोबल वार्मिंग का आर्थिक और सामाजिक प्रभाव तेजी से सामने आ रहा है। इसके चलते केंद्रीय बैंक को अपनी मौद्रिक नीति में बदलाव करके जनता को राहत देने में दिक्कत हो रही है।
पीटीआई, मुंबई। रिजर्व बैंक का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते लगातार होने वाले मौसम में असामान्य बदलाव मौद्रिक नीति के लिए चुनौती पैदा करते हैं। साथ ही, इससे आर्थिक विकास के मोर्चे पर जोखिम भी पैदा होता है।
आरबीआई की मौद्रिक नीति रिपोर्ट- अप्रैल 2024 में कहा गया है कि वैश्विक औसत तापमान बढ़ रहा है। साथ ही, एक्स्ट्रीम वेदर इवेंट्स (EWE) में भी बढ़ोतरी हुई। इसका और ग्लोबल वार्मिंग का आर्थिक और सामाजिक प्रभाव तेजी से सामने आ रहा है।
ग्लोबल वार्मिंग का कृषि उत्पादन पर बुरा असर
आरबीआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन से मौसम के असामान्य झटके लगने का सिलसिला बढ़ गया है। इससे मौद्रिक नीति के लिए चुनौती खड़ी हो गई है।
केंद्रीय बैंक ने कहा कि जब मौसम में कोई असामान्य बदलाव होता है, तो उसका बड़ा व्यापक असर पड़ता है। कृषि उत्पादन घट जाता है और सप्लाई चेन पर बुरा असर पड़ता है। इससे महंगाई बढ़ती है।
इसका नकारात्मक असर यह होता है कि रिजर्व बैंक के लिए मौद्रिक नीति के जरिए आम जनता को किसी किस्म की राहत देना मुश्किल हो जाता है, क्योंकि उसे महंगाई को भी काबू में करके रखना होता है।
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9 प्रतिशत तक घट जाएगा उत्पादन?
अगर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को कम करने के उपाय नहीं किए गए, तो 2050 तक उत्पादन में 9 प्रतिशत तक की कमी आ जाएगी। उस वक्त जलवायु परिवर्तन के भौतिक जोखिम का असर अर्थव्यवस्था पर खुलकर नजर आने लगेगा।
आरबीआई ने कहा, 'कम उत्पादकता से इंटरेस्ट के नेचुरल रेट में गिरावट हो सकती है। मुद्रास्फीति के लगातार झटके के कारण कम नेचुरल इंटरेस्ट रेट के साथ भी सख्त मौद्रिक नीति की जरूरत होगी।'
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