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25 महीने के निचले स्तर पर Retail Inflation, अर्थव्यवस्था के लिए क्या है इसका मतलब

मई में खुदरा मुद्रास्फीति अपने 25 महीने के नीचले स्तर पर आ चुकी है। आपको बता दें कि अप्रैल में खुदरा मुद्रास्फीति 4.23 फीसदी थी जो अब घटकर 4.25 प्रतिशत पर आ गई है। तो आखिर इसके कम होने का क्या मतलब है।

By Gaurav KumarEdited By: Gaurav KumarUpdated: Fri, 16 Jun 2023 09:44 PM (IST)
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Retail inflation at 25-month low, know what it means for the economy
नई दिल्ली,बिजनेस डेस्क: पिछले महीने खुदरा मुद्रास्फीति 25 महीने के नीचले स्तर 4.25 प्रतिशत पर पहुंच गई है। इसका कारण मुख्य रूप से खाद्य और ईंधन वस्तुओं की कीमतों में नरमी आना कहा जा रहा है।

यह लगातार चौथा महीना है जब खुदरा मुद्रास्फीति में गिरावट आई है और कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) आधारित मुद्रास्फीति का लगातार तीसरा महीना है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के अनुमानों के मुताबिक मुद्रास्फीति 6 प्रतिशत के नीचे ही रहेगा। तो आखिरी खुदरा मुद्रास्फीति के कम होने से देश की जीडीपी पर क्या असर पड़ता है, आइए जानते हैं।

खुदरा मुद्रास्फीति के रिकॉर्ड

खुदरा मुद्रास्फीति अप्रैल 2021 के बाद से सबसे कम 4.25 प्रतिशत पर है। अप्रैल में यह 4.23 फीसदी थी। खुदरा मुद्रास्फीति मई 2022 में बढ़कर 7.04 फीसदी तक बढ़ गया।

खाद्य सामग्री के लिए मुद्रास्फीति अप्रैल के 3.84 फीसदी की तुलना में मई में घटकर 2.91 प्रतिशत थी। ईंधन और बिजली की महंगाई मई में घटकर 4.64 फीसदी रही, जो अप्रैल में 5.52 प्रतिशत थी।

क्या है खुदरा महंगाई घटने का कारण?

मुद्रास्फीति में गिरावट का मुख्य रूप से कारण 'तेल और फैट' वाले खाद्य पदार्थों और सब्जियों का सस्ता होना है। आपको बता दें कि तेल और फैट वाले खाद्य पदार्थों की मुद्रास्फीति 16 फीसदी और सब्जियां 8.18 प्रतिशत गिरी थी। वित्त वर्ष 24 के पहले महीने यानी अप्रैल में खुदरा मुद्रास्फीति 4.7 फीसदी थी।

रेपो रेट के साथ क्या संबंध?

हाल ही में 8 जून को आरबीआई ने रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं करने का फैसला किया था। इसका मतलब रेपो रेट 6.5 प्रतिशत पर बना रहेगा। इससे पहले, आरबीआई ने मुद्रास्फीति को रोकने के लिए मई 2022 से रेपो दर में अब तक 250 बेसिस प्वाइंट की बढ़ोतरी की थी।

इस मामलें में विशेषज्ञों राय अलग-अलग है। कुछ का मानना ​​है कि आरबीआई चालू वित्त वर्ष के बाकी महीनों के लिए रेपो रेट को स्थिर रखेगा तो वहीं दूसरों का मानना ​​है कि परीक्षण के रूप में आरबीआई रेपो रेट में मामूली कमी कर सकता है।

ग्रोथ से कैसे जुड़ा है खुदरा मुद्रास्फीति?

रेपो रेट वह ब्याज दर है जिस पर किसी देश का केंद्रीय बैंक, वाणिज्यिक बैंकों को पैसा उधार देता है। रेपो रेट आरबीआई के पास मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने का एक टूल है।

रेपो रेट में बदलाव न करना आदर्श रूप से वर्तमान गति से बढ़ती मांग और स्थिर गति से विकास में योगदान देना ही है। वहीं अगर रेपो रेट में कमी आएगी तो अर्थव्यवस्था में उत्पादन और मांग में वृद्धि होगी और विकास को एक बड़ा बढ़ावा मिलेगा।