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Rupee at record low: रुपये में गिरावट से बढ़ सकती है महंगाई, लेकिन निर्यात को मिलेगी संजीवनी

Rupee at record low विशेषज्ञों का मानना है कि रुपये में गिरावट से महंगाई को काबू में रखने की कोशिशें बेकार जा सकती हैं लेकिन इस गिरावट से कुछ वस्तुओं और सेवाओं के निर्यात को बढ़ावा मिलेगा। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 80 के पास पहुंच चुका है।

By Siddharth PriyadarshiEdited By: Updated: Sun, 17 Jul 2022 05:26 PM (IST)
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Rupee fall may worsen inflation but makes exports competitive
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। रुपये में हो रही (Rupee Price Fall) लगातार गिरावट ने चालू खाते के घाटे को बुरी तरह प्रभावित किया है। इससे मुद्रास्फीति पर भी दबाव बढ़ने की आशंका गहरा गई है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इसने भारतीय निर्यात को और अधिक प्रतिस्पर्धी बना दिया है। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया नीचे आकर 80 के करीब पहुंच गया है, जिससे आयात महंगा हो गया है।

पीडब्ल्यूसी इंडिया के आर्थिक सलाहकार रानन बनर्जी ने समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए गए एक बयान में कहा कि रुपये के लगातार गिरने से अर्थव्यवस्था पर बहुत गहरीअसर पड़ेगा। इससे चालू खाते का बढ़ता जाएगा। आयात महंगा होने से मुद्रास्फीति पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा। इसके गिरते रहने से आयात बिल में बेतहाशा वृद्धि की आशंका बलवती हो गई है।

चालू खाते का घाटा एक बड़ी चुनौती

वित्त मंत्रालय की एक हालिया रिपोर्ट में भी आगाह किया गया है कि भारत का चालू खाता घाटा (Current account deficit- CAD) चालू वित्त वर्ष में महंगे आयात और कम माल निर्यात के कारण और भी बढ़ने की आशंका है। भारत का चालू खाता घाटा 2021-22 में सकल घरेलू उत्पाद (DGP) का 1.2 प्रतिशत था। डेलॉयट इंडिया की अर्थशास्त्री रुमकी मजूमदार ने कहा कि वैश्विक मुद्रास्फीति और कमोडिटी की कीमतों में वृद्धि, विकसित देशों की सख्त मौद्रिक नीति, बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव और वैश्विक मंदी की गहराती आशंकाओं के बीच अमेरिकी डॉलर मजबूत हुआ है। हालांकि उन्होंने कहा कि मुद्रा की कीमत गिरना हमेशा अर्थव्यवस्था को नुकसान नहीं पहुंचाता है। दुनिया भर में डिजिटलीकरण पर जोर के चलते सेवाओं का निर्यात राजस्व को बढ़ाने का एक शानदार अवसर है। साथ ही रुपये के कमजोर होने से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों के लिए इक्विटी बाजार में प्रवेश कर लंबी अवधि में शानदार रिटर्न हासिल करने का मौका है।

विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने (FPI) जून में लगातार नौवें महीने भारतीय इक्विटी बाजार से पैसे निकाले। जून में यह ऑउटफ्लो 49,469 करोड़ रुपये रहा जो मार्च 2020 के बाद सबसे अधिक था। वहीं एक 1-15 जुलाई के दौरान विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने 7,432 करोड़ रुपये भारतीय बाजार से निकाले हैं। कुल मिलाकर, एफपीआई 2022-23 में भारतीय इक्विटी बाजार से अब तक 1.2 लाख करोड़ रुपये निकाले चुके हैं। लेकिन घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) द्वारा जमकर की गई खरीदार से इसको बैलेंस करने में मदद मिली है।

बढ़ता जा रहा है इंपोर्ट बिल

आईसीआरए लिमिटेड की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर का मानना है कि रुपया कमजोर होने से कमोडिटी की कीमतों में गिरावट का लाभ नहीं मिल पाएगा और यह अगले कुछ महीनों में थोक (WPI) और खुदरा (CPI) मुद्रास्फीति में गिरावट को बेअसर कर देगा। हालांकि रुपये की तुलना में कई अन्य मुद्राओं में होने वाली गिरावट को देखते हुए निर्यात को कुछ हद तक प्रतिस्पर्धी बनाने में मदद मिलेगी। ताजा आंकड़ों के मुताबिक, जून महीने में देश का आयात 57.55 फीसदी बढ़कर 66.31 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। जून 2022 में व्यापारिक व्यापार घाटा 26.18 बिलियन डॉलर हो गया, जो जून 2021 में 9.60 बिलियन अमरीकी डॉलर था। इस तरह देखें तो इसमें कि 172.72 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जून में कच्चे तेल का आयात लगभग दोगुना बढ़कर 21.3 अरब डॉलर हो गया। जून 2021 में 1.88 बिलियन डॉलर के मुकाबले कोयले और कोक का आयात जून 2022 में 6.76 बिलियन डालर हो गया।

आरबीआइ बढ़ा सकता है ब्याज दरें

विशेषज्ञों की मानें तो भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) अगले महीने प्रमुख ब्याज दरों में लगातार तीसरी वृद्धि कर सकता है। खुदरा मुद्रास्फीति 7 प्रतिशत से ऊपर बने रहने के चलते आरबीआइ के सामने कोई और दूसरा विकल्प भी नहीं है। आरबीआई द्वारा ब्याज दर में बढ़ोतरी से रुपये को समर्थन मिलेगा।