Jagran Explainer: RBI ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए रुपये में सेटलमेंट की क्यों दी मंजूरी, क्या होगा इसका लाभ; जानें एक्सपर्ट की राय
Export Import trade in rupee आरबीआइ द्वारा इंटरनेशनल ट्रेड का का सेटलमेंट रुपये में करने की इजाजत देने के फैसले का भारतीय अर्थव्यवस्था पर होने वाले असर और इसके बाकी पहलुओं को समझने के लिए हमने एक्सपर्ट्स से बातचीत की।
By Siddharth PriyadarshiEdited By: Updated: Tue, 12 Jul 2022 02:05 PM (IST)
नई दिल्ली, बिजनेस डेस्क। RBI ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए एक्सपोर्ट और इंपोर्ट का सेटलमेंट भारतीय रुपये में करने की इजाजत दे दी। रुपये की लगातार गिरती कीमत और बढ़ते व्यापार घाटे के दबाव के बीच आरबीआइ के इस फैसले का बड़ा ही दूरगामी महत्व है। माना जा रहा है कि केंद्रीय बैंक के इस फैसले से डॉलर की मांग में कमी आएगी और इससे रुपये की गिरती कीमतों पर काबू में रखने में मदद मिलेगी। साथ ही एक अंतरराष्ट्रीय करेंसी के रूप में रुपये की स्वीकार्यता भी बढ़ेगी। इन सब अटकलों के बीच बड़ा सवाल यह है कि क्या वाकई आरबीआइ के इस कदम का जमीनी हकीकत पर कोई असर पड़ेगा। क्या रुपये को अंतरराष्ट्रीय बाजार में भुगतान के एक नए टूल के रूप ने दूसरे देश स्वीकार कर पाएंगे? इस आर्टिकल में हमने कुछ ऐसे ही सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश की है।
रुपये में सेटलमेंट से क्या होगा बदलाव
आरबीआइ के इस कदम का तात्कालिक और दीर्घलाकिक दोनों महत्व है। इस बारे में पूछे जाने पर एसबीआइ की पूर्व चीफ इकोनॉमिस्ट बृंदा जागीरदार कहती हैं, "ऐसा नहीं है कि इस तरह का फैसला पहली बार लिया गया है। इसके पहले भी यह व्यवस्था लागू हो चुकी है, लेकिन पहले के मुकाबले वैश्विक परिस्थितियां काफी बदल चुकी हैं। इसलिए आरबीआइ के इस फैसले का तात्कालिक महत्व कहीं अधिक है। पहला फायदा तो यह है कि हमें जो पेमेंट करना है, उसके लिए फॉरेन रिजर्व से पूंजी निकालने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अगर पड़ी भी तो पूंजी की निकासी कम होगी।" नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी से जुड़ी सीनियर फेलो राधिका पांडे मानती हैं कि रुपये में कारोबार सेटलमेंट की अनुमति दिए जाने के कई खास मकसद हैं। इससे जिन देशों पर व्यापारिक प्रतिबंध लगे हुए हैं, उनके साथ ट्रेड में आसानी होगी, खासकर रूस के साथ, जिससे इन दिनों भारत सस्ते दाम पर बड़ी मात्रा में तेल खरीद रहा है। प्रतिबंधों के चलते डॉलर में भुगतान करने में आ रही मुश्किलों को देखते हुए रुपये में भुगतान करना कहीं अधिक आसान होगा।
रुपये की स्वीकार्यता का सवाल
रुपये में अंतरराष्ट्रीय व्यापार के सेटलमेंट का विचार हमेशा से नीति-निर्माताओं के दिमाग में था, लेकिन इसके पीछे सबसे बड़ी हिचक यह थी कि क्या निर्यातकों और आयातकों के लिए रुपये की स्वीकार्यता बन पाएगी। हाल के दिनों में रूस-यूक्रेन संघर्ष के लंबा खिंचने और कोविड के बाद चालू खाता घाटे के अचानक बढ़ने से आरबीआइ को यह फैसला लागू करने का साहस दिखाना पड़ा। दुनिया में तेजी से बदल रहे राजनीतिक और आर्थिक गतिविधियों का भी इसमें बहुत योगदान था। बृंदा जागीरदार मानती हैं कि जहां रुपये की अंतरराष्ट्रीय स्वीकार्यता का सवाल है, यह एक लॉन्ग टर्म टारगेट है। जैसे-जैसे इंडिया की इकोनॉमी ग्रो करेगी और ग्लोबल सप्लाई चेन में हमारा अंशदान बढ़ेगा, तब रुपये की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता भी बढ़ेगी। राधिका पांडे भी मानती हैं कि इस कदम का मीडियम टर्म में एक फायदा यह होगा कि बाकी देशों के साथ हम रुपये में कारोबार कर पाएंगे और धीरे-धीरे कुछ देश रुपये को अंतरराष्ट्रीय करेंसी के रूप में स्वीकार कर लेंगे। आगे चलकर इससे रुपये को पूर्ण परिवर्तनीय बनाने में भी मदद मिलेगी।रुपये की गिरावट पर क्या होगा असर
बृंदा जागीरदार का मानना है कि आरबीआइ के इस फैसले को रुपये की कीमत से लिंक करने की कोई जरूरत नहीं है। वह कहती हैं, "रुपये में मजबूती तब आएगी जब वह डॉलर के मुकाबले बाजार में स्थिर होगा। कमोडिटी एक्सपोर्ट करने वाले देशों को कच्चा तेल, कोयला, आयरन स्टील या दूसरी कमोडिटीज का निर्यात करने से विदेशी मुद्रा के रूप में डॉलर आसानी से हासिल हो जाता है। लेकिन हमारे पास वह सुविधा नहीं है। कमोडिटीज का इंटरनेशनल ट्रेड सबसे अधिक होता है, इसलिए वहां हम पिछड़ जाते हैं। हमारे पास डॉलर को हासिल करने के मौके सीमित हैं। भारत के कुल आयात में अकेले कच्चे तेल का हिस्सा 80 फीसद से ऊपर है, जबकि कुल इंपोर्ट बिल में तेल का हिस्सा 50 फीसद से अधिक है। तो जब तक तेल के आयात पर हमारी इस तरह निर्भरता बनी रहेगी, रुपये में स्थिरता नहीं आने वाली। यूक्रेन युद्ध के लंबा खिंचने से दुनिया की सभी करेंसी में गिरावट आई है, बल्कि बाकी करेंसी को देखे तो रुपये में गिरावट बाकियों के मुकाबले बहुत कम है। जब तक वैश्विक परिस्थितियां नहीं सुधरतीं, तब तक रुपये की यह अनिश्चितता बनी रहेगी।" इस बारे में राधिका पांडे की भी कुछ ऐसी ही राय है। वह कहती हैं, "जब तक हम तेल के आयात को कम नहीं करते, रुपया प्रेशर में रहेगा। लेकिन आइबीआइ के इस कदम ने संभावनाओं के नए द्वार खोल दिए हैं। आगे आने वाले महीनों में जब ग्लोबल परिस्थितियां स्थिर होंगी, तब रुपया जरूर मजबूत होगा।"