E-Commerce निर्यात के लिए विदेश में बनेंगे वेयरहाउस, एग्रीगेटर करेंगे ऑर्डर बुक
विदेश व्यापार महानिदेशक संतोष सारंगी ने कहा आप देखेंगे कि जिन शहरों से निर्यात होता है वहां की जीवनशैली का स्तर बढ़ जाता है। उस शहर का आर्थिक विकास हो जाता है। वहां के मैन्यूफैक्चरर्स अपने उत्पादों की गुणवत्ता पर ध्यान देने लगते हैं इससे उन्हें अच्छी कीमत मिलती है।
By Jagran NewsEdited By: Ashisha Singh RajputUpdated: Wed, 05 Apr 2023 09:16 PM (IST)
नई दिल्ली, राजीव कुमार। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार अर्थव्यवस्था को मजबूती प्रदान करने के लिए ट्रेड, टूरिज्म व टेक्नोलॉजी पर फोकस कर रही है और इसी दिशा में गत 31 मार्च को विदेश व्यापार नीति (एफटीपी) की घोषणा की गई। विदेश व्यापार नीति की अहम घोषणाओं पर विदेश व्यापार महानिदेशक संतोष कुमार सारंगी से दैनिक जागरण के राजीव कुमार की विशेष बातचीत के अंश-
प्रश्न: एफटीपी में ई-कॉमर्स निर्यात को बढ़ाने पर फोकस किया गया है, क्या है योजना?
उत्तर: मुख्य बात है उत्पाद को उसके ग्राहकों तक कम समय में पहुंचाना। इस काम के लिए विदेश में वेयरहाउस बनाने की नीति लाई जाएगी। अभी किसी देश में माल पहुंचाने में 10-15 या उससे भी अधिक दिनों का समय लग सकता है। वेयरहाउस बनने से ई-कॉमर्स कंपनियों का माल विदेश में पहले से उपलब्ध होगा और उस देश से ऑर्डर मिलने पर वेयरहाउस से ही माल की सप्लाई हो जाएगी। एक निश्चित समय तक माल नहीं बिकने पर माल की वापसी की भी सुविधा होगी। विदेश में स्थित वेयरहाउस से माल वापस आने पर उसे सीमा शुल्क से मुक्त रखा जाएगा। ऑर्डर बुकिंग का काम ई-कॉमर्स एग्रीगेटर करेंगे। वेयरहाउस बनाने का काम भी निजी कंपनियां करेंगी। सरकार सिर्फ नीति बनाएगी और निर्यात को आसान बनाने में मदद का काम करेगी।
प्रश्न: कब तक सारी नीति बन जाएगी?
उत्तर: कस्टम विभाग व अन्य संबंधित विभागों की अंतर-मंत्रालयी कमेटी इन तमाम चीजों पर नीति बनाएगी। चालू वित्त वर्ष 2023-24 में ही पूरी नीति आ जाएगी। मुख्य रूप से जेम्स-ज्वैलरी, फार्मा, फैबरिक, टेक्निकल टेक्सटाइल जैसे आइटम का निर्यात ई-कॉमर्स के माध्यम से किया जाता है। इसलिए जहां इस प्रकार के आइटम बनाए जाते हैं, वहीं पर ई-कॉमर्स जोन भी बनाए जा सकते हैं। ई-कॉमर्स निर्यात से जुड़ने वाली कंपनियों को अपना पंजीयन भी कराना होगा।प्रश्न: एफटीपी में सभी जिलों में डिस्टि्रक्ट एक्सपोर्ट हब बनाने की घोषणा के पीछे क्या उद्देश्य है?
उत्तर: आप देखेंगे कि जिन शहरों से निर्यात होता है, वहां की जीवनशैली का स्तर बढ़ जाता है। उस शहर का आर्थिक विकास हो जाता है। वहां के मैन्यूफैक्चरर्स अपने उत्पादों की गुणवत्ता पर ध्यान देने लगते हैं इससे उन्हें अच्छी कीमत मिलती है। उदाहरण के लिए नासिक के एरिया को देख सकते हैं जहां के अंगूर किसानों को अच्छी कीमत मिल रही है। निर्यात से जुड़ने से शहर में इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास होता है और रोजगार में भी बढ़ोतरी होती है।
प्रश्न: तो क्या केंद्र सरकार डिस्टि्रक्ट एक्सपोर्ट हब के लिए फंड भी मुहैया कराएगी?
उत्तर: चालू वित्त वर्ष में हम डिस्टि्रक्ट एक्सपोर्ट हब की शुरुआत करने जा रहे हैं और तभी पता चलेगा कि किन-किन चीजों की जरूरत है और उसके हिसाब से फंड तय किए जाएंगे। राज्यों के सहयोग से यह काम होगा। सभी शहरों के लिए रिजनल अथॉरिटी के साथ मिलकर प्रोडक्ट का चयन किया जाएगा। चालू वित्त वर्ष में 70-75 डिस्टि्रक्ट में एक्सपोर्ट हब बनेंगे। सभी राज्यों के जिलों को शामिल करने की कोशिश होगी।प्रश्न: लेकिन वन डिस्टि्रक्ट वन प्रोडक्ट प्रोग्राम (ओडीओपी) के तहत प्रोडक्ट का चयन तो हो चुका है, फिर प्रोडक्ट का चयन क्यों?
उत्तर: देखिए, ओडीओपी में कई ऐसे उत्पादों का भी चयन किया गया है जिनमें निर्यात की संभावना नहीं है। फिर कई ऐसे जिले भी है जहां सर्विस एक्सपोर्ट की क्षमता अधिक है। उदाहरण के लिए पश्चिम बंगाल के जिले से रसगुल्ला का चयन ओडीओपी के तहत किया गया है, लेकिन अमेरिकन रसगुल्ला नहीं खाते हैं तो ऐसे में उस शहर से दूसरे उत्पाद का चयन करना होगा। वैसे ही, केरल के तटीय शहरों से टूरिज्म निर्यात को प्रोत्साहित किया जा सकता है। एक जिला से निर्यात के लिए दो-तीन उत्पादों का चयन किया जा सकता है।