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बांग्लादेश ने दे दिया मौका, क्या कपड़ा बाजार में फिर होगा भारत का जलवा?

भारतीय अर्थव्यवस्था हमेशा से कृषि प्रधान ही रही है। लेकिन कृषि के बाद भारत के विकास में सबसे महत्वपूर्ण योगदान वाला है उद्योग है कपड़ा। इसने अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के साथ रोजगार पैदा करने में भी अहम भूमिका निभाई है। बांग्लादेश में सियासी उथलपुथल ने भारत को मौका दिया है कि वह फिर से वैश्विक कपड़ा बाजार में अपना दबदबा बना सके।

By Suneel Kumar Edited By: Suneel Kumar Updated: Tue, 03 Sep 2024 06:53 PM (IST)
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भारत को यूरोप और अमेरिका जैसे बड़े कपड़ा बाजारों में अपनी पहुंच बढ़ानी होगी।

बिजनेस डेस्क, नई दिल्ली। भारत का कपड़ा उद्योग 5 हजार साल से भी अधिक पुराना है। इसकी शुरुआत गांवों में हथकरघा के रूप में हुई, जो अब आधुनिक कपड़ा मिलों तक आ गई है। भारत के कपड़े ही विदेशों में हमारी पहचान बन गए थे। प्राचीन ग्रीस और बेबीलोन में 'भारत' नाम ही 'कपास' का संक्षिप्त रूप था। चीन से रेशम और भारत से कपास पश्चिमी देशों को निर्यात की जाने वाली सबसे महत्वपूर्ण वस्तुएं थीं।

उस जमाने में टेक्सटाइल्स यानी कपड़ा बाजार में भारत की तूती बोलती थी। यहां से दुनियाभर के बाजारों में कपड़े का निर्यात होता था। लेकिन, अब चीन, जर्मनी, वियतनाम और बांग्लादेश ने कपड़ा बाजार पर अपनी मजबूत पकड़ बना ली है। हालांकि, बांग्लादेश में सियासी उथलपुथल और हिंसा ने कपड़ा मार्केट में भारत के लिए संभावनाओं के दरवाजे खोल दिए हैं।

कपड़ा बाजार में भारत की हिस्सेदारी

कपड़ा बाजार में फिलहाल चीन का दबदबा है। चीन में उत्पादन की लागत काफी कम है और उसके पास उन्नत मशीनरी भी है। वहां अच्छा कच्चा माल भी काफी आसानी से उपलब्ध रहता है, क्योंकि वह कपास का सबसे बड़ा उत्पादक भी है। चीन के बाद जर्मनी, बांग्लादेश और वियतनाम का नंबर आता है। भारत पांचवें नंबर पर है।

भारत से आगे कैसे है बांग्लादेश?

भारत की टेक्सटाइल्स इंडस्ट्री (Indian Textiles Industry) 150 अरब डॉलर की है। वहीं, बांग्लादेश की इंडस्ट्री साइज में काफी छोटी है, लेकिन निर्यात के मामले में हम उससे पीछे हैं। भारत का निर्यात करीब 40 अरब डॉलर का है, जबकि बांग्लादेश का 45 अरब डॉलर का है। भारत का रेडीमेड गारमेंट एक्सपोर्ट बांग्लादेश के मुकाबले एक तिहाई है। हालांकि, सरकार ने 2027 तक निर्यात को 100 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखा और उस दिशा में जरूरी कदम भी उठाए जा रहे हैं।

भारत के सामने क्या चुनौतियां हैं?

अगर भारत को कपड़ा उद्योग में दबदबा बढ़ाना है, तो उसे कई चीजें बेहतर करनी होगी। इनमें नीतिगत सुधार भी शामिल हैं।

  • घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहन देना होगा, जो प्रतिस्पर्धा की दौड़ में काफी पिछड़ चुके हैं।
  • कच्चे माल की उपलब्धता और उन्न मशीनरी का बंदोबस्त भी करने की जरूरत रहेगी।
  • कपास उत्पादन बढ़ाना होगा। चीन काफी कम जमीन पर हमसे अधिक उत्पादन करता है।
  • भारत को यूरोप और अमेरिका जैसे बड़े कपड़ा बाजारों में अपनी पहुंच बढ़ानी होगी।
  • टेक्सटाइल उद्योग की ब्रांडिंग और मार्केटिंग से भी पहुंच बढ़ाने में मदद मिल सकती है।

नीतिगत सुधार की भी जरूरत

भारत में एक हेक्टेयर में सिर्फ 460 किलो कपास पैदा होता है। वहीं, वैश्विक औसत 780 किलो है। चीन में यह 2 हजार किलो और ब्राजील में 18 सौ किलो प्रति हेक्टेयर है। इसका मतलब कि हमारा उत्पादन प्रतिस्पर्धी देशों के मुकाबले काफी ज्यादा है। वहीं, सरकार किसानों को कपास पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) भी देती है।

एमएसपी बेशक किसानों के लिए फायदेमंद है। लेकिन, इससे कपास की लागत बढ़ जाती है। पिछले 6 महीने में कपास का भाव 30 फीसदी घटा है। लेकिन, सरकार ने किसानों को नुकसान से बचाने के लिए इंपोर्ट ड्यूटी लगा रखी है। इससे टेक्सटाइल्स कंपनियों को न तो घरेलू मार्केट में सस्ता कपास मिलता है और न वे बाहर सस्ता कपास मंगा सकती हैं। ऐसे में कपास की पैदावार बढ़ाने की जरूरत है। इसमें सरकारी मदद, ठोस रणनीति और इनोवेशन की जरूरत रहेगी।

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