US Fed Rate Cut फेड रिजर्व ने चार साल में पहली बार ब्याज दरों में कटौती की है। अमेरिका में आर्थिक आंकड़े काफी समय से सुस्त थे। रोजगार के मोर्चे पर भी स्थिति खराब थी। कुल मिलाकर मंदी आने के सभी संकेत सामने थे। इससे फेड रिजर्व को ब्याज दरों में बड़ी कटौती करनी पड़ी। आइए जानते हैं कि क्या ब्याज दरों में कटौती से मंदी का खतरा टल गया?
बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। दुनियाभर को जैसी उम्मीद थी, बुधवार करीब आधी रात को वही हुआ। अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में 50 बेसिस प्वाइंट या फिर कहें कि 0.50 फीसदी (US Federal Rate Cut) की कटौती की। यह पिछले साल यानी कोरोना महामारी के बाद पहली दफा है, जब अमेरिका के केंद्रीय बैंक ने ब्याज दरों में कमी की है। इसका मकसद मंदी की आशंका से जूझ रही अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना है।
बेशक फेड रिजर्व की कटौती काफी बड़ी है, लेकिन इसका अमेरिकी शेयर बाजार ने कोई खास इस्तकबाल नहीं किया। वहां के तीनों प्रमुख इंडेक्स- Dow Jones, Nasdaq Composite और S&P 500 में रेट कट के बाद थोड़ी तेजी दिखी। लेकिन, आखिर में तीनों गिरावट के साथ बंद हुए। हालांकि, भारत समेत अन्य एशियाई में जरूर उछाल दिखा। लेकिन, भारत में मिड और स्मॉल कैप में भारी गिरावट आई है। कुछ हैवीवेट लार्ज कैप ने मार्केट को थोड़ा सहारा दिया है।
आइए जानते हैं कि ब्याज दरों में भारी कटौती के बावजूद अमेरिकी निवेशकों का भरोसा बहाल क्यों नहीं हुआ? क्या अमेरिका में अभी भी मंदी का खतरा है और अमेरिका में ब्याज दरों में कटौती के भारत के लिए क्या मायने नहीं है?
अमेरिकी निवेशकों में अनिश्चितता क्यों
अमेरिका में आर्थिक आंकड़े काफी समय से सुस्त थे। खासकर, बेरोजगारी के। कई वरिष्ठ अर्थशास्त्री लंबे वक्त से ब्याज दरें घटाने की मांग कर रहे थे। खुद फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने दरों में कटौती के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में माना कि ब्याज दरें घटाने में कुछ देरी हुई। हालांकि, उन्होंने यह भी संकेत दिया कि ब्याज दरों में आने वाले समय में भी कटौती हो सकती है। यह काफी हद तक मुद्रास्फीति और दूसरे आर्थिक आंकड़ों पर निर्भर करेगा।
यही वजह है कि ब्याज दरों में कटौती का अमेरिकी शेयर मार्केट पर फौरन सकारात्मक असर नहीं दिखा। दरअसल, निवेशकों के हिसाब से ब्याज दरों में कटौती की शुरुआत काफी पहले से हो जानी चाहिए थी। इससे अब तक ब्याज दरें 1 फीसदी तक कम हो गई होतीं। यही वजह है कि अमेरिकी शेयर बाजार ने उस तरीके का उत्साह नहीं दिखाया, जैसी उम्मीद थी। यहां तक कि भारत में मिड और स्मॉल कैप ध्वस्त होते दिखे।
क्या मंदी का खतरा का टल गया?
अमेरिका में आर्थिक मंदी का जो खतरा है, उसका अंदाजा हर किसी को था। दरअसल, अमेरिका में कोरोना के बाद मुद्रास्फीति काफी तेजी से बढ़ रही थी। इस पर लगाम लगाने के लिए अमेरिका ने ब्याज दरों में सिलसिलेवार इजाफे का रास्ता अपनाया। उससे जाहिर था कि आखिरकार आर्थिक मंदी आएगी, जिसके चलते नौकरियां जाएंगी। हालांकि, अभी तक अमेरिका में आर्थिक मंदी आई नहीं है। फेडरल रिजर्व ने डैमेज कंट्रोल के तहत ब्याज दरों में कटौती करनी शुरू कर दी और यह सिलसिला अर्थव्यवस्था की सेहत सुधरने तक जारी रहने की उम्मीद है।
अब फेड रिजर्व के सामने चुनौती है कि वह इकोनॉमी की सॉफ्ट लैंडिंग कराए। इसका मतलब है कि आर्थिक और नौकरियों के मोर्चे पर ज्यादा नुकसान हुए बगैर इकोनॉमी को पटरी पर लाना। साथ ही, मुद्रास्फीति से भी तालमेल बिठाना होगा कि उसमें यकायक तेज उछाल न आ जाए। हालांकि, जेरोम पॉवेल ने भरोसा दिलाया कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था मूलरूप से ठीक है। इस साल फेड रिजर्व ब्याज दरों में 50 बेसिस प्वाइंट की और कटौती कर सकता है।
ब्याज दरों में कटौती का असर क्या होगा?
ब्याज दरों में कटौती का अमूमन शेयर मार्केट और गोल्ड पर सबसे पॉजिटिव असर पड़ता है, क्योंकि इन चीजों में रिटर्न ब्याज दरों में कटौती से प्रभावित नहीं होता। वहीं, बैंक डिपॉजिट और बॉन्ड जैसे निवेश का रिटर्न घट सकता है। इससे आम जनता को भी फायदा होता है, क्योंकि होम होम, कार लोन सस्ते हो जाते हैं। अमेरिका में कार लोन फिलहाल 2001 के बाद से अपनी सबसे महंगी दर पर है। अब कंपनियों को भी सस्ती दर पर कर्ज मिलेगा, इससे वे भी रोजगार के मौके बढ़ा सकती हैं।
अमेरिका में कटौती से भारत जैसे देशों में भी ब्याज दर सस्ता करने का रास्ता साफ हो सकता है। हालांकि, अभी आरबीआई का अभी पूरा ध्यान महंगाई कम करने पर है। आरबीआई गवर्नर ने पिछले दिनों संकेत भी दिया था कि भारत की रेट कट की नीति दूसरे देशों के हिसाब से नहीं चलेगी। लेकिन, मान जा रहा है कि अगले साल की शुरुआत तक ब्याज दरों में कटौती कर सकती है।
ब्याज कटौती पर एक्सपर्ट की क्या राय है?
नीतिगत दरों में मौजूदा कटौती को लेकर विशेषज्ञ एकमत नहीं हैं। कुछ का मानना है कि सस्ता लोन से भारत में निवेश प्रवाह को बढ़ावा देगा, जबकि बाकियों का कहना है कि इससे इक्विटी पर रिटर्न में कमी आ सकती है और सोने की कीमतों में वृद्धि हो सकती है। पीएचडीसीसीआई के प्रेसिडेंट संजीव अग्रवाल ने कहा, 'नीतिगत दरों में कटौती से इक्विटी पर रिटर्न में कमी आ सकती है। साथ ही, सोने के भाव में उछाल दिख सकता है।'
वहीं कामा ज्वेलरी के एमडी कालिन शाह का कहना है कि गोल्ड इंडस्ट्री के लिए ब्याज दरों में कटौती सकारात्मक है। इसने सोने के लिए जल्द ही नई ऊंचाइयों को छूने के दरवाजे खोल दिए हैं। इससे सोने में निवेश बढ़ेगा। वहीं, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि दरों में कटौती से उभरते बाजारों में भी ब्याज दरों में कटौती की जमीन तैयार होगी। बिज2क्रेडिट और बिज2एक्स के को-फाउंडर और सीईओ रोहित अरोड़ा ने कहा, 'इससे भारतीय शेयर बाजारों में विदेशी मुद्रा का प्रवाह बढ़ेगा और रुपया मजबूत होगा। इससे भविष्य में आरबीआई को ब्याज दरें कम करने का मौका मिलेगा।'
(पीटीआई से इनपुट के साथ)यह भी पढ़ें : Bajaj Housing Finance में भारी गिरावट, शेयर बेचकर क्यों भाग रहे निवेशक?