Mineral Rights: केंद्र स्पष्ट क्यों नहीं कहता कि खनिजों पर कर लगाने की शक्ति केवल संसद के पास
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अपनी दलीलों में कहा कि खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम (MMDRA) के तहत राज्यों द्वारा खनिजों पर लगाए जाने वाले टैक्स को एक सीमा में बांधा गया है। उससे अधिक राज्य कर लगाते हैं तो ना केवल वह अमान्य होगा बल्कि असंवैधानिक भी होगा। नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ खनन पट्टे पर केंद्र द्वारा एकत्र की गई रॉयल्टी पर विचार कर रही है।
पीटीआई, नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को केंद्र से पूछा कि कानून स्पष्ट शब्दों में यह क्यों नहीं कहता है कि केवल संसद के पास खनिजों पर कर लगाने की शक्ति है और राज्यों को इस तरह की वसूली का अधिकार नहीं है। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ-न्यायाधीशों की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि क्या उनका यह तर्क कि संघ एकरूपता लाने के लिए खनिजों पर टैक्स लगाता है, संविधान में निहित शक्ति के संघीय वितरण पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
पीठ में ये जज रहे मौजूद
पीठ में जस्टिस ऋषिकेश राय, अभय एस ओका, बीवी नागरत्ना, मनोज मिश्रा, उज्ज्वल भुइयां, सतीश चंद्र शर्मा और ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह भी शामिल हैं। मेहता ने अपनी दलीलों में कहा कि खान और खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम (MMDRA) के तहत राज्यों द्वारा खनिजों पर लगाए जाने वाले कर को एक सीमा में बांधा गया है। अगर उससे अधिक राज्य कर लगाते हैं तो ना केवल वह अमान्य होगा बल्कि असंवैधानिक भी होगा। मेहता ने कहा कि इस संबंध में एक मैकेनिज्म है जो कहता है कि कर की राशि इतनी होगी और इससे अधिक नहीं होगी।
इंडिया सीमेंट के फैसले से पहले कुछ राज्यों ने 300 प्रतिशत तो कुछ ने रॉयल्टी पर 500 प्रतिशत कर लगाया। कर में एकरूपता रहे, इसलिए कर की दरें केंद्र तय करता है। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने मेहता से कहा कि इस दलील का संघीय व्यवस्था पर प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि केंद्र द्वारा करों को तय करना एक नीतिगत मामला है। हालांकि बड़ा सवाल यह है कि क्या यह संविधान के तहत शक्ति के संघीय वितरण पर असर डालेगा।
केंद्र सरकार के पास रॉयल्टी तय करने की शक्ति- मेहता
मेहता ने जोर देकर कहा एमएमडीआरए की धारा 9 के तहत केंद्र सरकार के पास रॉयल्टी तय करने की शक्ति है। उन्होंने कहा कि केंद्र द्वारा दरों का निर्धारण एकतरफा नहीं बल्कि राज्यों को शामिल करने वाली एक सहकारी प्रक्रिया है। दरअसल, नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ उस जटिल प्रश्न पर विचार कर रही है कि क्या खनन पट्टे पर केंद्र द्वारा एकत्र की गई रॉयल्टी को कर के रूप में माना जा सकता है, जैसा कि 1989 में सात-न्यायाधीशों की पीठ ने माना था।
छह मार्च को शीर्ष अदालत ने कहा था कि संविधान संसद को खनिज विकास के संबंधों को आधार बनाकर सभी तरह के नियम बनाने का अधिकार नहीं देता है और राज्यों के पास खान और खनिजों को रेगुलेट करने और उन्हें विकसित करने की शक्ति है।
27 फरवरी को शीर्ष अदालत ने इस विवादास्पद मुद्दे पर सुनवाई शुरू की थी कि क्या एमएमडीआर अधिनियम, 1957 के तहत निकाले गए खनिजों पर देय रॉयल्टी कर की प्रकृति में आती है या नहीं। यह मुद्दा 1989 में इंडिया सीमेंट्स लिमिटेड बनाम तमिलनाडु राज्य के मामले में आए फैसले के बाद उठा, जिसमें शीर्ष अदालत की सात न्यायाधीशों की पीठ ने कहा था कि रॉयल्टी एक कर है।
हालांकि शीर्ष अदालत की पांच न्यायाधीशों की पीठ ने 2004 में बंगाल राज्य बनाम केसोराम इंडस्ट्रीज लिमिटेड मामले में फैसला सुनाते हुए कहा था कि 1989 के फैसले में एक टाइपोग्राफिक त्रुटि थी और रॉयल्टी एक कर नहीं है। इसके बाद विवाद को नौ न्यायाधीशों की बड़ी पीठ के पास भेज दिया गया।ये भी पढ़ें- PM Janaushadhi Yojana: जन औषधि केंद्र चलाने वालों के लिए खुशखबरी, आसानी से मिल सकेगा कर्ज