Tupperware Bankruptcy: कभी किचन में था टपरवेयर के प्रोडक्ट्स का राज, अब दिवालिया होने की कगार पर
केमिस्ट अर्ल टपर ने साल 1946 में टपरवेयर ब्रांड्स (Tupperware Brands Corp) की नींव रखी। इसकी लोकप्रियता 1950 के दशक में बढ़ी जब महिलाओं ने फूड स्टोरेज कंटेनरों को बेचने के लिए अपने घरों में टपरवेयर पार्टियों की शुरुआत की। इस 78 साल पुराने ब्रांड की लोकप्रियता इतनी है कि अमेरिका में लोग किसी भी पुराने फूड कंटेनर के लिए इसी नाम का इस्तेमाल करते हैं।
बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। घर और किचन में इस्तेमाल होने वाले टिफिन और पानी की बोतल जैसे कंटेनर बनाने वाली अमेरिकी कंपनी टपरवेयर ब्रांड्स (Tupperware Brands) दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गई है। इसने दिवालिया अर्जी भी दाखिल कर दी है। इस खबर से टपरवेयर ब्रांड्स के शेयरों में करीब 60 फीसदी गिरावट आई थी। मंगलवार को इसके शेयर 0.51 सेंट के भाव पर बंद हुए, जो शुक्रवार को 1.2 डॉलर पर थे। टपरवेयर ब्रांड्स का कहना है कि उसकी बिक्री लगातार घट रही है, जिसके चलते उसके लिए कारोबार चलाना मुमकिन नहीं रह गया।
1950 के दशक में बढ़ी लोकप्रियता
टपरवेयर ब्रांड्स की शुरुआत 1946 में हुई। फाउंडर थे केमिस्ट अर्ल टपर। दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1950 के दशक में टपरवेयर ब्रांड्स की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी। सेल्सवुमेन ब्राउनी वाइज की पहल पर बहुत-सी महिलाएं फूड स्टोरेज कंटेनरों को बेचने के लिए अपने घरों में 'टपरवेयर पार्टीज' का आयोजन तक करने लगी थीं। इन पार्टियों को सशक्तीकरण और आजादी का प्रतीक तक समझा जाने लगा।
टपरवेयर काफी अच्छा इनोवेशन था, क्योंकि इसमें भोजन को अधिक समय तक ताजा रखने के लिए नए प्लास्टिक का इस्तेमाल किया गया था। यह बहुत से परिवारों के लिए खाना ताजा रखने का शानदार विकल्प था, जब रेफ्रिजरेटर ज्यादातर लोगों के लिए बहुत महंगे थे। इस 78 साल पुराने ब्रांड की लोकप्रियता इतनी है कि लोग किसी भी पुराने फूड कंटेनर के लिए इसी नाम का इस्तेमाल करते हैं। इस प्रोडक्ट भारत समेत करीब देशों में बिकते हैं।
पिछले कुछ साल से शुरू हुआ बुरा दौर
पिछले कुछ साल से टपवेयर लगातार घटती बिक्री से जूझ रही थी। कोरोना के दौरान इसकी बिक्री जरूर बढ़ी, जब लोग घरों से बाहर नहीं निकाल रहे थे। उस वक्त कुकिंग अधिक हो रही थी और खाना भी ज्यादा बच रहा था। टपरवेयर ने अपने प्रोडक्ट को नया रूप देकर युवाओं के बीच दोबारा पैठ बनाने की भी कोशिश की, लेकिन वह प्रतिस्पर्धियों से अलग दिखने में नाकाम रही। उस पर कर्ज लगातार बढ़ता गया और वह घटती आमदनी के चलते उसे चुकाने में असफल रही।Tupperware पर 70 करोड़ डॉलर का कर्ज
टपरवेयर ब्रांड्स ने पिछले साल ही आगाह कर दिया था कि अगर वह फंड जुटाने में नाकाम रही, तो दिवालिया (why Tupperware got Bankrupt) हो सकती है। कच्चे माल की बढ़ती लागत, उच्च मजदूरी और परिवहन लागत ने भी टपरवेयर के प्रॉफिट मार्जिन को प्रभावित किया है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, टपरवेयर और उसके लेनदारों के बीच बातचीत शुरू हो गई है कि 70 करोड़ डॉलर (5870.53 करोड़ रुपये) से अधिक के कर्ज को कैसे मैनेज किया जाए।
यह भी पढ़ें : Fed Rate Cut: अमेरिका में कब होगा ब्याज दरों में कटौती का एलान, कैसे रिएक्ट करेगा स्टॉक मार्केट?