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कैग ऑडिट के दायरे में आए रिजर्व बैंकः शर्मा

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) शशि कांत शर्मा ने कहा है कि आरबीआइ जैसे वित्तीय नियामकों का भी ऑडिट किए जाने पर विचार करने की जरूरत है।

By Sanjeev TiwariEdited By: Updated: Fri, 01 Jul 2016 10:33 PM (IST)
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नई दिल्ली, प्रेट्र/आइएएनएस। रिजर्व बैंक को कैग के ऑडिट के दायरे में लाने की मांग उठी है। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) शशि कांत शर्मा ने कहा है कि आरबीआइ जैसे वित्तीय नियामकों का भी ऑडिट किए जाने पर विचार करने की जरूरत है। इससे धोखाधड़ी से निपटने में उनकी कुशलता का पता लग सकेगा। वह यह भी मानते हैं कि वाणिज्यिक बैंकों के फंसे कर्जो का बड़ा हिस्सा धोखाधड़ी का नतीजा है।

यहां वित्तीय और कॉरपोरेट धोखाधड़ी पर एसोचैम के एक कार्यक्रम में पहुंचे शर्मा ने कहा कि अमेरिका और ब्रिटेन में हुए घटनाक्रम वित्तीय सेक्टर के रेगुलेटरों की अधिक जवाबदेही और पारदर्शिता की मांग कर रहे हैं। दुनिया भर में हुए घोटालों ने अप्रत्याशित दबाव और उठापटक की स्थिति बना दी है। इसके चलते वित्तीय क्षेत्र के नियामकों की प्रभावशीलता और कार्यप्रणाली के क्षेत्र में वांछित स्तर के आश्वासन की मांग उठी है।

शर्मा बोले कि देश में कैग आरबीआइ का ऑडिट नहीं करता है। उसके ऑडिटर आरबीआइ एक्ट के प्रावधानों के तहत केंद्र सरकार नियुक्त करती है। वित्तीय धोखाधड़ी की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए यह विचार करने की जरूरत है कि क्या भविष्य में फाइनेंशियल सेक्टर के समक्ष जोखिम और कमजोरियों को लेकर कैग ऑडिट होना चाहिए या नहीं। ऐसे जोखिमों को घटाने में रेगुलेटरों की क्षमता और कुशलता का पता लगाने की जरूरत है। इस तरह के मामले पर बातचीत के लिए अमेरिका और ब्रिटेन के घटनाक्रम उपयुक्त साबित होंगे।

कैग के मुताबिक वित्तीय धोखाधड़ी और कमजोरियों से जोखिम ज्यादा हैं। इनसे निपटने के लिए व्यापक रणनीति की जरूरत है। वित्तीय प्रणाली के साथ सार्वजनिक हित की सुरक्षा के लिए ऐसा करना चाहिए। ऐसे देश में जहां वित्तीय साक्षरता बहुत कम है, वहां इस तरह की धोखाधड़ी की आशंका अधिक होती है। वित्तीय साक्षरता बढ़ाकर इस तरह के जोखिम से निपटा जा सकता है। इसके साथ ही नियामकों को वित्तीय धोखाधड़ी से निपटने के लिए आपस में मिलकर न केवल अपनी क्षमता बढ़ानी चाहिए, बल्कि नियामकीय बाधाओं को भी दूर करना चाहिए।

शर्मा ने कहा कि बैंकों के बढ़ रहे फंसे कर्ज (एनपीए) चिंता का विषय हैं। इनका बड़ा हिस्सा धोखाधड़ी का नतीजा हैं। इस तरह की भी धारणा है कि इसमें से बड़ी राशि विदेश पहुंचाई जा चुकी है और इसकी कभी वसूली नहीं हो सकेगी। वित्त वर्ष 2015-16 की चौथी तिमाही में फंसे कर्जो की प्रॉविजनिंग करने के कारण दस सरकारी बैंकों को 15 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। राज्य सरकारों की ओर से नियंत्रित चिट फंड स्कीमों व गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को शर्मा ने बड़ा जोखिम बताया। वजह यह है कि इनमें आसानी से धोखाधड़ी हो सकती है।

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