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इलेक्ट्रॉनिक्स के साथ फार्मा निर्यात में भी दिख रही संभावनाएं, कुल निर्यात में गिरावट के बावजूद 10 प्रतिशत रही वृद्धि

हालांकि वैश्विक स्तर पर फार्मा का निर्यात बाजार 1.7 लाख करोड़ डॉलर का है और इस लिहाज से भारत की हिस्सेदारी मामूली है। लेकिन बढ़ोतरी दर को देखते हुए वर्ष 2030 तक फार्मा निर्यात 50 अरब डॉलर के स्तर को छू लेगा। फार्मा के साथ मेडिकल डि‍वाइस के निर्यात में भी पिछले दो-तीन सालों से 12-15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो रही है।

By Jagran News Edited By: Praveen Prasad Singh Updated: Thu, 23 May 2024 11:45 PM (IST)
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यूरोप में बनने वाली दवा भारत की तुलना में 25-30 प्रतिशत अधिक महंगी होती है।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। इलेक्ट्रॉनिक्स के बाद फार्मास्युटिकल्स सेक्टर का निर्यात प्रदर्शन लगातार बेहतर हो रहा है। वित्त वर्ष 2023-24 में भारतीय दवाओं का निर्यात 27.9 अरब डॉलर का रहा जो पूर्व के वित्त वर्ष से 9.67 प्रतिशत अधिक है जबकि वस्तु के कुल निर्यात में तीन प्रतिशत की गिरावट रही। वित्त वर्ष 2022-23 में भी फार्मा निर्यात में दहाई अंक में बढ़ोतरी दर्ज की गई थी।

सबसे बड़ी बात है कि अमेरिका, ब्रिटेन व नीदरलैंड जैसे विकसित देश सबसे अधिक भारतीय दवा को खरीद रहे हैं। वित्त वर्ष 2023-24 में अकेले अमेरिका ने भारत से 7.83 अरब डॉलर की दवा का आयात किया। भारत मुख्य रूप से जेनेरिक दवाइयों का निर्यात करता है। वित्त वर्ष 2023-24 में इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात में 23 प्रतिशत की बढ़ोतरी रही।

बढ़ती जा रही भारतीय दवा की गुणवत्ता

इंडियन ड्रग मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन (इडमा) के कार्यकारी निदेशक अशोक मदान के मुताबिक अब भारतीय दवा की गुणवत्ता बढ़ती जा रही है और कोरोना काल में भारत ने 200 से अधिक देशों को वैक्सीन व दवा मुहैया कराने का काम किया जिससे हमारे लिए निर्यात बाजार तैयार हो गया। अब हम सूडान, मिस्त्र, ब्रूनेई, लाताविया, हैती, इथियोपिया जैसे देशों को फार्मा निर्यात कर रहे हैं।

1.7 लाख करोड़ डॉलर का है विश्‍व में फार्मा का निर्यात बाजार

हालांकि वैश्विक स्तर पर फार्मा का निर्यात बाजार 1.7 लाख करोड़ डॉलर का है और इस लिहाज से भारत की हिस्सेदारी मामूली है। लेकिन बढ़ोतरी दर को देखते हुए वर्ष 2030 तक फार्मा निर्यात 50 अरब डॉलर के स्तर को छू लेगा। हिमाचल ड्रग मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के पदाधिकारी सतीश सिंघल के मुताबिक भारत की दवा सस्ती के साथ गुणवत्ता वाली भी है। यूरोप में बनने वाली दवा भारत की तुलना में 25-30 प्रतिशत अधिक महंगी होती है। हालांकि अब भी चीन की तरह हमारे यहां बहुत बड़ी मात्रा में एक साथ उत्पादन की क्षमता स्थापित नहीं हुई है और चीन के फार्मा उत्पाद भारत की तुलना में सस्ते होते हैं।

देश में ही बढ़ रहा फार्मा से जुड़े कच्‍चे माल का उत्‍पादन

वर्ष 2020 में कोरोना महामारी की शुरुआत के बाद फार्मा के कच्चे माल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए सरकार की तरफ से प्रोडक्शन लिंक्‍ड इंसेंटिव (पीएलआई) स्कीम लाई गई और उसका नतीजा यह हुआ कि अब फार्मा से जुड़े कच्चे माल के आयात में अति मामूली बढ़ोतरी हो रही है। 40 से अधिक कंपनियां पीएलआई स्कीम के तहत फार्मा के कच्चे माल का उत्पादन शुरू कर चुकी हैं या जल्द ही करने वाली हैं। ये कंपनियां अफ्रीका के कई देशों में फार्मा के कच्चे माल का निर्यात भी कर रही हैं। दवा सेक्टर के विशेषज्ञों का मानना है कि पीएलआई स्कीम की मदद से कच्चे माल के आयात में गिरावट का दौर शुरू होने में अभी दो-तीन साल और लगेंगे।

मेडिकल डिवाइस निर्यात भी पकड़ रहा तेजी

फार्मा के साथ मेडिकल डि‍वाइस के निर्यात में भी पिछले दो-तीन सालों से 12-15 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो रही है। हालांकि अभी मेडिकल डि‍वाइस का आयात अधिक हो रहा है और पिछले साल यह आयात 60,000 करोड़ रुपये का रहा। एसोसिएशन ऑफ इंडियन मेडिकल डि‍वाइस इंडस्ट्री के संयोजक राजीव नाथ ने बताया कि मेडिकल क्षेत्र से जुड़े डिस्पोजेबल आइटम, आर्थोपेडिक आइटम, सीरिंज, निडल, ग्‍लव्‍स जैसे कई आइटम में दुनिया के बाजार में भारत का बोलबाला है। सरकार ने मेडिकल डि‍वाइस के उत्पादन को बढ़ाने के लिए नीति की घोषणा की है और इस पर अमल के बाद मेडिकल डि‍वाइस का आयात कम होने के साथ निर्यात भी बढ़ेगा।