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यकीन से परे हैं पैसा डूबने की ये कहानियां, राहुल द्रविड़ भी हो चुके हैं शिकार

अगर आप निवेशक हैं तो पिछले कुछ वर्षों में आपको मध्य भारत के एक शहर के काल सेंटरों से काफी फोन आए होंगे। यहां के लोग अपने शहर की ऐसी ख्याति को लेकर काफी संवेदनशील हैं खासतौर पर जब शहर कई वजहों से जाना जाता रहा है।

By Siddharth PriyadarshiEdited By: Updated: Sat, 10 Sep 2022 06:34 PM (IST)
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These stories of money fraud are beyond belief
नई दिल्ली, धीरेंद्र कुमार। कुछ दिनों पहले सेबी ने एक गैर-पंजीकृत निवेश सलाहकार के खिलाफ आर्डर जारी किया। एक व्यक्ति ने उसी शहर की एक कंपनी के खिलाफ शिकायत की थी। शिकायत करने वाले ने यहां की एक रिसर्च और ट्रेडिंग कंपनी को कुछ लाख रुपये निवेश के लिए दिए।

इस पैसे का एक हिस्सा डीमैट अकाउंट में जमा कराया गया और एक हिस्सा सीधे इस तथाकथित कंपनी के पास फीस के तौर पर पहुंच गया। ज्यादातर पैसा गायब हो गया था। काफी जद्दोजहद के बाद निवेशक को कुछ पैसा वापस मिल भी गया। यहां तक तो ये एक आम सी कहानी है। पर सेबी से शिकायत के बाद आर्डर का पास होना और एक तरह की सजा होने से ये बात उतनी आम नहीं रह गई है।

राहुल द्रविड़ भी हो चुके हैं शिकार

ऐसे ज्यादातर केसों में इन्वेस्टर कुछ नुकसान सहते हैं। आगे कुछ नहीं हो पाता है और बात आई-गई हो जाती है। इस सबमें सबसे दुखद है इंटरनेट मीडिया की भूमिका, जहां ज्यादातर लोग 'मैंने तो कहा था' जैसे जुमले उछालते नजर आते हैं।

ऐसे मामलों में पीड़ित को जिम्मेदार ठहराना ज्यादा उचित नहीं है। इसी तरह का एक और केस याद आता है, जहां इन्वेस्टर एक प्रसिद्ध नाम था। कुछ साल पहले क्रिकेटर राहुल द्रविड़ ने 20 करोड़ रुपये किसी कमोडिटी ट्रेडिंग ब्रोकर को दिए। हालांकि, इस कहानी का अंत सुखद हुआ। द्रविड़ ने केवल चार करोड़ रुपये गंवाए। मगर हां, इस घटना की वजह से ट्विटर पर द्रविड़ ने बिन-मांगी सलाहों का बड़ा सैलाब झेला। ज्यादातर कमोडिटी ट्रेडर और दूसरे ब्रोकर राहुल द्रविड़ को लगातार सलाह दे रहे थे कि अगर वो सच में बहुत सारा पैसा बनाना चाहते हैं तो उनके पास आएं।

फ्राड की जिम्मेदारी किस पर

अफसोस कि हर तरह के मीडिया में चर्चाएं और उनका लहजा पीड़ित को ही शर्मिंदा करने का था। कई लेखों में कहा गया कि कितना अच्छा होता अगर द्रविड़ ने इसमें निवेश किया होता या उसमें निवेश किया होता। जैसा हर सेलेब्रिटी के हर केस में होता ही है, ज्यादातर लोगों के लिए ये एक मजेदार तमाशा हो गया था। बात चाहे इस केस की हो या राहुल द्रविड़ की या उन लाखों लोगों की जो तमाम वित्तीय योजनाओं के शिकार हुए हैं। फ्राड की जिम्मेदारी इसके शिकार लोगों पर नहीं डाली जा सकती।

प्रत्येक फ्राड से ये निष्कर्ष निकालना सबसे आसान होता है कि पीडि़त को ज्यादा रिटर्न का लालच नहीं करना चाहिए था। अगर किसी भी वित्तीय अपराध को आप एक अलग घटना के तौर पर देखेंगे, तो ये रवैया स्वाभाविक लग सकता है। हालांकि, अगर जरा ठहरकर, सोच-समझ कर सारे मसले को एक साथ देखें, तो साफ हो जाएगा कि बजाए निवेशक की बांह मरोड़ने और इन्वेस्टर एजुकेशन की बात करने के, इस सबका कुछ और ही हल होना चाहिए।

नौसिखिए ज्यादातर होते हैं शिकार

ये समझना महत्वपूर्ण है कि पीड़ित व्यक्ति संपन्न और पढ़े-लिखे हों, तब भी किसी फ्राड का पता लगाने की काबिलियत नहीं रखते। फ्राड करने वाले अनुभवी होते हैं और अपने कारनामों को अंजाम देने में पारंगत भी। हो सकता है कि फ्राड करने वालों के हाथों से कुछ शिकार बच जाएं, पर इससे भी ये लोग अनुभव लेते हैं और अपने दूसरे संभावित शिकारों की तलाश में और शातिर तरीके आजमाते हैं। मगर उनके शिकार फ्राड की पहचानने करने में नौसिखिए ही होते हैं।

इसका मतलब हुआ कि इस गैरबराबरी की लड़ाई में फ्राड रोकने की जिम्मेदारी रेग्युलेटर पर है। जहां तक हम आम लोगों का सवाल है, हमारे लिए हमेशा यही सीख होती है कि हम ज्यादा शक करें और ज्यादा सावधानी बरतें। और अगर कुछ इतना अच्छा हो कि यकीन से परे लगे, तो जान लें कि ये सच नहीं है।

लेखक : वैल्यू रिसर्च आनलाइन डाट काम के सीईओ हैं। ये उनके निजी विचार हैं।