Sovereign Gold Bond Scheme: सरकार के लिए क्यों एसजीबी बन रहा है घाटे का सौदा? यहां समझें पूरी बात
डिजिटल गोल्ड को बढ़ावा देने के लिए साल 2015 में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) स्कीम लॉन्च की थी। यह स्कीम 8 साल में मैच्योर होती है। अब 2015 की सीरीज नवंबर 2024 मैच्योर हो जाएगी। इस स्कीम के मैच्योर होने से निवेशकों को लाभ तो हो रहा है पर यह सरकार के लिए बोझ बढ़ा रहा है।
बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। सोना खरीदना या गोल्ड में निवेश भारतीय लोगों की पहली पसंद है। सोने का आयात करने के मामले में भी भारत दुनिया के शीर्ष देशों में शुमार है। लेकिन, गोल्ड के आयात में बड़े पैमाने पर पैसा विदेश चला जाता है।
ऐसे में सरकार ने डिजिटल गोल्ड (Digital Gold) को बढ़ावा देने की रणनीति अपनाई और नवंबर 2015 में सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) की शुरुआत की। यह फिजिकल गोल्ड (Physical Gold) खरीदने के बजाय उस पर निवेश का एक सुरक्षित और सरल ऑप्शन है। इस बॉन्ड में निवेशक को सोने की कीमतों में हुई वृद्धि के साथ ब्याज का लाभ भी मिलता है। इसका मतलब है कि निवेशकों को दोहरा लाभ होता है।
अब इस साल नवंबर में गोल्ड बॉन्ड की पहली सीरीज मैच्योर होने वाली है। 8 साल के बाद बॉन्ड के मैच्योर होने से निवेशक मालामाल होंगे, लेकिन सरकार के लिए यह घाटे का सौदा बन रहा है। इससे सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ने का अंदेशा है।
सरकार को कैसे होगा घाटा
सरकार को उम्मीद थी कि एसजीबी में उन्हें रिटर्न पर ज्यादा पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा। इसकी एक ही सूरत थी कि सोने का भाव धीरे-धीरे और लंबी अवधि में बढ़े। लेकिन, साल 2015 के बाद से सोने की कीमतों में भारी उछाल आया है।2016 में सोने की कीमतों में 8.65 फीसदी की तेजी आई थी। इसी तरह 2019 में सोना की कीमत में 12 फीसदी और 2020 साल में 38 फीसदी का उछाल आया। इसे ऐसे समझिए कि जहां 2016 में सोने की कीमत 28,623 रुपये प्रति 10 ग्राम थी, जो 2024 में चढ़कर 71,510 रुपये के पार पहुंच गई।