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क्या किराना स्टोर्स का खत्म हो जाएगा वजूद, क्विक कॉमर्स से क्यों डर रहे दुकानदार?

किराना स्टोर्स! राशन-पानी से लेकर दूसरे रोजमर्रा समान लेने का ठिकाना। यहां आप थोड़ा मोल-भाव कर लेते हैं। पुराने ग्राहक हैं तो समान उधार भी मिल जाता है। कुल मिलाकर हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा हैं ये पड़ोस की दुकानें यानी किराना स्टोर्स। ये लंबे समय से अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनी हुई है। लेकिन अब इनका वजूद खतरे में हैं।

By Suneel Kumar Edited By: Suneel Kumar Updated: Mon, 26 Aug 2024 03:20 PM (IST)
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ईकॉमर्स बिक्री में क्विक कॉमर्स का योगदान 30-50 फीसदी तक पहुंच गया है।
बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। 'किराना स्टोर के मुकाबले क्विक कॉमर्स से सामान मंगाना सस्ता पड़ता है। मैं टूथपेस्ट और कुछ दूसरे सामान के लिए किराना स्टोर पर गया। वहां पर दुकानदार ने मुझे बताया 265 रुपये। उन्हीं चीजों को मैंने अपने क्विक प्लेटफॉर्म के कार्ट में भी एड कर रखा था और वे मुझे मिल रहे थे 190 रुपये में। अगर मुझे सस्ता सामान अपने घर पर मिल जा रहा है, तो वही सामान मैं दुकान पर जाकर महंगे में क्यों लूंगा।'

यह कहना है नोएडा के रहने वाले शुभम का, जो किराना स्टोर को छोड़कर क्विक कॉमर्स से राशन और रोजमर्रा के दूसरे सामान मंगा रहे हैं। सुभाष की तरह लाखों शहरी उपभोक्ता हैं, जो अब किराना स्टोर्स को छोड़कर ब्लिंकिट, स्विगी इंस्टामार्ट और जेप्टो जैसे क्विक कॉमर्स प्लेटफॉर्म का रुख कर रहे हैं। इसकी वजह से किराना स्टोर्स के वजूद पर गंभीर संकट भी खड़ा हो गया है। 

किराना स्टोर्स क्यों खतरे में हैं?

किराना स्टोर्स को सबसे अधिक खतरा है क्विक कामर्स से, जो सिर्फ 10 मिनट राशन का सामान घर पहुंचाने का दावा करते हैं। केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल भी केंद्रीय ई-कॉमर्स कंपनियों के तेजी से विस्तार पर चिंता जता चुके हैं। उनकी नजर में यह उपलब्धि नहीं, बल्कि 'चिंता का विषय' है।

केंद्रीय मंत्री ने पिछले दिनों छोटे मोबाइल स्टोरों की घटती संख्या का जिक्र किया है। उन्होंने कहा, 'अब आप बाजारों में कितने मोबाइल स्टोर देखते हैं और 10 साल पहले कितने थे?' उन्होंने ईकॉमर्स की प्रीडेटरी प्राइसिंग यानी काफी छूट के साथ सामान बेचने को भी खतरनाक चलन बताया।

देश में करीब 1.2 करोड़ किराना स्टोर हैं। इनका सालाना कारोबार 800 अरब डॉलर से अधिक का है। ये किराने का सामान, पर्सनल केयर प्रोडक्ट्स और दूसरी चीजें बेचते हैं। किराना स्टोर से जनता की रोजमर्रा की जरूरतें तो पूरी ही होती हैं, ये रोजगार के भी बड़े साधन हैं। यही वजह है कि सरकार भी किराना स्टोर्स के वजूद को लेकर चिंतित है।

फ्लॉप से हिट कैसे हुए क्विक कॉमर्स?

ब्लिकिंट, स्विगी इंस्टामार्ट और जेप्टो जैसे क्विक कॉमर्स प्लेटफॉर्म पारंपरिक किराना स्टोर को तेजी से पीछे छोड़ रहे हैं। हालांकि, जब कोरोना महामारी के वक्त क्विक कॉमर्स की शुरुआत हुई, तो इन्हें लेकर लोगों का नजरिया काफी रुढ़िवादी था। उनका मानना था कि भारतीय उपभोक्ता ऐसी सेवाओं के बदले पैसा नहीं देने वाले, चाहे जो हो जाए। कुछ लोगों तो यहां तक कहना था कि उपभोक्ता कुछ घंटों तो क्या, मुफ्त डिलिवरी के लिए एक दिन का भी इंतजार कर लेंगे।

क्विक कॉमर्स मॉडल ज्यादातर देशों में नाकाम भी हो चुका था। लेकिन, भारत में इसे गजब की सफलता मिली। ये झटपट सामान पहुंचा देते हैं, जो हाउस वाइफ और बैचलर को काफी पसंद आ रहा है। शहरों में वैसे भी समय को पैसे माना जाता है और इसे बचाने के लिए लोग थोड़ा-बहुत भुगतान करने को खुशी-खुशी तैयार हैं।

नेस्ले, पारले, आईटीसी, मैरिको और इमामी जैसी FMCG कंपनियों की सालाना ईकॉमर्स बिक्री में क्विक कॉमर्स का योगदान 30-50 फीसदी तक पहुंच गया है। इसमें आगे भी तेजी आने का अनुमान है।

कैसे बचेगा किराना स्टोर्स का वजूद?

अगर किराना दुकानों को जीवित रहना है, तो उन्हें तेजी से डिजिटल होना होगा। कुछ किराना स्टोर्स वॉट्सऐप जैसे माध्यमों से होम डिलिवरी की सुविधा देते हैं। लेकिन, डिलिवरी के मामले में उनकी क्षमता सीमित है। जैसे कि अगर एकसाथ तीन-चार ग्राहकों ने ऑर्डर कर दिया, उनके लिए समय पर सामान पहुंचाना मुश्किल हो जाता है।

किराना स्टोर्स के लिए अच्छी बात यह भी है कि उनके पास खुला स्टॉक बेचने की सहूलियत रहती है, जो क्विक कॉमर्स के लिए बड़ी चुनौती है। जैसे कि किराना स्टोर दो-तीन किलो खुला आटा-चावल भी बेच सकते हैं, लेकिन क्विक कॉमर्स नहीं।

अधिकांश किराना स्टोर्स अपने ग्राहकों को 'खाता सिस्टम' की सुविधा देते हैं। इसमें सामानों का हिसाब का एक निश्चित समय पर होता है। यह एक हफ्ता, एक महीना या एक साल भी हो सकता है। लेकिन, क्विक कॉमर्स के लिए ऐसी सहूलियत दे पाना मुश्किल है। खासकर, छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में।

रिलायंस का मॉडल भी उम्मीद की किरण

क्विक कॉमर्स और किराना स्टोर्स के बीच गठजोड़ भी किराना स्टोर्स को बचा सकता है। अभी अधिकतर क्विक कॉमर्स के पास अपना डॉर्क स्टोर है, जहां से वे उपभोक्ताओं को सामान की डिलिवरी करते हैं। लेकिन, अरबपति कारोबारी मुकेश अंबानी की रिलायंस इंडस्ट्रीज अब इस दिशा में पहल भी करने वाली है। रिलायंस इंडस्ट्री की खुदरा शाखा रिलायंस रिटेल भी क्विक कॉमर्स सेगमेंट में दोबारा एंट्री करने वाली है।

हालांकि, रिलायंस रिटेल 10 मिनट डिलिवरी मॉडल के साथ ब्लिंकिट, स्विगी इंस्टामार्ट और जेप्टो से सीधे प्रतिस्पर्धा नहीं करेगी। इसमें प्रोडक्ट को लाखों किराना स्टोर से खरीदा जाएगा, जो अपना माल रिलायंस रिटेल मंगाएंगे और फिर उसकी उपभोक्ताओं को डिलिवरी की जाएगी। किराना स्टोर JioMart पार्टनर पहल का हिस्सा हैं, जिसके तहत वे रिलायंस रिटेल की थोक शाखा से उत्पाद खरीदते हैं।

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