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नारायण मूर्ति, भाविश अग्रवाल और दक्ष गुप्ता... आखिर कंपनियों में वर्क-लाइफ बैलेंस पर क्यों छिड़ी बहस?

भारत में वर्क कल्चर को लेकर बहस काफी तेज हो गई है। सबसे पहले इन्फोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति ने हफ्ते में 70 घंटे काम की वकालत की। ओला इलेक्ट्रिक के फाउंडर भाविश ने एक पुराने इंटरव्यू में शनिवार-रविवार की छुट्टी को वेस्टर्न कल्चर बताया था। अब भारतीय मूल के एक सीईओ ने 84 घंटे के वर्कवीक की बात कही है जिस पर उन्हें धमकियां तक मिल रही है।

By Suneel Kumar Edited By: Suneel Kumar Updated: Tue, 19 Nov 2024 05:08 PM (IST)
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नारायण मूर्ति, भाविश अग्रवाल या दक्ष गुप्ता जैसे फाउंडर का कई लोग सोशल मीडिया पर समर्थन कर रहे हैं।
बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। पिछले दिनों इन्फोसिस के फाउंडर एनआर नारायण मूर्ति ने वर्क कल्चर को लेकर एक बयान दिया, जिस पर काफी बवाल मचा था। मूर्ति का कहना था कि वह वर्क-लाइफ बैलेंस में यकीन नहीं रखते। उनका मानना है कि लोगों को हफ्ते में 70 घंटे काम करना चाहिए। मूर्ति ने पीएम नरेंद्र मोदी की मिसाल भी दी कि अगर वह हफ्ते में 100 घंटे काम कर सकते हैं, तो हम क्यों नहीं।

अब भारतीय मूल के एक सीईओ दक्ष गुप्ता अपने स्टार्टअप के वर्क कल्चर को लेकर चर्चा में हैं। अमेरिका में रहने वाले दक्ष का कहना है कि उनके एआई स्टार्टअप ग्रेप्टाइल में 84 घंटे का वर्कवीक है। इसका मतलब कि 6 दिन वर्किंग डेज के हिसाब से कर्मचारियों को रोजाना 14 घंटे काम करना पड़ता है। दक्ष का कहना है कि हमारे स्टार्टअप में शनिवार को कोई छुट्टी नहीं होती और कभी-कभी रविवार को भी काम करना पड़ता है।

दक्ष को मिल रही जान से मारने की धमकियां

दक्ष गुप्ता ने अपने स्टार्टअप के वर्क कल्चर पर एक पोस्ट लिखी थी, जिसमें उन्होंने बताया था कि ग्रेप्टाइल में काम सुबह 9 बजे शुरू होता है और रात 11 बजे तक जारी रहता है। उन्होंने कहा कि हम जॉब इंटरव्यू में कैंडिडेट को पहले ही राउंड में बता देते हैं कि हमारी कंपनी में वर्क-लाइफ बैलेंस की कोई गुंजाइश नहीं। शुरू-शुरू में ऐसा कहना थोड़ा अजीब जरूर था, लेकिन अब लगता है कि यह पारदर्शिता बरतना सही है।

दक्ष गुप्ता की पोस्ट काफी वायरल हुई। इसे एक मिलियन से ज्यादा व्यूज मिला। सोशल मीडिया पर यूजर्स दोफाड़ हो गए। कुछ ने दक्ष की ट्रांसपरेंसी की तारीफ की, तो ज्यादातर ने इसे 'टॉक्सिक वर्क कल्चर' करार दिया। दक्ष ने तमाम आलोचनाओं के बीच एक अन्य पोस्ट की, जिसमें उन्होंने दावा किया कि उन्हें जान से मारने की धमकी मिल रही है।

वर्क-लाइफ बैलेंस पर क्यों छिड़ी बहस

इन्फोसिस के नारायण मूर्ति या फिर ग्रेप्टाइल के दक्ष गुप्ता जैसे फाउंडर का मानना है कि देश या कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए कर्मचारियों को अधिक काम करना जरूरी है। नारायण मूर्ति का कहना है कि जब 1980 के दशक में कारोबार जगत ने 6 से 5 डे वर्किंग वीक का रुख किया, तो उन्हें काफी दुख हुआ। मूर्ति के मुताबिक, जर्मनी और जापान जैसी तरक्की के लिए भारत में कामकाजी घंटा बढ़ाना होगा।

ओला इलेक्ट्रिक के फाउंडर भाविश अग्रवाल का भी एक पुराना इंटरव्यू वायरल हुआ है। इसमें वह शनिवार और रविवार की छुट्टी को गलत बताते नजर आ रहे हैं। वह इंटरव्यू में अंग्रेजी में कह रहे हैं कि शनिवार-रविवार का वीकेंड पश्चिमी देशों का कल्चर है। उनका दावा है कि वह खुद रोजाना 20 घंटे काम करते हैं। उन्होंने नारायण मूर्ति के 70 घंटे काम वाले बयान का समर्थन भी किया था।

पक्ष और विपक्ष में क्या है दलील?

नारायण मूर्ति, भाविश अग्रवाल या दक्ष गुप्ता जैसे फाउंडर का कई लोग सोशल मीडिया पर समर्थन कर रहे हैं। उनमें कुछ लोग रेहड़ी लगाने या दुकान चलाने वालों की मिसाल देते हैं, जो सुबह 6 बजे से रात 8 बजे तक काम करते हैं। किसानों की भी मिसाल दी जा रही है, जो सुबह से लेकर शाम तक खेत में काम करते रहते हैं।

वहीं, इनकी खिलाफत करने वालों की दलील है कि फाउंडर का अधिक काम करना उनका व्यक्तिगत हित है। कंपनी जितना बढ़ेगी, उन्हें उतना ही ज्यादा फायदा होगा। लेकिन, आम कर्मचारी अगर अपनी सेहत से खिलवाड़ करके दिन में 14-15 काम करता है, तो भी कंपनी के बढ़ने पर फाउंडर के मुकाबले उसका लाभ न के बराबर रहेगा।

किसान और दुकानदार वाली मिसाल पर यूजर्स का कहना है कि वे उनका निजी काम है, जैसे कि फाउंडर की अपनी कंपनी। उन्हें भी उपज या बिक्री से होने वाला पूरा लाभ मिलेगा। उनकी तुलना भी कर्मचारियों से करना सही नहीं होगा। कई यूजर्स ने यह भी तंज किया कि नारायण मूर्ति की इन्फोसिस आज भी फ्रेशर को 10 साल पहले जितना ही सालाना पैकेज देती है और उनसे काम मशीनों क तरह लेना चाहती है।

ज्यादा घंटे काम करने में कंपनी का फायदा?

कई रिसर्च का कहना है कि अगर कोई कर्मचारी हद से ज्यादा समय तक काम करता है, तो उसकी प्रोडक्टिविटी पर बुरा असर पड़ सकता है। इस सूरत में कंपनी को फायदा की बजाय नुकसान अधिक हो सकता है। ज्यादा काम करने से थकान और तनाव जैसी परेशानियां भी हो सकती हैं, जिससे कर्मचारियों के निर्णय लेने की क्षमता और कार्यकुशलता प्रभावित हो सकती है।

नारायण मूर्ति जापान और जर्मनी की तरक्की की मिसाल दे रहे हैं। लेकिन, दोनों ही देशों में एक हफ्ते के दौरान 36 से 40 घंटे का नियम है। मूर्ति और भाविश को दो वीक ऑफ से चिढ़ है, लेकिन यूरोपीय देशों में कई कंपनियां तीन दिन के वीक ऑफ का प्रयोग कर रही हैं। जापान की इलेक्ट्रॉनिक्स गुड्स कंपनी पैनासोनिक भी हफ्ते में तीन दिन की छुट्टी देती है।

माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों का फोर-डे वर्किंग वीक के प्रयोग के बारे में कहना है कि इससे कर्मचारियों की प्रोडक्टिविटी 40 फीसदी तक बढ़ गई, मानसिक दिक्कतें दूर हुई और अचानक छुट्टी लेने के मामले भी काफी कम हो गए। इससे पर्यावरण को भी फायदा होगा, क्योंकि कर्मचारियों को अधिक यात्रा नहीं करनी पड़ेगी, जिससे उनका कार्बन फुटप्रिंट कम हो जाएगा।

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