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घरेलू कंपनियों पर सरकार के भरोसे से बढ़ेगा देश में निवेश: अनिल अग्रवाल

वेदांता समूह से चेयरमैन अनिल अग्रवाल का कहना है कि वे लाखों रोजगार के अवसर विदेश में पैदा कर रहे हैं

By Surbhi JainEdited By: Updated: Mon, 06 Nov 2017 10:01 AM (IST)
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घरेलू कंपनियों पर सरकार के भरोसे से बढ़ेगा देश में निवेश: अनिल अग्रवाल

नई दिल्ली (नितिन प्रधान)। यह साक्षात्कार वेदांता समूह के चेयरमैन अनिल अग्रवाल का दैनिक जागरण के राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख नितिन प्रधान से अर्थव्यवस्था और अपनी परियोजनाओं पर विस्तार से हुई बातचीत पर आधारित है।

घोषणा के एक साल बाद भी झारखंड में आपकी परियोजनाओं पर काम शुरू नहीं हो पाया है। क्या वजह है?
देखिए, सबसे पहले तो मैं झारखंड सरकार और मुख्यमंत्री रघुबर दास को बधाई देना चाहता हूं, क्योंकि वे हमारी परियोजनाओं को लेकर काफी सहयोग कर रहे हैं। जहां तक आपके सवाल का जवाब है उसमें दो बाते हैं। पहला तो काम करने की हमारी भावना क्या है, हमें इस पर गौर करना चाहिए। अमेरिका का उदाहरण लें तो वहां सब कुछ अमेरिका फस्र्ट की भावना से होता है। इसी भाव से हमें भी काम करना होगा। हमारे पास इतने अधिक प्राकृतिक संसाधन हैं। लेकिन हम उसका इस्तेमाल ही नहीं कर पा रहे हैं। मेरा तो मानना है कि जमीन के ऊपर के संसाधन हैं वे केवल दो वक्त की रोटी और कपड़ा ही उपलब्ध करा सकते हैं। लेकिन अगर गरीबी दूर करनी है तो धरती माता ने अपने अंदर जो संसाधन दिए हैं, उनका इस्तेमाल करना होगा। तभी सब कुछ मिलेगा। हिंदुस्तान में 70 अरब बैरल तेल का भंडार है। फिर भी हम अपनी जरूरत का 85 फीसद आयात करते हैं। हमारी वजह से बाहर के देशों में लोगों को रोजगार मिलता है।

फिर ऐसा क्यों नहीं हो पा रहा?
इसकी दो वजहें हैं। पहला तो हिंदुस्तान की सरकारों ने देश के बिजनेसमैन को ट्रस्ट नहीं किया। जबकि जब भी देश की इंडस्ट्री और व्यापारिक घरानों को कुछ करने का मौका मिला तो उन्होंने वह सब कुछ करके दिखाया है। देश में आधुनिक एयरपोर्ट निर्माण की बात हो या टेलीकॉम सेवाओं का मामला। हमने दुनिया की कंपनियों से आगे बढ़कर काम किया है। घरेलू कंपनियों ने इस मामले में हमेशा डिलीवर किया है। इसलिए सबसे पहले तो घरेलू उद्योग क्षेत्र पर सरकार को भरोसा करना होगा उन्हें सपोर्ट करना होगा।

दूसरी बात जो आपने पूछी उसके जवाब में मैं यह कहूंगा कि कहीं न कहीं निजी हित और स्वार्थ इसके आड़े आ रहे हैं। जब सवाल घरेलू संसाधनों के समुचित दोहन का हो तो उसमें पर्यावरण हमेशा बड़ा मुद्दा बनता है। एनजीओ विरोध करते हैं। काम आगे ही नहीं बढ़ पाता। सरकार को पर्यावरण के बचाव के लिए कड़े से कड़े नियम बनाने चाहिए। पेड़ काटने से लेकर पानी को प्रदूषित करने से रोकने तक के लिए कठोर नियम होने चाहिए। उनका पालन सुनिश्चित होना चाहिए। लेकिन अगर कोई यह कहे कि जमीन के नीचे से संसाधन नहीं निकाल सकते तो मैं समझता हूं कि वह देश हित में काम नहीं कर रहा।

क्या पर्यावरण की बात करना गलत है?
नहीं, मैं यह नहीं कह रहा हूं। मैं खुद मानता हूं कि हमारी हवा, पानी समूचा पर्यावरण स्वच्छ होना चाहिए। हमें ही इसका ध्यान रखना है। लेकिन निजी हितों को लेकर नहीं। इसका खामियाजा बहुत बड़ा होता है। हमारा देश प्राकृतिक संसाधनों से इतना समृद्ध है। इसके बावजूद हमें उन संसाधनों का आयात करना पड़ रहा है। देश में रेल ट्रैक बदलने का काम चल रहा है। अरबों डॉलर के स्टील ट्रैक का आयात हो रहा है। जबकि हमारे पास आयरन ओर प्रचुर मात्र में उपलब्ध है और बड़े स्टील प्लांट भी। इसके बावजूद हम लाखों रोजगार के अवसर विदेश में पैदा कर रहे हैं। जो लोग पर्यावरण की सही बात करते हैं तो हमें सुनना चाहिए। लेकिन जो लोग कहते हैं हमें माइनिंग ही नहीं करनी है। धरती के नीचे छिपा धन नहीं निकालना है तो मेरा मानना है कि वे देश हित में बात नहीं करते, बल्कि उनके अपने स्वार्थ कहीं बाहर छिपे हैं।

देश की मौजूदा अर्थव्यवस्था के बारे में आपकी क्या राय है?
देखिए, सरकार ने पिछले दिनों जो कदम उठाए, स्वागत योग्य हैं। इससे ज्यादा से ज्यादा लोग टैक्स के नेट में आएंगे। मैं भी जब युवाओं से मिलता हूं तो यही कहता हूं कि आप नौकरी मत खोजो, बल्कि नौकरियां देने वाले बनो।

लेकिन यह कैसे होगा?
बिल्कुल होगा। हमारे यहां इतने खनिज हैं। और सब जानते हैं कि खनिज अपने आप में कुछ नहीं हैं। उन्हें किसी उत्पाद की शक्ल देने के लिए उनकी प्रोसेसिंग आवश्यक है। वे प्रोजेक्ट लगाएं और बाकी लोगों को नौकरियां दें। इसके लिए हम भी मदद करने को तैयार हैं। हमने सौ करोड़ रुपये का एक स्टार्टअप फंड बना रखा है। जिन युवाओं के प्रोजेक्ट हमें ठीक लगेंगे, उनकी मदद करेंगे। बैंक लोन लेने के लिए आपके पास 30 फीसद इक्विटी अपनी होनी चाहिए, इसलिए वह तीस फीसद वेदांता उपलब्ध कराएगी। प्रोजेक्ट सफल होगा तो उनकी कुछ इक्विटी वापस कर देंगे। फिलहाल ऐसा हम माइनिंग क्षेत्र के प्रोजेक्ट के लिए कर रहे हैं। लेकिन बाकी अच्छी परियोजनाओं को भी बढ़ावा दिया जाएगा।

सरकार को इस संबंध में क्या करना चाहिए?
मैं तो यही कहूंगा कि सरकार को अपना सिस्टम आसान करना चाहिए। प्रोजेक्ट लगाने के लिए जिन मंजूरियों की आवश्यकता होती है, वे उद्योगों को तुरंत मिलनी चाहिए। हम भी यही चाहते हैं कि झारखंड का अपना प्रोजेक्ट दो-ढाई साल में शुरू कर दें ताकि लोगों को रोजगार मिल सके। मैंने मुख्यमंत्री से वादा किया है कि आप जल्दी क्लियरेंस देते हैं तो हम भी इसे फास्ट ट्रैक मोड में पूरा करेंगे, क्योंकि न तो हमें बैंकों से पैसा लेना है और न स्टॉक मार्केट से।

लेकिन घरेलू उद्योग तो निवेश ही नहीं कर रहे?
इसकी वजह बहुत स्पष्ट है। घरेलू उद्योग जगत का मनोबल गिरा हुआ है। अगर अंदर से इच्छा नहीं होगी तो कैसे काम चलेगा। आपको भरोसा होना चाहिए की सरकार आपको सपोर्ट कर रही है। इस स्थिति को बदलने के लिए सरकार को बिजनेसमैन को सहायता देनी होगी। उन्हें लांग रोप यानी ढील देनी होगी। वरना विकास नहीं होगा। मुझे विश्वास है कि हिंदुस्तान की कंपनियां जो कर सकती हैं, बाहर के लोग वह सब नहीं कर सकते। घरेलू कंपनियां ही हैं जो देश में लंबी अवधि का जोखिम उठाकर टिक सकती हैं। लोकतंत्र में उद्यमी का डीएनए बहुत बड़ा होता है। हम खुद चाहते हैं कि तेल कंपनी होने के नाते देश का पचास फीसद कच्चा तेल हम उत्पादन करें।

आपने पिछले दिनों अपनी 75 फीसद संपत्ति दान करने का एलान किया। ऐसा करने के पीछे क्या सोच रही?
और करेंगे भी क्या। गंगा जी से पानी लिया है वहीं पानी देना है। हमारे अपने लिए तो 25 फीसद भी बहुत है। और कितना खर्च करेंगे। अमेरिका के सारे बड़े लोगों ने अपनी ज्यादा से ज्यादा संपत्ति दान कर दी है। इस दान के पीछे मेरा एक मकसद है। मैं चाहता हूं कि मेरी यह संपत्ति देश के 50 करोड़ बच्चों के काम आए। बच्चों में कुपोषण की समस्या है। शिक्षा का अभाव है। इसके लिए हमने एक नंदघर की परिकल्पना की है। देश में डेढ़ लाख नंदघर बनाने की योजना है। यहां सुबह बच्चों को पढ़ाने-लिखाने और खिलाने-पिलाने का इंतजाम रहेगा। दिन में औरतों को शिक्षित करने का काम होगा, ताकि उन्हें स्वरोजगार के लिए प्रेरित किया जा सके। बच्चों का उचित पोषण और महिलाओं को स्वतंत्र बनाने के उद्देश्य से हम काम कर रहे हैं।