मॉरीशस के रास्ते भारत आ रहे काले धन पर नई दिल्ली की चिंताओं पर ध्यान देते हुए सरकार ने जांच प्रक्रिया को कड़ा करने का फैसला लिया है। मॉरीशस के वित्तीय सेवा नियामक एफएससी की सीईओ क्लेरेट ए-हेन ने बताया कि मनी लॉन्डिंग गतिविधियों में लिप्त कंपनियों का लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा। नियामक की नजर उन लोगों पर
By Edited By: Updated: Mon, 30 Mar 2015 06:40 PM (IST)
पोर्टलुई। मॉरीशस के रास्ते भारत आ रहे काले धन पर नई दिल्ली की चिंताओं पर ध्यान देते हुए सरकार ने जांच प्रक्रिया को कड़ा करने का फैसला लिया है। मॉरीशस के वित्तीय सेवा नियामक एफएससी की सीईओ क्लेरेट ए-हेन ने बताया कि मनी लॉन्डिंग गतिविधियों में लिप्त कंपनियों का लाइसेंस रद्द कर दिया जाएगा। नियामक की नजर उन लोगों पर है जो भारत में काला धन निवेश करने के लिए मॉरीशस का इस्तेमाल कर रहे हैं। क्लेरेट ने बताया कि दोनों देश द्विपक्षीय कराधान समझौते में बदलावों पर विचार कर रहे हैं।
पढ़ें : सेबी ने तेज की मनीलांड्रिंग के खिलाफ कार्रवाई संयुक्त कार्यसमूह की बैठक इस महीने के अंत या अक्टूबर की शुरुआत में होगी। इसमें भारत की चिंताओं को शामिल किया जाएगा। दोनों देशों के बीच हुए दोहरे कराधान बचाव समझौते का फायदा उठा रही कंपनियों को टैक्स रेसीडेंसी सर्टिफिकेट (टीआरसी) जारी करने के नियमों में भी एफएससी ने बदलाव किए हैं। क्लेरेट ने धोखाधड़ी में लिप्त कंपनियों को संदेश दिया कि यदि आप काले धन का निवेश भारत में कर रहे हैं तो लाइसेंस छिनना तय है। भारत में निवेश करने जा रहे हर व्यक्ति को यह बात साफ समझ आ जानी चाहिए।
पढ़ें : चुनाव में कालेधन पर रोक के लिए आयोग ने दिए 10 सूत्र दोनों देशों के टैक्स समझौता का गलत इस्तेमाल रोकने के लिए ये कदम उठाए गए हैं। मॉरीशस बैंकर्स एसोसिएशन (एमबीए) की सीईओ आयशा सी टिमॉल ने कहा कि टीआरसी जारी करने के हमारे नियम एकदम साफ और पारदर्शी हैं। हमने भारत को आश्वासन दिया है कि टैक्स संधि का गलत इस्तेमाल नहीं होने दिया जाएगा। यहां से जो भी निवेश होगा, उसमें काले धन का इस्तेमाल नहीं होने दिया जाएगा।
पढ़ें : काले धन की जांच के लिए सरकार ने क्यों नहीं बनाई एसआइटी भारत को नहीं है जानकारीदेश में और बाहर कितना काला धन है। इस बारे में अभी तक वित्त मंत्रालय को सही जानकारी नहीं है। मंत्रालय ने काले धन की जांच के लिए 2011 में एक समिति बनाई थी। समिति को इसके लिए 18 महीने का समय दिया गया था। यह पिछले साल 21 अगस्त को ही पूरा हो गया। इसके बाद भी एक साल से ज्यादा समय गुजर चुका है, लेकिन जांच पूरी नहीं हो सकी। आरटीआइ से पूछे गए सवाल के जवाब में मंत्रलय ने बताया कि देश के तीन सबसे बड़े वित्तीय संस्थान- दिल्ली का नेशनल इंस्टीट्यट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआइपीएफपी), नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकनॉमिक्स रिसर्च (एनसीएईआर) और फरीदाबाद स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फाइनेंशियल मैनेजमेंट (एनआइएफएम) को देश के अंदर व बाहर काले धन की जांच का जिम्मा सौंपा गया था। इन संस्थानों ने अभी तक जांच रिपोर्ट नहीं सौंपी है। इससे ज्यादा जानकारी अभी नहीं दी जा सकती। जानकारी देने से बचने के लिए मंत्रलय ने आरटीआइ एक्ट, 2005 की धारा 81 (सी) और 81 (ई) का सहारा लिया है। 81 (सी) संसद के विशेषाधिकारों और 81 (ई) जनता के हितों से संबंधित है। आरटीआइ के जवाब में मंत्रलय ने बताया कि मनी लॉन्डिंग और इसके राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रभाव भी जांच के दौरान पता लगाए जाएंगे। मीडिया और जनता में काले धन को लेकर तमाम अटकलें हैं, मगर मंत्रलय के पास काले धन का अभी तक कोई विश्वसनीय आंकड़ा नहीं है। काले धन के बारे में लगाए गए अनुमानों के मुताबिक यह राशि 500 से 1,400 अरब डॉलर के बीच है।