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RBI MPC Meet 2024: महंगाई का 'हाथी' काबू में, सस्ते कर्ज के लिए अभी करना होगा इंतजार

एमपीसी की बैठक हर दो महीनों पर होती है और यह इस समिति की सातवीं बैठक है जिसमें रेपो रेट को उसके मौजूद दर 6.5 फीसद पर ही बना कर रखने का फैसला किया है। पिछले एक वर्ष से खुदरा महंगाई की दर तकरीबन छह फीसद या इससे नीचे ही हैं। आरबीआइ इसे चार फीसद पर लाने की कोशिश में है।

By Jagran News Edited By: Praveen Prasad Singh Updated: Fri, 05 Apr 2024 06:51 PM (IST)
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शक्तिकांत दास ने बताया कि एमपीसी के छह सदस्य रेपो रेट को स्थिर रखने के पक्ष में थे।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। आम ग्राहकों को होम लोन, ऑटो लोन व दूसरे बैंकिंग कर्ज के सस्ता होने के लिए अभी और इंतजार करना पड़ेगा। शुक्रवार को मौद्रिक नीति की समीक्षा करने वाली समिति ने इन दरों को प्रभावित करने वाले रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं करने का फैसला किया है। आरबीआइ गवर्नर डॉ. शक्तिकांत दास ने हालांकि लंबे समय के बाद यह कहा है कि महंगाई रूपी हाथी अब काबू में है।

साल के आखिर में कम हो सकता है रेपो रेट

उन्होंने चालू वित्त वर्ष 2024-25 के लिए खुदरा महंगाई दर (सीपीआइ) के सालाना लक्ष्य को घटा कर 4.5 फीसद पर कर दिया है। जबकि देश की अर्थव्यवस्था में 7 फीसद की वृद्धि दर का अनुमान लगाया है। ऐसा हुआ तो भारत लगातार चौथे वर्ष सात फीसद से ज्यादा की आर्थिक वृद्धि दर हासिल करेगा। उम्मीद की जा सकती है कि सब कुछ सामान्य रहा तो इस साल के अंतिम महीनों में रेपो रेट को घटा कर आम जनता व उद्योग जगत के लिए सस्ते कर्ज का रास्ता साफ हो सकता है।

लगातार सातवीं बार रेपो रेट में नहीं हुआ बदलाव

एमपीसी की बैठक हर दो महीनों पर होती है और यह इस समिति की सातवीं बैठक है जिसमें रेपो रेट को उसके मौजूद दर 6.5 फीसद पर ही बना कर रखने का फैसला किया है। पिछले एक वर्ष से खुदरा महंगाई की दर तकरीबन छह फीसद या इससे नीचे ही हैं। आरबीआइ इसे चार फीसद पर लाने की कोशिश में है। दो वर्ष पहले जब महंगाई की दर छह फीसद को पार कर गई तो इसे काबू में लाने के लिए आरबीआइ ने कर्ज को महंगा करने का फैसला किया और कुछ ही महीनों में रेपो रेट (वह दर जिस पर बैंक अतिरिक्त फंड आरबीआइ के पास रख कर कर्ज लेते हैं और इसका इस्तेमाल अल्पकालिक अवधि वाले कर्ज के वितरण में करते हैं) को चार फीसद से बढ़ा कर 6.5 फीसद कर दिया गया था। इसकी वजह से होम लोन, ऑटो लोन आदि की दरों में भी दो फीसद तक महंगे हो गये थे। अब महंगाई नीचे आ रही है तो रेपो रेट के कम होने की संभावना है जिससे कर्ज भी सस्ते होंगे।

रेपो रेट को स्थिर रखने के पक्ष में थे एमपीसी के छह सदस्य

आरबीआइ के गवर्नर डॉ. शक्तिकांत दास ने बताया कि एमपीसी के छह सदस्य रेपो रेट को स्थिर रखने के पक्ष में थे। सभी छह सदस्य इस पक्ष में हैं कि विकास के लिए जरूरी फंड की उपलब्धता बनी रहे लेकिन ब्याज दरों को घटाने का फैसला क्रमवार तरीके से हो। महंगाई की तुलना कमरे में बैठे हाथी से करते हुए उन्होंने कहा कि अभी हाथी जंगल में है और उसे वहीं पर लंबे समय तक रखने की कोशिश करनी है। हालांकि उन्होंने वैश्विक हालात को देखते हुए यह भी स्पष्ट कर दिया कि महंगाई पर काबू पाने का काम अभी पूरा नहीं हुआ है क्योंकि सीपीआइ अभी चार फीसद से ज्यादा बनी हुई है। खास तौर पर खाद्य उत्पादों की महंगाई दर के फिर से उभरने का खतरा बना ही हुआ है। लेकिन अच्छी बात यह है कि देश की इकोनमी मजबूत है और ऐसे में आरबीआइ के पास महंगाई को काबू में करने का ज्यादा विकल्प मौजूद है।

इकोनॉमी की है गुलाबी तस्वीर

मौद्रिक नीति समीक्षा करते हुए आरबीआइ गवर्नर डॉ. दास ने देश की आर्थिक स्थिति की भी गुलाबी तस्वीर पेश की है। उन्होंने वर्ष 2024-25 के दौरान देश की आर्थिक विकास दर के 7 फीसद रहने का अनुमान लगाया है। वर्ष 2023-24 में आर्थिक विकास दर के 7.6 फीसद रहने का आंकड़ा जारी किया गया है जो पूर्व के सभी अनुमानों से बेहतर है। विश्व बैंक, आइएमएफ समेत सभी वैश्विक एजेंसियां व रेटिंग कंपनियां भारत की ग्रोथ रेट अनुमान को पहले से बढ़ा रही हैं।

आरबीआइ गवर्नर ने जो डाटा पेश किया है उससे यह भी पता चलता है कि इकोनमी को रफ्तार देने वाले सारे क्षेत्र में सकारात्मक स्थिति है। मैन्युफैक्चरिंग में सुधार है, सेवा क्षेत्र में तेजी है, ग्रामीण क्षेत्रों में भी मांग रफ्तार पकड़ चुकी है जिसका काफी असर होगा। सीमेंट और इस्पात उत्पादन में वृद्धि और पूंजीगत उत्पादों के आयात में वृद्धि बता रहा है कि उत्पादन का एक चक्र स्थापित हो चुका है। वर्ष 2023-24 में बैंकों ने कुल 31.2 लाख करोड़ रुपये का कर्ज दिया है।

डॉ. दास ने कहा है कि, “अभी तक कृषि सेक्टर व ग्रामीण इकोनमी की गतिविधियां बेहतर रहने की संभावना है। रबी की फसल अच्छी हुई है और खरीफ की स्थिति भी बेहतर रहेगी क्योंकि मानसून के सामान्य रहने की बात कही गई है। महंगाई की दर में कमी का भी फायदा होगा क्योंकि दूसरे सेक्टरों में इससे मांग बढ़ेगी।'' चिंता सिर्फ वैश्विक घटनाओं को लेकर है जो अनिश्चित हैं।