इतना प्रभावशाली शख्स जब भी कुछ करता है, तो उससे दुनियाभर के निवेशकों के मन में सवाली कीड़ा कुलबुलाने लगता है। उन्हें लगता है कि बफे ऐसा क्यों कर रहे हैं और उनके पोर्टफोलियो उसका क्या असर होता है। जैसा कि बफे के नकदी का भंडार बढ़ाने के मामले में हुआ। इससे दुनियाभर के छोटे-बड़े निवेशकों के बीच हलचल मच गई।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सच में बफे कुछ ऐसा जानते हैं, जो बाकी दुनिया को नहीं पता। या फिर उनका नकदी का भंडार एक सामान्य प्रक्रिया है। आइए इसका जवाब जानने की कोशिश करते हैं।
नकदी का भंडार क्यों बढ़ा रहे बफे
वॉरेन बफे की कंपनी बर्कशायर हैथवे इंक (Berkshire Hathaway Inc) ने आईफोन बनाने वाली एपल (Apple) में अपनी होल्डिंग करीब 50 फीसदी तक कम कर ली। उन्होंने पिछली तिमाही में कई कंपनियों में हिस्सेदारी घटाने और अपना कैश भंडार बढ़ाने पर फोकस किया। इस भारी बिकवाली की बदौलत बफे के पास मौजूद कैश भंडार 276.9 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है।
इसके बाद अमेरिका में रोजगार के निराशाजनक आंकड़े आए और मंदी की आशंका जताई जाने लगी। इससे निवेशकों को लगा कि बफे ने मंदी की आशंका को भांप लिया था। इसलिए उन्होंने प्रॉफिट बुक किया और अपना कैश भंडार बढ़ा लिया। उनका प्लान होगा कि जब मार्केट गिरेगा, तो उन्हें सस्ते में शेयर मिलेंगे और वे दोबारा निवेश करके अच्छा मुनाफा कमा सकेंगे।
बफे का कैश भंडार बढ़ाना अपशगुन?
दुनियाभर के निवेशक बफे के कैश बढ़ाने को अपशगुन के तौर पर लेने लगे कि अब मार्केट में गिरावट होगी। जापान के ब्याज और कैरी ट्रेड वाले मसले के चलते दुनियाभर के मार्केट क्रैश भी हुए। इससे अपशगुन वाली आशंका को और भी बल मिला कि बफे को इन हालात का अंदेशा पहले से ही था।
बफे ने 2005 के आसपास भी नकदी का बड़ा भंडार बनाया। इससे उन्हें सब-प्राइम क्राइसिस के तौर पर सस्ते में शानदार शेयर खरीदने का मौका मिला, जब अन्य निवेशकों की बैलेंस शीट में गिरावट आई थी।
क्या बफे अर्थव्यवस्था के नजूमी हैं?
इसमें कोई शक नहीं कि बफे अर्थव्यवस्था के बड़े जानकार हैं। लेकिन, शायद उतने भी नहीं, जितना निवेशक उन्हें आंकते हैं। बतौर निवेशक बफे की कामयाबी की वजह भविष्य को आंकने की उनकी क्षमता नहीं है। एंड्रिया फ्रैजिनी, डेविड कैबिलर और लासे पेडरसन ने 2018 में प्रकाशित शोध में पाया कि बफे बस निवेश के बेसिक मॉडल को फॉलो किया। उन्होंने अपेक्षाकृत सस्ते दामों पर उच्च गुणवत्ता वाले स्टॉक खरीदे हैं। यह कोई कामयाबी का कोई जादुई या अलौकिक तरीका नहीं है।
यह काम कोई भी कामयाब निवेशक कर सकता है। बफे के साथ बस अच्छी बात यह हुई कि उन्हें बर्कशायर हैथवे के बीमा व्यवसाय के जरिए सस्ते में बड़ी पूंजी मिली, जिसका उन्होंने अच्छे तरीके से इस्तेमाल किया। इसका मतलब साफ है कि बफे कोई जादुई शख्सियत नहीं। उनकी कामयाबी की वजह उनका तेज दिमाग है और कैश भंडार की वजह भी यही है।
बफे ने क्यों बढ़ाया नकदी भंडार
बफे ने मई में शेयरधारकों की मीटिंग में कहा था कि वह सिर्फ दो कारणों से शेयर बेचते और रिजर्व बढ़ाते हैं। पहला यह कि उन्हें कैपिटल गेन पर टैक्स बढ़ने का अंदेशा है। इस सूरत में वह टैक्स बढ़ने से पहले अपना मुनाफा निकाल लेना चाहते हैं। दूसरी यह कि उन्हें कुछ सस्ती और अच्छी क्वालिटी वाली कंपनियां मिल गई हैं, जिनमें निवेश किया जा सकता है।
बफे को फॉलो करने वाले बफे को दूरदर्शी बताते हैं। लेकिन, खुद बफे ने ऐसा दावा कभी नहीं किया। उन्होंने तो मजाक में एक बार यहां तक कह दिया था कि कोई भी कंपनी जो अर्थशास्त्री को काम पर रखती है, उसमें एक कर्मचारी ज्यादा हो जाता है। बफे ने कभी भी आर्थिक पूर्वानुमान के आधार पर निवेश का कोई फैसला भी नहीं किया।
नकदी के पहाड़ का क्या करेंगे बफे
वॉरेन बफे के पास नकदी का नया पहाड़ बेशक बड़ा विशाल है। वह चाहे तो मौजूदा शेयर प्राइस पर मैकडॉनल्ड्स को खरीद लें। फिर भी उनके पास 80 अरब डॉलर बच जाएंगे। वह मेटा में भी कंपनी के मालिक मार्क जुकरबर्ग से बड़ी हिस्सेदारी ले सकते हैं। लेकिन, जाहिर तौर पर अभी बफे का निवेश का कोई इरादा नहीं, क्योंकि शेयर बाजार हर जगह महंगा है। फिर चाहे वह अमेरिका या फिर भारत।अगर शेयर मार्केट में गिरावट आती है, तो बफे शानदार स्थिति में होंगे। उन्हें सस्ते में कई अच्छी कंपनियों के शेयर मिल सकते हैं, जिन्हें खरीदना उनका पुराना शौक रहा है। ऐसे में जाहिर है कि कैश भंडार बढ़ाने के पीछे की बड़ी वजह शेयर बाजार का महंगा होना है, किसी बड़े आर्थिक संकट की आहट नहीं। हालांकि, पैसों के इतने बड़े पहाड़ के साथ किसी भी शख्स को इंतजार सस्ते शेयरों का ही रहेगा।
बफे बेशक करिश्माई निवेशक हैं। इस बात से कोई इनकार तो कर ही नहीं सकता। लेकिन, अतीत और वर्तमान हमें यह बताती है कि बफे निवेश के बुनियादी सिद्धांतों के चलने वाले शानदार निवेशक हैं। अर्थव्यवस्था की करवट का सटीक अंदाजा लगाने वाले कोई नजूमी नहीं।
यह भी पढ़ें : वॉरेन बफे की कंपनी ने एपल में 50 फीसदी तक घटाई हिस्सेदारी, क्या मंदी के डर से बेचे शेयर?