खाद की बढ़ी हुईं कीमतें पूरे साल रहेंगी लागू, सरकार ने लिया बड़ा फैसला
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने घोषणा की कि बढ़ी हुई कीमतें इस साल 20 मई की अधिसूचना के माध्यम से 1 अक्टूबर से 31 मार्च 2022 तक लागू होंगी।
By Ashish DeepEdited By: Updated: Sun, 17 Oct 2021 07:20 AM (IST)
नई दिल्ली, आइएएनएस। फॉस्फेटिक और पोटासिक (पी एंड के) उर्वरकों की बढ़ी हुई कीमतों को पूरे 2021-22 वित्तीय वर्ष में लागू कर दिया गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने घोषणा की कि बढ़ी हुई कीमतें, इस साल 20 मई की अधिसूचना के माध्यम से, 1 अक्टूबर से 31 मार्च, 2022 तक लागू होंगी।
रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में कहा गया है, केंद्र सरकार ने डायमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) की बढ़ी हुई अंतर्राष्ट्रीय कीमतों को समाहित कर लिया है। मंत्रालय के अनुसार, केंद्र सरकार ने एक विशेष एकमुश्त पैकेज के रूप में प्रति बैग डीएपी की सब्सिडी को 438 रुपये बढ़ाने का निर्णय लिया है, ताकि किसानों को उसी कीमत पर डीएपी मिल सके।
केंद्र सरकार ने एक विशेष एकमुश्त पैकेज के रूप में सब्सिडी को 100 रुपये प्रति बैग बढ़ाकर सबसे अधिक खपत वाले तीन एनपीके ग्रेडों (10:26:26, 20:20:0:13 और 12:32:16) के उत्पादन के लिए कच्चे माल की बढ़ी हुई अंतर्राष्ट्रीय कीमतों को समाहित कर लिया है, ताकि किसानों को इन एनपीके ग्रेड वाले ये उर्वरक सस्ती कीमत पर मिल सकें।
सरकार ने चीनी मिलों द्वारा एक सह-उत्पाद के रूप में शीरा से प्राप्त पोटाश (पीडीएम) के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए पोषक तत्व आधारित सब्सिडी (एनबीएस) योजना में पहली बार शामिल किया है, जो 2010 में शुरू की गई थी। इस उर्वरक को पीडीएम-0:0:14.5:0 के नाम से जाना जाता है। इस कदम से 42 एलएमटी से अधिक खनिज आधारित पोटाश यानी एमओपी के 100 प्रतिशत आयात पर भारत की निर्भरता कम होने की उम्मीद है, जिसकी लागत लगभग 7,160 करोड़ रुपये सालाना है।
इस निर्णय से न केवल गन्ना उत्पादकों और चीनी मिलों की आय में सुधार होगा, बल्कि उर्वरक कंपनियों द्वारा किसानों को 600-800 रुपये की दर से बेचे जा रहे 50 किलोग्राम के एक बैग या कट्टे पर 73 रुपये की सब्सिडी भी उपलब्ध हो सकेगी। उम्मीद है कि केंद्र सरकार पीडीएम पर सब्सिडी के रूप में सालाना 156 करोड़ रुपये (लगभग) खर्च करेगी और 562 करोड़ रुपये मूल्य की विदेशी मुद्रा की बचत करेगी।