भारतीय मसाले, आम और चावल की क्वालिटी पर क्यों उठ रहे सवाल, दूसरे देशों का मुंह कैसे बंद करेगा भारत?
पिछले कुछ साल से भारतीय सामानों का निर्यात दुनियाभर में बढ़ा रहा है। लेकिन इसी के साथ खराब गुणवत्ता के चलते भारतीय उत्पादों के रिजेक्ट होने का सिलसिला भी तेज हुआ है। सिंगापुर और यूरोप के कुछ देशों ने भारतीय मसालों की गुणवत्ता पर सवाल उठाए थे। मसाले से पहले चावल आम जैसे खाद्य पदार्थ गुणवत्ता में कमी की वजह से खारिज किए जा चुके हैं।
राजीव कुमार, नई दिल्ली। इस साल मार्च-अप्रैल में भारतीय मसाले की गुणवत्ता पर सिंगापुर समेत यूरोप के कुछ देशों ने सवाल उठाए थे। इसका नतीजा यह हुआ कि अप्रैल जून 2024 तिमाही में मसाला निर्यात में पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में 1.48 प्रतिशत की गिरावट आ गई। जबकि पिछले तीन सालों से मसाला निर्यात में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। मसाले से पहले चावल, आम जैसे खाद्य पदार्थ के अलावा बेबी क्लोथिंग, परफ्यूम स्प्रे, साल्ट लैंप जैसे उत्पाद यूरोप और अन्य देशों में गुणवत्ता में कमी की वजह से खारिज किए जा चुके हैं।
हालांकि, उससे भी बड़ी बात यह है कि कई सामान तो घरेलू उपभोक्ता ही खारिज कर रहे हैं। क्लोदिंग से लेकर फुटवियर तक ऐसे कई सामान हैं, जो अंतरराष्ट्रीय मानक तक पहुंच ही नहीं पा रहे हैं। ऐसे में वह विश्व बाजार तक कैसे अपनी धमक बना पाएगा, यह बड़ा सवाल है। अब वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय भारतीय माल को गुणवत्ता में कमी की वजह से रिजेक्ट होने से बचाने के लिए एक पोर्टल लांच करने जा रहा है, जहां सभी देशों के गुणवत्ता मानक की जानकारी होगी।
पोर्टल से निर्यातक जान पाएंगे कि निर्यात करने के लिए उनकी कैसी गुणवत्ता होनी चाहिए। यही वजह है कि वाणिज्य विभाग की तरफ से खाने-पीने की वस्तुओं को तैयार करने या उसे बाहर भेजने के दौरान किन-किन चीजों का ख्याल रखना है, इस बारे में विस्तृत गाइडलाइंस तैयार की जा रही हैं। भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) के साथ वाणिज्य विभाग की बैठकें की जा रही हैं।
ऐसी व्यवस्था भी की जा रही है कि विदेशी खरीदार भारत में फल की खेती तक को देख सकेंगे। हालांकि, इस बात पर भी सवाल उठाया जा रहा है कि सिर्फ विदेश ही क्यों, घरेलू स्तर पर मसाले समेत अन्य खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता की गारंटी क्यों नहीं सुनिश्चित की जा रही है।
गुणवत्ता नियम लागू करने से बढ़ जाती है उत्पाद की कीमत
भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) ने उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) की सलाह पर गुणवत्ता नियंत्रण नियम लागू करने का फरमान जारी किया है। खिलौना, हवाई चप्पल व अन्य फुटवियर, कूलर, इलेक्ट्रिक वाटर हीटर, वाटर मीटर, प्लास्टिक की बोतल जैसे कई उत्पादों पर गुणवत्ता नियम लागू हो गए हैं या फिर होने वाले हैं। हालांकि, यह घरेलू स्तर पर कितना प्रभावी है, इसकी परख बाकी है।
दरअसल, फुटवियर कंपनियों का मानना है कि गुणवत्ता नियम लागू करने से उसकी कीमत बढ़ जाती है और उसका कारण यह है कि यहां फुटवियर निर्माण से जुड़ा पूरा क्लस्टर तैयार नहीं है। यही बात कई अन्य उद्योगों की ओर से भी कही जा रही है। खाद्य वस्तुओं को लेकर तो घरेलू स्तर पर कोई मापदंड ही नहीं है। इसका एक रोचक पहलू तब दिखा था जब तत्कालीन उपभोक्ता मामलों के मंत्री रामविलास पासवान ने अपने घर आए सेब की गुणवत्ता पर सवाल खड़ा किया था। लेकिन उसका कोई हल निकल पाया या नहीं, यह सार्वजनिक नहीं है।