क्या बैंकों के सामने पैदा होने वाला है नकदी संकट? इस रिपोर्ट ने बढ़ाई चिंता
भारत में बैंकिंग सिस्टम के सामने नकदी की तंगी की समस्या हो सकती है। दरअसल लोन ग्रोथ के मुकाबले डिपॉजिट ग्रोथ काफी कम है। बैंक अमूमन डिपॉजिट को ही कर्ज के रूप में देकर ब्याज से मुनाफा कमाते हैं। ऐसे में अगर उनके पास जमा से ज्यादा लोन की डिमांड रहेगी कैश का संकट पैदा हो सकता है। वे कर्ज देने की प्रक्रिया को भी थोड़ा मुश्किल कर सकते हैं।
बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। पिछले कुछ समय से डिपॉजिट ग्रोथ के मुकाबले लोन ग्रोथ लगातार ज्यादा देखने को मिल रही है। इसका मतलब है कि लोग बैंकों से कर्ज अधिक मात्रा में ले रहे हैं, लेकिन उस अनुपात में अपना पैसा नहीं जमा कर रहे। अगर यह सिलसिला आगे भी जारी रहता है, तो बैंकिंग सिस्टम के सामने नकदी का संकट पैदा हो सकता है। यह बात फिक्की और आईबीए की एक रिपोर्ट में कही गई है।
डिपॉजिट ग्रोथ बढ़ाने पर फोकस
यह रिपोर्ट बताती है कि बैंक लोन ग्रोथ के तालमेल बनाने के लिए डिपॉजिट ग्रोथ बढ़ाने पर फोकस कर सकते हैं। साथ ही, कर्ज लागत को कम रखना भी उनके एजेंडे में सबसे ऊपर है। पिछले दिनों वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने भी जोर दिया था कि बैंकों को डिपॉजिट ग्रोथ बढ़ाने के लिए आकर्षक ब्याज दरों की पेशकश करनी चाहिए। इससे लोग बैंकों में पैसा जमा करने के लिए प्रोत्साहित होंगे।
फिक्की और आईबीए की रिपोर्ट में एक सर्वे का हवाला देते हुए कहा गया है कि दो तिहाई से ज्यादा बैंकों (67 प्रतिशत) ने कुल जमा में चालू खाता बचत खाता (सीएएसए) जमा की हिस्सेदारी में कमी की सूचना दी। हालांकि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि उच्च और आकर्षक दरों के कारण फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) यानी सावधि जमा में तेजी आई है।
सीएएसए जमा में कमी आई
सर्वे में हिस्सा लेने वाली 80 प्रतिशत बैंकों ने 2024 की पहली छमाही के दौरान सीएएसए जमा की हिस्सेदारी में कमी की सूचना दी, जबकि आधे से अधिक निजी क्षेत्र के बैंकों ने सीएएसए जमा में कमी की बात बताई। फिक्की-आईबीए सर्वे का 19वां दौर जनवरी से जून 2024 की अवधि के लिए किया गया था।सर्वे में सार्वजनिक क्षेत्र, निजी क्षेत्र और विदेशी बैंकों सहित कुल 22 बैंकों ने हिस्सा लिया। ये बैंक बैंकिंग उद्योग के लगभग 67 प्रतिशत का प्रतिनिधित्व करते हैं। अधिकांश (71 प्रतिशत) बैंकों ने पिछले छह महीनों के दौरान एनपीए के स्तर में कमी की बात कही है। सर्वे के निष्कर्षों से पता चलता है कि बुनियादी ढांचे, धातु, लोहा और इस्पात जैसे क्षेत्रों के लिए दीर्घकालिक ऋण मांग में वृद्धि बनी हुई है।
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