बड़ी कंपनियों के खिलाफ GST जांच के लिए पहले लेनी होगी मंजूरी, जानिए क्यों बना यह नियम?
अब जीएसटी के क्षेत्रीय अधिकारी किसी भी बड़े औद्योगिक घराने या प्रमुख बहुराष्ट्रीय कंपनी के खिलाफ सीधे जांच नहीं शुरू कर पाएंगे। अगर कोई गड़बड़ी और जांच की जरूरत नजर आती है तो उन्हें पहले अपने क्षेत्रीय प्रधान मुख्य आयुक्त से मंजूरी लेनी होगी। यह मंजूरी उन्हें पहली बार वस्तुओं/सेवाओं पर शुल्क लगाने के लिए भी लेनी पड़ेगी। आइए जानते हैं कि यह नियम क्यों बनाया गया है।
पीटीआई, नई दिल्ली। जीएसटी के क्षेत्रीय अधिकारियों को अब किसी भी बड़े औद्योगिक घराने या प्रमुख बहुराष्ट्रीय कंपनी के खिलाफ जांच शुरू करने से पहले अपने क्षेत्रीय प्रधान मुख्य आयुक्त से मंजूरी लेनी होगी। यह मंजूरी उन्हें पहली बार वस्तुओं/सेवाओं पर शुल्क लगाने के लिए भी लेनी पड़ेगी। केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) ने केंद्रीय जीएसटी (सीजीएसटी) अधिकारियों के लिए दिशानिर्देश जारी किए हैं।
जांच से पहले मंजूरी लेने का नियम क्यों?
सीबीआईसी के दिशानिर्देशों के अनुसार, जब एक करदाता की जांच राज्य जीएसटी और डीजीजीआई अधिकारी कर रहे हैं, तो प्रधान आयुक्त इस संभावना पर विचार करेंगे कि करदाता के संबंध में सभी मामलों को एक कार्यालय द्वारा आगे बढ़ाया जाए। दिशानिर्देशों में कर अधिकारियों के लिए जांच शुरू होने के एक साल के भीतर जांच पूरी करने की समय सीमा भी तय की गई है।
सीबीआईसी ने आगे कहा कि किसी सूचीबद्ध कंपनी या पीएसयू के संबंध में जांच शुरू करने या उनसे विवरण मांगने के लिए सीजीएसटी अधिकारियों को इकाई के नामित अधिकारी को समन भेजने के बजाय आधिकारिक पत्र जारी करना चाहिए। बोर्ड ने कहा कि इस पत्र में जांच के कारणों का विवरण देना चाहिए और उचित समयावधि में दस्तावेजों को प्रस्तुत करने की मांग करनी चाहिए।
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उपलब्ध जानकारी ना मांगने की नसीहत
सीबीआईसी के दिशानिर्देशों में यह भी कहा गया है कि कर अधिकारियों को करदाता से वह जानकारी नहीं मांगनी चाहिए, जो जीएसटी पोर्टल पर पहले से ही ऑनलाइन उपलब्ध है। दिशानिर्देशों में यह भी कहा गया है कि प्रत्येक जांच प्रधान आयुक्त की मंजूरी के बाद ही शुरू की जानी चाहिए।हालांकि, चार श्रेणियों में जांच शुरू करने और कार्रवाई करने के लिए क्षेत्रीय प्रधान मुख्य आयुक्त की लिखित में पूर्व मंजूरी की जरूरत होगी। इन चार श्रेणियों में किसी भी क्षेत्र/वस्तु/सेवा पर पहली बार कर/शुल्क लगाने की मांग करने वाली व्याख्या के मामले शामिल हैं।इसके अलावा बड़े औद्योगिक घराने और प्रमुख बहुराष्ट्रीय निगम से जुड़े मामले, संवेदनशील मामले या राष्ट्रीय महत्व के मामले और ऐसे मामले जो पहले से ही जीएसटी परिषद के समक्ष हैं, इसमें शामिल हैं।
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